दहेज हत्या का दर्दनाक चेहरा: निक्की भाटी केस ने उठाए बड़े सवाल, NCRB की ताजा रिपोर्ट में हुए चौकाने वाले खुलासे

ग्रेटर नोएडा की 28 वर्षीय निक्की भाटी की मौत ने पूरे देश को झकझोर दिया है। आरोप है कि ससुरालवालों ने अतिरिक्त दहेज की मांग पूरी न होने पर उसे आग के हवाले कर दिया। निक्की कोई अकेली महिला नहीं है, जो इस सामाजिक बुराई की शिकार हुई हो। देशभर में हर साल हजारों बेटियां दहेज के लालच में अपनी जान गंवा रही हैं।
निक्की की मौत के बाद राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताज़ा रिपोर्ट ने भी चौंकाने वाला सच सामने रखा है। आंकड़े बताते हैं कि भारतीय दंड संहिता की धारा 304बी (दहेज हत्या) के तहत सिर्फ एक साल में 6,516 महिलाओं की मौत हुई। यह संख्या बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के बाद हुई हत्याओं से 25 गुना अधिक है।
2022 में दर्ज हुए 13,641 मामले
रिपोर्ट के अनुसार, 1961 के दहेज निषेध अधिनियम के तहत 2022 में केवल 13,641 दहेज उत्पीड़न के केस दर्ज किए गए। विशेषज्ञों का कहना है कि असली संख्या इससे कहीं ज्यादा है, क्योंकि अधिकांश मामले या तो दर्ज ही नहीं होते या दबा दिए जाते हैं।
एनसीआरबी के अनुसार, अधिकतर महिलाएं कानून का सहारा तब तक नहीं लेतीं, जब तक स्थिति जानलेवा न हो जाए। निक्की भाटी का केस इसका ताज़ा उदाहरण है।
अदालतों में अटके हजारों केस
न्याय मिलने की प्रक्रिया भी बेहद धीमी है। 2022 के अंत तक अदालतों में 60,577 दहेज हत्या के मामले लंबित थे। इनमें से ज्यादातर पुराने केस हैं। उस साल कुल 3,689 मामलों में सुनवाई पूरी हुई, लेकिन सिर्फ 33% मामलों में दोष सिद्ध हुआ।
इसी अवधि में दहेज उत्पीड़न के 6,161 मामलों की सुनवाई हुई, जिनमें से केवल 99 मामलों में सजा हुई। इसका सीधा मतलब है कि किसी भी पीड़िता को एक साल के भीतर न्याय मिलने की संभावना 2% से भी कम है।
दहेज की परिभाषा और समाज की सोच
कानून की नजर में दहेज अपराध है, मगर समाज में इसे अब भी परंपरा या “तोहफा” कहकर जायज ठहराने की कोशिश होती है। शादी को प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाता है और दहेज को सामाजिक रुतबे का हिस्सा बना दिया गया है। लेकिन चाहे दहेज कितना भी दिया जाए, लालच कभी खत्म नहीं होता।
आंकड़ों से खुलती हकीकत
2010 की एक रिसर्च बुक “भारत में मानव विकास: परिवर्तन में एक समाज के लिए चुनौतियां” के मुताबिक, दुल्हन के परिवार का शादी का खर्च दूल्हे के परिवार से औसतन 1.5 गुना ज्यादा होता है। करीब 24% परिवारों ने टीवी, फ्रिज, कार या बाइक जैसे सामान दहेज में देने की बात स्वीकार की।
एक सर्वे में 29% लोगों ने यह माना कि अगर दहेज की उम्मीद पूरी नहीं होती, तो महिला को पीटना “सामान्य” माना जाता है। यह मानसिकता ही उन हजारों हत्याओं की जड़ है, जिनकी गिनती हर साल रिपोर्टों में दर्ज होती है।
निक्की भाटी की मौत एक चेहरा है, लेकिन इसके पीछे पूरे समाज की खामोश सहमति छिपी है। सवाल सिर्फ यह नहीं कि दहेज कब खत्म होगा, बल्कि यह भी कि न्याय व्यवस्था और कानून कब तक पीड़िताओं को सिर्फ आंकड़ों में बदलते रहेंगे?