Live in Relationship : इस आधुनिक युग में हमारी युवा पीढ़ी एक शादीशुदा जीवन जीने से बेहतर लिव इन रिलेशनशिप में रहना पसंद कर रही है। लोग शादी और लिव इन में कोई फर्क नहीं मानते । लिव इन ने कई लोगों के जीवन जीने का तरीका और लोगों की सोच बदली है, लेकिन लिव इन रिलेशनशिप को एक हाईक्लास सोसाइटी और खुले विचार के लोग ही अच्छा मानते है। मिडिल क्लास लोगों का नज़रिया लिव इन को लेकर कुछ और ही है। मिडिल क्लास लोगों को लिव इन में रहना अब भी अभिशाप जैसा है।
तो आप सोच रहे होंगें की लिव इन रिलेशनशिप किस बला का नाम है। आपको बता दें लिव इन रिलेशनशिप में लड़का – लड़की एक साथ एक ही घर में बिना शादी के रहते हैं और बिना शादी के भी गृहस्त जीवन का आनंद लेते है। साफ़ शब्दों में कहें तो एक पति – पत्नी की तरह रहते हैं, लेकिन इन्हे बिना शादी के ऐसा जीवन जीता देख समाज इन पर कई पाबंदिया लगता है और इन्हे नफरत की नज़र से देखता है जिसके कारण लिव इन में रहने वाले कपल्स को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
लिव इन में रहने वाले कपल्स की दिक्कतें
मिडिल क्लास से आने वाले और सेंकेंड टायर सिटी और कस्बों से आने वाले कपल्स, जो ज्यादातर महानगरों में आकर लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं। उनके लिए लिव इन में रहना टेढ़ी खीर साबित होता है। उन्हें रोजाना तरह- तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। पहले तो उन्हें कोई किराए पर मकान नहीं देता उसके बाद अगर मकान मिल गया तो आसपास के लोगों की मोरल पोलिसिंग और हरासमेंट भी उन्हें सहनी पड़ती है। लोग ये भी सोच लेते हैं कि अगर कोई कपल लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा है, तो इसका मतलब तो यही है कि वो भविष्य में शादी जरूर करेगा। इस तरह के अनुभवों लिव इन रिलेशनशिप में रह रही एक कपल ने हमें बताया ।
25 साल की एक मीडियाकर्मी हमें बताती हैं कि वह बिहार से ताल्लुक रखती हैं। पिछले कुछ सालों से दिल्ली में ही अपनी नौकरी करती हैं और वो यहीं रहती हैं। वो पिछले दो साल से लिव इन रिलेशनशिप में रह रही हैं और उन्हें रोजाना काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
वह बताती हैं कि “मैं शुरुआत में मुनिरिका में रही। मुनिरिका में किराए पर मकान मिलने में तो उतनी दिक्कत नहीं हुई। क्योंकि वहां सारा मामला किराए का है। अगर आप रेंट दे सकते हैं तो इतनी दिक्कत नहीं होती। लेकिन मोरल पोलिसिंग होती है। दूसरा, ये कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल्स से ज्यादा किराया लिया जाता है। मकान मालिक एक तरह से उनकी मजबूरी को एक्सप्लोइट करते हैं। मुनिरिका के हाई स्टेटस वाले इलाकों में तो किराए पर फ्लैट मिलना बहुत मुश्किल है। एक तो कोई कपल्स को फ्लैट देना नहीं चाहता। दूसरा, वहां मोरल पोलिसिंग बहुत ज्यादा है। एक विशेष धर्म के लोगों को फ्लैट नहीं मिलता और भी तरह-तरह की बंदिशें होती हैं” ।
