गुप्तचर विशेषभारत

आज का दिन है बेहद खास, आजाद हिंद फौज ने उत्तर पूर्व में आकर पहली बार फहराया था तिरंगा, जानिए इससे जुड़ी कुछ रोचक बातें…

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अगुआई में भारत की आजादी के संघर्ष में आजाद हिंद फौज ने काफी अहम भूमिका निभाई। उस दौरान जब पूरी दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध में उलझी हुई थी तो भारत की आजादी के लड़ने वाला एक बड़ा तबका अंग्रेजों के खिलाफ होने था। इसके साथ ही साथ फासिस्ट ताकतों के भी खिलाफ था।
इस बीच नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भारत की एक सेना तैयार की। उन्होंने उसमें ऐसा जोश भरा जो सिंगापुर से होते हुए पूर्वोत्तर में दाखिल होने में कामयाब रही। पहली बार देशवासियों ने फौजी अंदाज में अंग्रेजों से अपनी जमीन वापस ली थी।
READ MORE: गौरीशंकर को मिली प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी, कहा- जमीन से जुड़ा नेता हूं, पार्टी मेहनत करने वालो को आगे बढ़ाती है
आजाद हिंद फौज के मिलने से पहले नेताजी सुभाषचंद्र बोस को काफी कोशिश करनी पड़ी। अंग्रेजों को चकमा देते हुए अफगानिस्तान, रूस के रास्ते जर्मनी पहुंचना वहां निराशा हाथ लगने के बाद सिंगापुर पहुंचना एक बहुत ही संघर्षपूर्ण यात्रा थी। इसके बाद सिंगापुर में उन्हें आजाद हिंद फौज का नेतृत्व करने का अवसर मिला। उन्होंने जापान से हाथ मिलाया और फौज के साथ भारत की ओर कूच किया।
19 मार्च 1944 को कर्नल शौकत मलिक ने कुछ मणिपुरी और आजाद हिंद के साथियों की सहायता से पूर्वोत्तर में देश की जमीन में प्रवेश कर वहां उस समय फौज द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय झंडा फहराया। कर्नल शौकत अली मलिक ने इस लड़ाई में आजाद हिंद फौज की बहादुर रेजिमेंट का नेतृत्व किया था। बताया जाता है कि इसी घटना पर बिमल राय ने पहला आदमी नाम की एक फिल्म भी बनाई थी।
READ MORE: पुलिस से मारपीट: बिहार से आरोपी को गिरफ्तार कर छत्तीसगढ़ ला रही थी टीम, बदमाश ने की भागने की कोशिश, फिर…
जब यह घटना घटी उसके दो दिन बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने दिल्ली चलो का नारा दिया था। बाद में आजाद हिंद फौज ने मोइरंग में 14 अप्रैल को कब्जा किया जहां कर्नल मलिक ने तिरंगा फहराया। मोइरांग को ही आजाद हिंद फौज का भारतीय मुख्यालय बनाया गया। यह सब मणिपुरी लोगों की मदद से ही संभव हो पाया था। आज यहां भारत की स्वतंत्रता के उस संघर्ष को दर्शाता एक भारतीय राष्ट्रीय सेना संग्रहालय भी है।
फिर फौज को एक साथ कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। बारिश की वजह से आना जाना मुश्किल हो गया। इसकी वजह से जवानों की सेहत प्रभावित होने लगी। रसद के पहुंचने में परेशानी तो हो रही थी लेकिन संचार में बहुत मुश्किल होता गया। जापानी सेना ने भी मदद करनी ढीली कर दी। इन सबके कारण आजाद हिंद फौज को जापानी सेना के साथ पीछे हटना पड़ गया।
अनोखा तिरंगा
जो तिरंगा कर्नल शौकत मलिक ने फहराया था वह तिरंगा अलग अलग झंडा था। यह वह नहीं है जो आज हमारा राष्ट्रीय ध्वज है। यह झंडा कुछ अलग था। इसमें नारंगी सफेद और हरे रंग की तीन पट्टियां तो थी, मगर सफेद पट्टी ज्यादा चौड़ी थी जिसके बीचों बीच एक उछलता हुए बाघ की तस्वीर थी। इसके अतिरिक्त पहली नारंगी पट्टी पर आज़ाद और निचली हरी पट्टी पर हिन्द लिखा हुआ था।

Related Articles

Back to top button