Prakash Gota:
बीजापुर के युवक प्रकाश गोटा (Prakash Gota)अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी कर रहे थे पर नक्सलियों द्वारा पिता की मौत और कोरोना महामारी ने उसे मजदूरी करने पर मजबूर कर दिया है आइए जानते है क्या है इस युवक की पूरी कहानी…
बीजापुर। बीजापुर के एक ऐसे युवक की कहानी आपको जज्बाती कर सकती है जिसकी लाख कोशिशों के बाद भी वह अपनी मंजिलों को नहीं पा सका और नियति के चलते उसे मजदूरी करने का रास्ता चुनना पड़ा। जी हां बीजापुर के आदिवासी युवक प्रकाश गोटा(Prakash Gota)को डॉक्टर बनना था जिस सपने को पूरा करने के लिए वह डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन नक्सलियों द्वारा पिता की मौत और फिर घर की आर्थिक तंगी ने उसे मजदूरी करके घर चलाने पर मजबूर कर दिया है।
प्रकाश गोटा बीजापुर जिले के भैरमगढ़ ब्लॉक के फारसेगढ गांव में रहने वाले हैं और जगदलपुर में अपनी नर्सिंग की पढ़ाई पूरी कर रहे थे। लेकिन प्रकाश के पिता की मौत के बाद उनकी जिंदगी में सब कुछ बदल गया।
दरअसल, प्रकाश(Prakash Gota) के पिता सलवा जुडूम के नेता थे और अपने गांव में विकास चाहते थे इसी बात से नक्सलियों में आक्रोश था और उन्होंने 2012 में प्रकाश के पिता की हत्या कर दी। इसके बाद युवक को अपनी नर्सिंग की पढ़ाई छोड़ वापस आना पड़ा।
पिता की मौत के बाद घर चलाने के लिए प्रकाश ने खेती किसानी का रास्ता चुना और इसी से घर का खर्च पूरा होता रहा। पर नक्सलियों ने प्रकाश के ट्रैक्टर को भी आग के हवाले कर दिया। तब भी उसने हार नहीं मानी और अपने डॉक्टर बनने के सपने को पूरा करने के लिए परिश्रम किया और उसे 4 साल में ही 15 से 20 लाख रुपए कमाए और फिर से किर्गिस्तान जाकर अपनी पढ़ाई शुरू की।
कोरोना ने छीना पढ़ने का अवसर
सब कुछ ठीक चल रहा था कि 2020 में आए कोरोना महामारी ने फिर सब कुछ खत्म कर दिया। प्रकाश बताते हैं कि उन्हें 10 दिनों के लिए गुजरात और 20 दिनों के लिए बीजापुर में आइसोलेट करके रखा गया जिससे बहुत से पैसे खर्च हुए जिसके कारण फिर उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा।
घर वापस लौटने पर लोगों ने खेती बाड़ी का काम देना भी बंद कर दिया जिसके बाद प्रकाश को घर चलाने के लिए गांव-गांव जाकर मजदूरी करनी पड़ रही है। उनका कहना है कि आर्थिक तंगी के कारण वे अपनी अंतिम साल की फीस जमा नहीं कर पाए जिससे उनका 1 साल का बैक लग गया।
प्रकाश को अभी अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए 5 से 6 लाख की जरूरत है जिसके लिए उन्होंने स्थानीय विधायक से लेकर छत्तीसगढ़ के कई मंत्रियों के दफ्तर के चक्कर लगाए पर कहीं भी मदद नहीं मिली इसीलिए थक हारकर प्रकाश को मजदूरी का रास्ता अपनाना पड़ा है।
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