प्रणव मुखर्जी का वो फैसला जिसने सभी को हैरान कर दिया था…
प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस के सबसे मेधावी और योग्य नेताओं में गिना जाता है, लेकिन उनका प्रधानमंत्री बनने का सपना अधूरा रह गया, वे राष्ट्रपति बने और अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में जाने की वजह से चर्चा में हैं.
यहाँ तक कि उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा है कि उन्हें इस कार्यक्रम में नहीं जाना चाहिए क्योंकि उनका ‘भाषण भुला दिया जाएगा और तस्वीरें रह जाएँगी.’
जिस कांग्रेस पार्टी में प्रणब मुखर्जी ने लगभग अपना पूरा राजनीतिक जीवन गुज़ारा, उसके कई नेताओं का कहना है कि ‘आरएसएस प्रणब मुखर्जी का इस्तेमाल अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए कर रहा है’.
प्रणब मुखर्जी के जीवन में दो मौक़े आए जब वे पीएम बन सकते थे, लेकिन दोनों बार बाज़ी उनके हाथ से निकल गई और वे राष्ट्रपति भवन पहुँच गए, सिद्धांतत: राष्ट्रपति बनने के बाद अब कांग्रेस से उनका संबंध समाप्त हो गया है और वे कांग्रेस के नेता के तौर पर नहीं बल्कि पूर्व राष्ट्रपति की हैसियत से नागपुर जा रहे हैं.
राष्ट्रपति भवन छोड़ने के बाद से वे ‘सिटीज़न मुखर्जी’ नाम से ट्विटर का इस्तेमाल करते हैं और वे शायद ज़ाहिर करना चाहते हैं कि वे देश के नागरिक हैं, कांग्रेस के पूर्व नेता नहीं, कांग्रेस के पूर्व नेता के रूप में उन्होंने बहुत कुछ हासिल किया है, सिवाय प्रधानमंत्री पद के.
पहला मौक़ा कैसे फिसला?
प्रणब मुखर्जी इंदिरा गांधी की कैबिनेट में वित्त मंत्री थे, 1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो मुखर्जी को प्रधानमंत्री पद का सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा था, वे पीएम बनने की इच्छा भी रखते थे, लेकिन कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें किनारे करके युवा महासचिव राजीव गांधी को पीएम बनवा दिया.
जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो राजीव गांधी और प्रणब मुखर्जी बंगाल के दौरे पर थे, वे एक ही साथ विमान से आनन-फानन दिल्ली लौटे. राजीव गांधी को इंदिरा गांधी की हत्या का समाचार बीबीसी रेडियो से मिला था.
कांग्रेस के इतिहास पर किताब लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई बताते हैं, “प्रणव मुखर्जी का ख़याल था कि वे कैबिनेट के सबसे सीनियर सदस्य हैं इसलिए उन्हें कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया जाएगा, उनके दिमाग़ में गुलजारीलाल नंदा थे जो शास्त्री के निधन के बाद कार्यवाहक पीएम बनाए गए थे.”
अपनी अलग पार्टी बनाई…
लेकिन राजीव गांधी के रिश्ते के भाई अरुण नेहरू और तत्कालीन राष्ट्रपति जैल सिंह ने ऐसा नहीं होने दिया, संजय गांधी की अचानक मौत के बाद अनमने ढंग से राजनीति में आए राजीव पार्टी के युवा और अनुभवहीन महासचिव थे, उन्हें सरकार में काम करने का कोई अनुभव नहीं था.
राजीव गांधी ने जब अपनी कैबिनेट बनाई तो उसमें जगदीश टाइटलर, अंबिका सोनी, अरुण नेहरू और अरूण सिंह जैसे युवा चेहरे थे लेकिन इंदिरा गांधी की कैबिनेट में नंबर-2 रहे प्रणब मुखर्जी को मंत्री नहीं बनाया गया.
इससे दुखी होकर प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और अपनी अलग पार्टी बनाई. राशिद किदवई कहते हैं कि काफ़ी समय तक प्रणब हाशिए पर ही रहे, उनकी पार्टी कुछ नहीं कर पाई.
किदवई बताते हैं, “कांग्रेस में लौट आने के बाद जब उनसे उनकी पार्टी के बारे में पूछा जाता था तो वे हँसकर कहते थे कि मुझे अब उसका नाम भी याद नहीं है.”
