मदनवाड़ा कांड: छत्तीसगढ़ के रिटायर्ड जस्टिस शंभूनाथ श्रीवास्तव ने मंगलवार को मदनवाड़ा कांड न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट मुख्य सचिव अमिताभ जैन को सौंप दिया है। न्यायिक जांच आयोग के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है।
जनवरी 2020 में इस आयोग का गठन हुआ था। इस आयोग को 12 साल पहले राजनांदगांव के मदनवाड़ा के जंगल में हुए नक्सली हमले की जांच की जिम्मेदारी मिली थी।
जानकारी के अनुसार, मदनवाड़ा के नक्सली हमले में तत्कालीन एसपी विनोद शंकर चौबे समेत 29 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। मदनवाड़ा कांड को छत्तीसगढ़ में हुए सबसे बड़े और घातक नक्सली हमलों में गिना जाता है। इसके अलावा इस हमले के दौरान कुछ पुलिस अफसरों की भूमिका पर विवाद रहा है।
सीएम बघेल ने कहा था, घटना के 10 साल बीत जाने के बाद भी कुछ बिंदुओं पर भ्रम की स्थिति जारी है। इसे ही साफ करने के लिए न्यायिक जांच होनी चाहिए। जस्टिस श्रीवास्तव ने 2021 से इसके लिए बयान आदि लेने और उनके परीक्षण का काम शुरू किया। पिछले हफ्ते जांच का काम पूरा हो गया। फिर मंगलवार को अंतिम रिपोर्ट मुख्य सचिव को सौंप दी गई। मुख्य सचिव अब इसे कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत करेंगे। यदि वहां से अनुमति मिल जाती है तो सरकार विधानसभा के बजट सत्र में इसे सदन में पेश कर देगी। अब राज्य सरकार पर न्यायिक जांच आयोग के निष्कर्षों और सिफारिशों पर एक्शन की जिम्मेदारी है।
जानिए क्या है मदनवाड़ा कांड
राजनांदगांव जिले के मदनवाड़ा गांव के पास 12 जुलाई 2009 को नक्सलियों ने घात लगाकर पुलिस टीम पर बड़ा हमला कर दिया। इस हमले में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे सहित 29 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। इनमें 25 जवान कोरकोटि के जंगल में, 2 मदनवाड़ा में और शहीद साथियों का शव वापस लाने की कवायद में जवानों की शहादत हुई थी। ऐसा पहली बार था जब नक्सलियों के हमले में किसी जिले के एसपी की शहादत हो गई हो।
इन बिंदुओं पर जांच की मिली जिम्मेदारी
यह घटना किन परिस्थितियों में हुई थी।
क्या घटना को घटित होने से बचाया जा सकता था।
क्या सुरक्षा की निर्धारित प्रक्रियाओं और निर्देशों का पालन किया गया था।
किन परिस्थितियों में एसपी और अन्य सुरक्षाबलों को उस अभियान में भेजा गया।
एसपी और जवानों के लिए क्या अतिरिक्त बल उपलब्ध कराया गया, अगर हां तो स्पष्ट करना है।
मुठभेड़ में माओवादियों को हुए नुकसान और उनके मरने और घायल होने की जांच।
सुरक्षाबलों के जवान किन परिस्थितियों में मरे अथवा घायल हुए।
घटना से पहले, उसके दौरान और बाद के तथ्य जो उससे संबंधित हों।
क्या राज्य पुलिस और केंद्रीय बलों के बीच समुचित समन्वय रहा है।
सात-आठ साल पर आई रिपोर्ट
बता दें कि मौजूदा सरकार के समय दो न्यायिक जांच आयोगों ने अपनी रिपोर्ट सौंपी है। इसमें सारकेगुड़ा न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट सात साल बाद दी गई। झीरम घाटी न्यायिक जांच की रिपोर्ट भी आठ साल बाद आई। फिर भी सरकार ने इसे अधूरा बताकर जांच को आगे बढ़ा दिया है। पिछली सरकार में मीना खलखो हत्याकांड की रिपोर्ट 10 साल बाद दी गई।
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