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क्या छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल भ्रष्टाचार, अराजकता और साजिशों का गढ़ बन गया है?

Mekahara Hospital: रायपुर का डॉ. भीमराव अंबेडकर मेमोरियल अस्पताल, जिसे आम बोलचाल में ‘मेकाहारा’ कहा जाता है, एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गया है। राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में हाल ही में जो घटना घटी, उसने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ – मीडिया – की स्वतंत्रता और सरकारी संस्थानों की पारदर्शिता दोनों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

इस रिपोर्ट में हम विस्तार से जानेंगे कि आखिर ऐसा क्या हो रहा है मेकाहारा में कि वहां बाउंसरों की तैनाती जरूरी हो गई है, और क्यों पत्रकारों को खबरें कवर करने से रोका जा रहा है?

जब अस्पताल बना ‘अघोषित नो मीडिया जोन’

घटना की शुरुआत तब हुई जब कुछ पत्रकार एक चाकूबाजी के घायल पीड़ित का हाल जानने और उसकी स्थिति की रिपोर्टिंग करने के लिए अस्पताल परिसर पहुंचे। पत्रकारों का आरोप है कि उन्हें बाउंसरों ने जबरन बाहर निकाल दिया। मामला तब और बढ़ गया जब बाउंसरों की आपूर्ति करने वाली एजेंसी का संचालक वसीम खुद पिस्तौल लेकर अस्पताल पहुंचा और पुलिस की मौजूदगी में पत्रकारों को खुलेआम धमकाया।

क्या अस्पताल बन गया है अपराधियों का सुरक्षित अड्डा?

* सिर्फ सुरक्षा या कुछ छिपाने की कोशिश?

  मेकाहारा में बाउंसरों की नियुक्ति का तर्क सुरक्षा बताया गया था, लेकिन पत्रकारों के साथ हुई मारपीट ने यह संदेह पैदा कर दिया है कि कहीं यह सुरक्षा के नाम पर सूचना छिपाने का हथकंडा तो नहीं?

* बंदियों के लिए वीआईपी सुविधा?

  कई बार आरोप लगे हैं कि जेल के कैदी इस अस्पताल को अय्याशी का अड्डा बनाकर उपयोग कर रहे हैं। क्या बाउंसर इन ‘स्पेशल’ कैदियों की सुविधा के लिए तैनात हैं?

* नेता-अफसरों की संलिप्तता?

  जिस तरह से इस एजेंसी को कांग्रेस शासनकाल से लेकर भाजपा शासनकाल तक एक्सटेंशन मिलता रहा है, वह इस बात को और संदिग्ध बनाता है कि कहीं सत्ता संरक्षित संरक्षण तो नहीं?

क्या मेकाहारा में हो रही है अंगों की तस्करी और नवजातों की बिक्री?

बीते वर्षों में मेकाहारा को लेकर कई अनकहे आरोप सामने आते रहे हैं। अस्पताल से अंगों की तस्करी, नवजात शिशुओं की बिक्री और गरीब मरीजों की उपेक्षा जैसे मुद्दे पहले भी उठते रहे हैं।

* सूत्रों के हवाले से खबरें आती रही हैं कि अस्पताल प्रबंधन में शामिल कुछ लोग और बाहरी गिरोह मिलकर नवजातों की तस्करी करते हैं।

* मानव अंगों की अवैध बिक्री का संदेह भी एक गंभीर आरोप है, जिसे पत्रकारों की मौजूदगी रोक कर छिपाने की कोशिश मानी जा रही है।

पत्रकारों की पीड़ा: धमकी, धक्का-मुक्की और लोकतंत्र पर हमला

पत्रकारों ने आरोप लगाया कि अस्पताल में “कॉल मी सर्विसेस” नाम की निजी सिक्योरिटी एजेंसी द्वारा नियुक्त बाउंसरों ने उन्हें गेट से बाहर निकाल दिया, कैमरे तोड़ने की कोशिश की और गोली मारने तक की धमकी दी।

कौन है ‘कॉल मी सर्विसेस’?