मोरल पोलिसिंग क्या ? “मोरल पोलिसिंग अलग ही लेवल पर पहुंच जाती है । आस- पास के लोग ये मानने लगते हैं कि फलाने लड़का- लड़की कभी ना कभी तो शादी करेंगे ही ।इसलिए ही तो साथ रह रहे हैं। इस तरह का दबाव इतना ज्याद बढ़ जाता है कि एक बार तो मुझे कहना पड़ा कि हमारी इंगेजमेंट हो चुकी है। फिर एक बार एक आंटी आईं। करवाचौथ वाले दिन। कहने लगीं कि कम से आज के दिन तो तुलसी पर जल चढ़ा दो। एक बार मेरे पार्टनर को काम से बाहर जाना था। उसी वक्त हमारा एक कॉमन फ्रैंड फ्लैट पर आ गया। वो कुछ दिन रुका। इससे भी लोगों को प्रॉब्लम हो गई। मतलब लोग यही चाहते हैं कि कोई और दूसरा लड़का आपके यहां ना आए”।
वह ये भी बताती हैं कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल्स में लड़कियों को उनके मेल पार्टनर से ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। उनकी मोरल पोलिसिंग भी मेल पार्टनर से ज्यादा होती है। वह बोलती हैं की लिव इन रिलेशनशिप में रहना एक लड़की के लिए एक हद तक लिबरेंटिंग है, यानी कई तरह के बंधनों से थोड़ी सी ही सही लेकिन आजादी तो मिलती है और इस थोड़ी बहुत आजादी को भी लोगों द्वारा कंट्रोल करने की कोशिश की जाती है। शायद इसलिए लड़के भले ही अपनी लिव इन रिलेशनशिप के बारे में घरवालों को बता दें, लेकिन लड़कियों को अपने लिव इन के बारे में घर में बताना बहुत मुश्किल होता है।
लिव इन के लिए क्या कहता है कानून?
लिव इन रिलेशनशिप्स को लेकर हमारे देश में समय- समय पर कई मुद्दे उठे और इसके लिए कई कानूनी लड़ाइयां भी लड़ी गई हैं। अलग-अलग अदालतों ने इस संबंध में ऐतिहासिक फैसले सुनाए हैं। कुछ ऐसे ही फैसलों के बारे में हमें जानकारी दी सुप्रीम कोर्ट की वकील देविका ने उन्होंने बताया- “सबसे पहले बद्री प्रसाद बनाम डॉयरेक्ट ऑफ कन्सोलिडेशन केस की बात बताती हूं। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 50 साल से साथ रह रहे कपल के संदर्भ में लिव इन रिलेशनशिप को इंट्रोड्यूस किया था। दोनों बिना शादी के साथ रह रहे थे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में एक और फैसला सुनाया था। इसमें कोर्ट ने कहा था कि अगर दो बालिग लोग बिना शादी के अपनी मर्जी से काफी लंबे समय तक साथ रह रहे हैं, तो उनकी रिलेशनशिप को लिव इन रिलेशनशिप कंसीडर किया जाएगा।
2010 में सुप्रीम कोर्ट ने एक और जजमेंट दिया। एस खुशबू बनाम कन्हैया अम्बल के नाम से इसे जाना गया। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप आर्टिकल 21 के तहत राइट टू लाइफ में कवर होता है । सबसे बड़ा जजमेंट 2013 में आया। इंद्रा शर्मा बनाम वीके वी शर्मा। इसमें सुप्रीम कोर्ट लिव इन रिलेशनशिप को डोमेस्टिक वायलेंस की एम्बिट में लाया।”