राजीव गांधी की हत्या के बाद
जब तक राजीव गांधी सत्ता में रहे प्रणब मुखर्जी राजनीतिक वनवास में ही रहे. राजीव गांधी की हत्या के बाद पीवी नरसिंह राव को प्रधानमंत्री बनाया गया, राव प्रणब मुखर्जी से सलाह-मशविरा तो करते रहे, लेकिन किदवई बताते हैं कि उन्हें फिर भी कैबिनेट में जगह नहीं दी गई.
राव के ज़माने में प्रणब मुखर्जी ने धीरे-धीरे कांग्रेस में वापसी शुरू की, नरसिंह राव ने उन्हें 1990 के दशक के शुरू में योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया और वे पाँच साल तक इस पद पर रहे.
जब पीएम नरसिंह राव के सामने अर्जुन सिंह राजनीतिक चुनौती और मुसीबत के तौर पर उभरने लगे तो राव ने उनकी काट करने के लिए उन्हें 1995 में विदेश मंत्री बनाया.
इसके बाद कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई तो 2004 में उसकी वापसी हो पाई, 2004 में सोनिया गांधी ने विदेशी मूल का व्यक्ति होने की चर्चाओं के बीच घोषणा कर दी कि वे प्रधानमंत्री नहीं बनेंगी.
इसके बाद उन्होंने मनमोहन सिंह को पीएम पद के लिए चुना, प्रणब मुखर्जी के हाथ से मौक़ा एक बार फिर निकल गया.
‘अपसेट’ होने का जायज़ कारण
राशिद किदवई कहते हैं, “राजनीति में वफ़ादारी का बहुत महत्व होता है, सोनिया गांधी अपने किसी वफ़ादार को पीएम बनाना चाहती थीं, वो वफ़ादार प्रणब मुखर्जी नहीं हो सकते थे, क्योंकि वे एक बार पार्टी छोड़ चुके थे, साथ ही वे किसी ग़ैर-राजनीतिक व्यक्ति को पद पर बिठाना चाहती थीं, मुखर्जी विशुद्ध राजनीतिक व्यक्ति हैं.”
ये एक विडंबना ही थी कि जिस व्यक्ति को प्रणब मुखर्जी ने रिज़र्व बैंक का गवर्नर बनवाया था वो व्यक्ति प्रधानमंत्री बना और मुखर्जी उनकी कैबिनेट में मंत्री बनाए गए. मनमोहन सिंह के दोनों कार्यकाल में, राष्ट्रपति बनने से पहले तक सारे राजनीतिक मामलों को मुखर्जी ही संभालते रहे थे.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी माना था कि प्रधानमंत्री न बनाए जाने पर प्रणब मुखर्जी के पास ‘अपसेट’ होने का जायज़ कारण था, क्योंकि वे इस पद के लिए योग्य थे.
मनमोहन सिंह ने प्रणब मुखर्जी की किताब ‘द कोलिएशन ईयर्स: 1996-2012’ के विमोचन के मौक़े पर यह बात कही. इसी किताब में प्रणब ने लिखा है कि सोनिया गांधी के पद ठुकराने के बाद सबको यही लगा था कि उन्हें प्रधानमंत्री बनाया जाएगा.
कांग्रेस में रहते हुए…
जानी-मानी पत्रकार कल्याणी शंकर ने एक लेख में लिखा है कि “प्रणब मुखर्जी वो बेहतरीन पीएम हैं जो देश को मिला ही नहीं और वे ये बात जानते हैं और उन्हें इसका मलाल भी है.”
THE PRINT में छपे लेख में वे लिखती हैं कि संघ मुखर्जी की मौजूदगी को इस तरह प्रचारित करेगा कि “आरएसएस से नेहरू-गांधी परिवार को बैर है, बाक़ी किसी और को नहीं.”
मुखर्जी संघ के कार्यक्रम में क्या बोलते हैं इसका इंतज़ार सबको है, लेकिन कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने संघ की राजनीति की लगातार आलोचना ही की है, अब वे कांग्रेस के नेता नहीं हैं इसलिए कुछ जानकारों का मानना है कि वे गांधी परिवार को परेशानी में डालने से नहीं हिचकेंगे क्योंकि परिवार से उन्हें कोई सहानुभूति नहीं है.
वे संघ के कार्यक्रम में ऐसे वक़्त जा रहे हैं जबकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने संघ के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला हुआ है.
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