यह वही कंपनी है जिसे रायपुर के अन्य कई सरकारी अस्पतालों में भी तैनात किया गया है। दाऊ कल्याण सुपर स्पेशलिटी, जिला अस्पताल पंडरी, कालीबाड़ी मातृ अस्पताल और यहां तक कि AIIMS रायपुर में भी यही कंपनी सुरक्षा का जिम्मा संभाल रही है।

विवादों का इतिहास:

  कॉल मी सर्विसेस का नाम पहले भी विवादों में आ चुका है। फिर भी उसे निविदा में जगह मिलना और लंबे समय तक एक्सटेंशन मिलते रहना एक बड़ी अनियमितता की ओर इशारा करता है।

पत्रकारों का विरोध और सरकार की प्रतिक्रिया

* मुख्यमंत्री निवास का घेराव:

  घटना के बाद रायपुर प्रेस क्लब के नेतृत्व में पत्रकारों ने देर रात मुख्यमंत्री आवास का घेराव किया।

* पुलिस की चुप्पी:

  मौके पर मौजूद पुलिस ने शुरू में कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे नाराजगी और बढ़ी।

* एसएसपी और स्वास्थ्य मंत्री की दखल:

  रायपुर एसएसपी लाल उमेद सिंह मौके पर पहुंचे। अस्पताल अधीक्षक डॉ. संतोष सोनकर ने माफी मांगी और टेंडर निरस्त करने की सिफारिश करने का आश्वासन दिया।

* स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल का बयान:

  मंत्री ने फोन पर रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर से बातचीत करते हुए कहा – “ऐसे लोगों को मिट्टी में मिला देंगे।” इसके बाद पत्रकारों ने धरना स्थगित किया।

क्यों नहीं हुई अब तक बड़ी कार्रवाई?

* क्या सरकार सिर्फ आश्वासन देकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल देगी?

* क्या ‘कॉल मी सर्विसेस’ को ब्लैकलिस्ट किया जाएगा या फिर राजनीतिक दबाव में बचा लिया जाएगा?

* क्या स्वास्थ्य मंत्रालय और उच्च प्रशासन इन गंभीर आरोपों की निष्पक्ष जांच करवा पाएगा?

मेकाहारा का इतिहास: चिकित्सा संस्थान से विवादों तक का सफर

डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल कभी छत्तीसगढ़ का गौरव हुआ करता था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह कई विवादों में घिरता गया। चाहे मरीजों की मौत का मामला हो या अव्यवस्था, यह अस्पताल सुर्खियों में रहा है।

सुविधाओं का अभाव और भ्रष्टाचार

  मरीजों को दवाइयों और इलाज के लिए भटकना पड़ता है। डॉक्टरों की कमी, उपकरणों की अनुपलब्धता और घोटालों के आरोप इसके चरित्र को धूमिल करते हैं।

क्या कहती है पत्रकारिता और लोकतंत्र की मर्यादा?

इस पूरे घटनाक्रम ने लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गहरा आघात किया है। मीडिया का काम है जनता को सच से अवगत कराना, लेकिन अगर पत्रकारों को ही पीटा जाएगा, धमकाया जाएगा, तो यह लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है।

अब सवाल सरकार से: क्या जवाबदेही तय की जाएगी?

छत्तीसगढ़ की जनता, मीडिया और सामाजिक संगठन अब सरकार से यह जानना चाहते हैं:

1. बाउंसरों की तैनाती की जरूरत क्यों पड़ी?

2. पत्रकारों को धमकाने वालों पर क्या कार्रवाई की गई?

3. क्या ‘कॉल मी सर्विसेस’ को ब्लैकलिस्ट किया जाएगा?

4. क्या अस्पताल में हो रही संभावित अवैध गतिविधियों की जांच होगी?

5. क्या पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी?

यह केवल एक पत्रकार बनाम बाउंसर की लड़ाई नहीं है। यह सवाल है कि क्या जनता को उनके अधिकारों से वंचित किया जाएगा? क्या सत्ता के डर से सच्चाई को छुपाया जाएगा?

मेकाहारा मामले में जो हुआ वह छत्तीसगढ़ के लिए एक चेतावनी है – अगर अब कार्रवाई नहीं की गई, तो कल यह अराजकता हर सरकारी संस्थान को निगल सकती है।

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