इस फैसले के बाद हम इस बात पर आते हैं कि हमारा संविधान लिव इन रिलेशनशिप को किस तरह से देखता है। संविधान के एक अनुच्छेद आर्टिकल 21 यह भारत के नागरिकों को पूरी आजादी से जीवन जीने का अधिकार देता है और इस नजरिए से लिव इन रिलेशशिप को एक अधिकार के तौर पर देखता है। संविधान कहता है कि अगर दो लोग शांतिपूर्ण तरीके से सहमति के साथ रह रहे हैं, तो दूसरे लोगों को उनके बीच दखल देने का अधिकार नहीं है। दुसरो के दखल देने पर वे कानूनी सहायता भी ले सकते हैं।
लिव इन को लेकर के कहती हैं एडवोकेट देविका “लिव इन रिलेशनशिप को कानून में किसी विशेष तरीके से डिफाइन नहीं किया गया है। कानून इसे इन द नेचर ऑफ मैरिज के तौर पर देखता है। इसके अलग-अलग पैरामीटर्स हैं। रिलेशनशिप का टाइम बहुत मैटर करता है। ये नहीं हो सकता कि आप दो दिन साथ रहे फिर अलग हो गए।फिर दोबारा 6 महीने के बाद साथ रहने लगे। ये नहीं हो सकता। आप समाज के साथ किस तरह का संबंध बनाकर रखते हैं। एक साथ एक ही घर में रहना जरूरी है। एक दूसरे के प्रति जो जिम्मेदारियां हैं, उन्हें निभाना जरूरी है। समाज में तो लिव इन रिलेशनशिप को अनैतिक समझा जाता है लेकिन कानून इसे हमारा अधिकार मानता है और अगर कपल्स को लगता है कि उन्हें किसी से खतरा है तो वे कानूनी मदद ले सकते हैं। पुलिस से प्रोटेक्शन मांग सकते हैं.”
लिव इन रिलेशनशिप का एक पहलू संतान भी है लिव इन रिलेशनशिप में रहते हुए कपल्स की अगर कोई संतान हो जाती है, तो उसका क्या स्टेटस होगा, उसके क्या अधिकार होंगे ? इसके बारे में भी एडवोकेट देविका बताती हैं।
“2008 के तुलसा एंड अदर्स बनाम दुर्गत्या एंड अदर्स के केस में कोर्ट ने इस बारे में चीजें साफ की हैं. इसमें कोर्ट ने वॉक इन और वॉक ऑउट टर्म को इंट्रोड्यूस किया। इसमें कोर्ट ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप में पैदा हुए बच्चों को अवैध नहीं कहा जा सकता। और उनके भी अधिकार उतने ही हैं, जितने किसी दूसरे बच्चे के वे भी अपने पैरेंट्स की संपत्ति में अधिकार मांग सकते हैं। दूसरी तरफ अगर महिलाओं को लग रहा है कि वे प्रताड़ना का शिकार हो रही हैं लिव इन रिलेशनशिप में तो वे भी प्रॉपर्टी और मेंटेनेंस क्लेम कर सकती हैं।”
लिव इन रिलेशनशिप में रहना किसी भी लड़का या लड़की का कानूनी रूप से अधिकार है लेकिन हमें सामाजिक रूप से भी यह अधिकार कपल्स को देना होगा, बात सिर्फ इतनी होती कि आप अपने घर में किसी गैर- शादीशुदा कपल को कमरा देते है तो भले ही आपको अजीब लगे।तो भी आप इस बात को पचा सकते हैं।
लेकिन हम तो दूसरों के घरों में झांकने वाले लोग हैं।किसके घर में क्या चल रहा? कौन कहा आया ? कहाँ गया? हम बस यही करते रहते हैं जो हमसे बात नहीं करता या हम जिसे जानते नहीं, उनको भी हम एक मिनट में जज कर लेते हैं। पता है, फलाने के घर में जो लड़का रहता है। उससे हमेसा एक लड़की मिलने आती है। अरे भाई शांति से रह रहे किसी भी व्यक्ति के जीवन में ताका झांकी करने से आपको क्या मिलेगा। दुनिया में और भी बुरे लोग हैं। जो सार्वजनिक मंचों से दो गुटों में लड़ाई कराते रहते हैं। अपनी नफरतें उनके लिए बचाकर रखें और उनके बारे मे बात करे उनमे ताका झांकी करे तो कोई फायदा होगा और देश भी सुधरेगा।