
झालावाड़: राजस्थान के झालावाड़ ज़िले के पिपलोदी गांव में 25 जुलाई 2025 को एक दर्दनाक हादसा हुआ, जब एक सरकारी उच्च प्राथमिक विद्यालय की जर्जर छत सुबह की प्रार्थना सभा के दौरान अचानक गिर गई। यह हादसा तब हुआ जब बच्चे परिसर में कतार में खड़े थे। कुछ बच्चों ने शिक्षकों को चेताया था कि छत से कंकड़ और प्लास्टर गिर रहे हैं, लेकिन उनकी बात को नजरअंदाज कर दिया गया। कुछ ही मिनटों में छत भरभराकर गिर गई और दर्जनों बच्चे मलबे में दब गए। इस भयावह दुर्घटना में सात मासूमों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि 28 बच्चे गंभीर रूप से घायल हुए हैं।
स्थानीय ग्रामीणों ने तत्परता दिखाते हुए मलबा हटाया और बच्चों को अस्पताल पहुंचाया। घटना के बाद राज्य में हड़कंप मच गया। जिला प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई करते हुए स्कूल की प्राचार्य मीना गर्ग सहित पांच शिक्षकों और एक शिक्षा अधिकारी को निलंबित कर दिया है। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने हादसे की नैतिक जिम्मेदारी ली और साफ कहा कि लापरवाही करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने मृतकों के परिजनों को ₹10 लाख की आर्थिक सहायता और एक सदस्य को संविदा नौकरी देने की घोषणा की है।
इस हादसे से एक और चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई है – शिक्षा विभाग ने 14 जुलाई को ही सभी सरकारी स्कूलों को चेतावनी जारी की थी, जिसमें जर्जर इमारतों की मरम्मत और खतरनाक कक्षाओं को बंद करने का निर्देश दिया गया था। लेकिन पिपलोदी स्कूल को इस सूची में शामिल नहीं किया गया, और न ही कोई निरीक्षण किया गया। इससे प्रशासन की गंभीर लापरवाही उजागर हो गई है।
सरकार ने अब पूरे राजस्थान में जर्जर स्कूल भवनों की मरम्मत के लिए ₹200 करोड़ का विशेष बजट घोषित किया है। साथ ही, मृत बच्चों की याद में स्कूल में नए कक्ष बनाए जाएंगे। इस मामले में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने भी स्वतः संज्ञान लिया है और मुख्यमंत्री कार्यालय, कलेक्टर और एसपी से तीन दिन के भीतर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
यह हादसा सिर्फ एक निर्माण दुर्घटना नहीं, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र की उदासीनता का परिणाम है, जिसने सात मासूमों की ज़िंदगी लील ली। अब यह देखना होगा कि क्या सरकार इस दर्दनाक घटना को एक चेतावनी मानकर स्थायी सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाती है या यह भी अन्य हादसों की तरह धीरे-धीरे भुला दिया जाएगा।