छत्तीसगढ़
कोरोना काल में शिक्षा का बदलता परिदृश्य, शिक्षा में निवेश और ज्यादा बढ़ाने की जरूरत…
रायपुर। पब्लिक रिलेशन्स सोसाइटी आफ इंडिया रायपुर चैप्टर द्वारा आज रविवार को “कोरोना काल में शिक्षा का बदलता परिदृश्य” विषय पर एकदिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय, बिलासपुर के कुलपति प्रो.(डॉ.) ए.डी.एन.बाजपेयी ने कहा कि आज शिक्षा ने तकनीक को विकल्प के रूप में अपनाया है लेकिन तकनीक कभी भी क्रिएटिविटी पैदा नहीं कर सकती है वह केवल पारंपरिक और संस्कार युक्त शिक्षा में ही पैदा हो सकती है।

उन्होंने कोरोना काल में शिक्षा के डिजिटल डिवाइड पर कहा कि इसने हमें बहुत रूप में विभाजित किया है जिसका कारण आर्थिक स्थिति में बदलाव है, यह बदलाव उत्पादन हो या फिर वितरण सभी क्षेत्रों में देखने को मिला है जिसे तकनीक पूरा नहीं कर सकती है। नई शिक्षा नीति बनाने से ही शिक्षा का कल्याण नहीं होगा बल्कि संरचना के साथ-साथ हमें इंडिजिनियस ज्ञान पर भी बल देने की आवश्यकता है। जब तक किसी देश की सरकारें वहां की जनता के अनुकूल नीति नहीं बनायेगी तब तक नीति निर्माण का कोई महत्व नहीं रहेगा। डॉ. बाजपेयी ने शिक्षकों में प्रतिबद्धता की जरूरत को भी आवश्यक माना जिसे आत्मबल से ही पैदा किया जा सकता है।

परीक्षा मूल्यांकन पद्धति पर अपनी बात रखते हुए कहा कि जो पुरानी शिक्षा प्रणाली थी उसी से आज हम सब यहां तक पहुँचे है तो वह गलत कैसे हो सकती है इस पर सोचने और विमर्श करने की जरूरत है। हमें जिस मुद्दों पर बात करनी चाहिए उस पर बात नहीं करते है बल्कि हमें आत्मनिर्भरता की बात के साथ स्वदेशी मॉडल पर भी बात करनी चाहिए और विकेंद्रीकरण और पर्यावरण जैसे गंभीर विषयों पर भी सोचने की जरुरत है।

वेबीनार की अध्यक्षता करते हुए हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग की कुलपति डॉ. अरूणा पल्टा ने कहा कि कोरोना काल के कारण शिक्षा पद्धति में बहुत कुछ बदलाव आया है जिसमें परीक्षा में भी बदलाव की स्थिति आ गई है। अगर यही स्थिति लगातार बनी रही तो शिक्षा के नए परिदृश्य पर गंभीरता से विचार होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आनलाईन पद्धति के परिवेश से शिक्षको और विद्यार्थियों में असहजता महसूस की जाती है और असमंजस्य की स्थिति है। प्रो. पल्टा ने आज के दौर में बदलते शिक्षा परिदृश्य पर तीन सवाल रखे जिसमें पहला यह कि बिना कॉलेज परिवेश के विद्यार्थी कैसा महसूस करते हैं। दूसरा आज शिक्षक की स्थिति कैसी है केवल जैसा चल रहा है वैसा ही विकल्प के साथ शिक्षा देनी होगी। तीसरा आज की परीक्षा पद्धति कितनी सार्थक है।

प्रो. पल्टा ने सुझाव देते हुए कहा कि कोरोना काल में हमें ऑनलाइन शिक्षा और सीखने की कला को और सशक्त बनना की जरूरत है। अमीर और गरीब में शिक्षा का अंतर अधिक न हो जाए इसका भी ध्यान रखने की जरूरत है। शिक्षकों के लिए यह समय अधिक से अधिक विचार विमर्श का है। विद्यार्थी और शिक्षक के बीच अनुशासन व जवाबदेही को और अधिक मजबूत करने की आवश्यकता है। वहीं अगर भविष्य में सामान्य शिक्षा लागू भी हो तो हमें ऑनलाइन शिक्षा को जारी रखना होगा ताकि भविष्य के लिए हम तैयार हो सकें।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता सेंटर फॉर मैनेजमेंट स्टडीज, जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली के प्रो.(डॉ.) फुरकान क़मर ने कहा कि कोरोना काल ने सबको हैरत में डाल दिया है जिसमें जीविका और जीवन बचाने की चुनौती देखी जा सकती है। जिसमें एक को बचाने में दूसरे को खोना पड़ रहा है। शिक्षा क्षेत्र भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। इस स्थिति के कारण विश्वविद्यालय सबसे दूर हो गये है चाहे वह विद्यार्थी हो या फिर शिक्षक। ऑनलाइन शिक्षा ने इस दुविधा को दूर करने में सहयोग तो दिया है पर कुछ शंका भी पैदा की है। जिसमें विद्यार्थी कुछ सीख भी रहे या नहीं यह समझना मुश्किल है।

