तुर्की को महंगा पड़ा भारत से पंगा, 770 करोड़ रुपये का होगा नुकसान, एर्दोगान की उड़ेगी नींद

भारत और तुर्की के बीच हाल ही में उत्पन्न हुए राजनीतिक तनाव का असर अब व्यापारिक संबंधों पर साफ़ दिखाई देने लगा है। तुर्की द्वारा भारत के आंतरिक मामलों में टिप्पणी करना और लगातार पाकिस्तान का समर्थन करना अब उसे भारी पड़ता नजर आ रहा है। भारत ने तुर्की से होने वाले कुछ अहम आयातों पर न केवल रोक लगाने की प्रक्रिया शुरू की है, बल्कि वैकल्पिक आपूर्ति श्रोतों की तलाश भी तेज़ कर दी है। इससे तुर्की को अनुमानित रूप से 770 करोड़ रुपये (7704058500) का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है।
भारत का तुर्की को सख्त संदेश
तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान ने कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान का समर्थन किया था, जिससे भारत सरकार खासा नाराज हुई थी। यह पहला मौका नहीं है जब एर्दोगान ने कश्मीर पर बयान दिया हो, लेकिन इस बार भारत ने इसे गंभीरता से लिया है और जवाबी कार्रवाई के संकेत दिए हैं।
भारत सरकार ने कूटनीतिक स्तर पर यह स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी देश यदि भारत की संप्रभुता और अखंडता पर सवाल उठाएगा, तो इसके व्यापारिक और आर्थिक संबंधों पर सीधा असर पड़ेगा।
तुर्की को कितना होगा नुकसान?
भारत और तुर्की के बीच सालाना व्यापार लगभग 7 अरब डॉलर (करीब 58,000 करोड़ रुपये) के आसपास रहता है। भारत तुर्की से मशीनरी, खनिज, कीमती पत्थर, रसायन और स्टील जैसी वस्तुएं आयात करता है। वहीं भारत तुर्की को ऑटो पार्ट्स, टेक्सटाइल, केमिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स का बड़ा निर्यातक है।
हाल ही में भारत सरकार ने तुर्की से आयातित कुछ उत्पादों पर सख्त जांच और क्लियरेंस में देरी की नीति अपनाई है। इसके कारण तुर्की के व्यापारिक निर्यातकों को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। अनुमान है कि तुर्की को अकेले 770 करोड़ रुपये का नुकसान सिर्फ भारत से होने वाले निर्यात में गिरावट के चलते झेलना पड़ेगा।
वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता तलाश रहा भारत
भारत ने तुर्की से आने वाले निर्माण क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले स्टील और अन्य औद्योगिक उत्पादों की जगह अब वियतनाम, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों से समझौते करना शुरू कर दिया है। इसके अलावा भारत की कई निजी कंपनियों ने भी तुर्की से व्यापार घटाने और दूसरे देशों से आयात बढ़ाने की दिशा में कदम उठाया है।
एर्दोगान की मुश्किलें बढ़ीं
तुर्की पहले से ही गंभीर आर्थिक संकटों से जूझ रहा है। वहां महंगाई दर रिकॉर्ड स्तर पर है और मुद्रा लिरा (Lira) की कीमत में लगातार गिरावट हो रही है। अब भारत जैसे विशाल बाज़ार से व्यापार घटने से तुर्की की अर्थव्यवस्था को और झटका लगेगा।
भारत से होने वाले नुकसान से न केवल तुर्की के व्यापारियों में बेचैनी बढ़ी है, बल्कि एर्दोगान की सरकार पर भी दबाव बन रहा है। विपक्षी दल अब सरकार की विदेश नीति की आलोचना कर रहे हैं और कह रहे हैं कि भारत जैसे बड़े आर्थिक साझेदार से रिश्ते खराब करना देशहित में नहीं है।
तुर्की ने जब भारत की संप्रभुता को चुनौती देने की कोशिश की, तो उसे इसका व्यापारिक मूल्य चुकाना पड़ रहा है। भारत अब साफ संकेत दे चुका है कि उसकी विदेश नीति अब “कूटनीति और व्यापार एक साथ” के सिद्धांत पर आधारित होगी। यदि कोई देश भारत के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप करेगा, तो उसे व्यापारिक रूप से भी गंभीर नुकसान उठाना पड़ेगा।
यह घटनाक्रम अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक स्पष्ट संदेश देता है – “भारत अब सिर्फ प्रतिक्रिया नहीं करता, बल्कि कार्रवाई भी करता है।”