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बहुध्रुवीय दुनिया एक बहुध्रुवीय एशिया द्वारा ही संभव : डॉ. सुब्रह्मण्‍यम

नई दिल्ली। विदेश मंत्री डॉ. सुब्रहमण्‍यम जयशंकर ने कहा है कि केवल एशिया को बहुध्रुवीय बनाने से ही विश्‍व बहुध्रुवीय बन सकता है। स्‍वीडन के स्‍टॉकहोम में यूरोपीय संघ हिन्‍द-प्रशांत मंत्रि‍स्‍तरीय वार्ता को संबोधित करते हुए डॉ. जयशंकर ने कहा कि यूरोपीय संघ और हिन्द-प्रशांत एक-दूसरे की स्थिति पर जितना ध्‍यान देंगे, वैश्विक बहुध्रुवीयता की परिकल्‍पना उतनी ही मजबूत होगी।

डॉ. जयशंकर ने नेताओं से वैश्‍वीकरण, हिन्‍द-प्रशांत और बाजार में भागीदारी का लाभ उठाने जैसे छह बिन्‍दुओं पर विचार करने का आह्वान किया। वैश्‍वीकरण के बारे में विदेश मंत्री ने कहा कि हिन्‍द-प्रशांत क्षेत्र में विकास के लिए प्रौद्योगिकी, व्‍यापार और वित्‍त से जुडे मुद्दों में यूरोपीय संघ की भूमिका महत्‍वपूर्ण है।

डॉ. जयशंकर ने कहा कि भारत और यूरोपीय संघ को विशेष रूप से हिन्‍द-प्रशांत को लेकर नियमित, व्‍यापक और स्‍पष्‍ट वार्ता करने की आवश्‍यकता है। उन्‍होंने जोर देकर कहा कि यह बातचीत केवल मौजूदा संकट तक ही सीमित नही है। भारत में हो रहे परिवर्तनों पर यूरोपीय संघ को ध्‍यान देना होगा।

विदेश मंत्री ने कहा कि हिन्‍द-प्रशांत वैश्विक राजनीति की दिशा का केन्‍द्र बन रहा है। उन्‍होंने कहा कि एक-दूसरे के साथ अधिक से अधिक सहयोग करने पर ही यूरोपीय संघ और हिन्‍द-प्रशांत मजबूत बनेंगे। हिन्‍द-प्रशांत के साथ इस प्रकार के सहयोग के लिए विदेश मंत्री ने आशा व्‍यक्‍त की कि यूरोपीय संघ को समान विचारधारा वाले सहयोगियो की आश्‍यकता होगी। भारत निश्चित रूप से इन सहयोगियों में से एक है।

डॉ. जयशंकर यूरोपीय संघ, हिन्‍द-प्रशांत मंत्रि‍स्‍तरीय वार्ता में भाग लेने के लिए तीन दिन की स्‍वीडन यात्रा पर हैं। डॉ. जयशंकर ने कल स्‍वीडन, जापान, इंडोनेशिया और सिंगापुर के विदेश मंत्रि‍यों से मुलाकात की।

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