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जिद, जुनून और जज्बा: 950 बार भंग हुई 14 साल की तपस्या, नहीं मानी हार, हवा से चलने वाले इंजन का किया आविष्कार

जयपुर/भरतपुर। आगरा जिले कर रहने वाले त्रिलोकी के दिमाग पर जिद, जुनून और जज्बा ऐसा हावी हो गया कि उसे लोग पागल कहने लगे। मगर त्रिलोकी धुन के पक्के थे उन्होंने जमाने की बातें नहीं सुनी। भगवान राम सरीखा वनवास भोगकर उसने 14 साल तपस्या की। एक-दो या सैकड़ों बार नहीं वरन 950 बार उसकी तपस्या भंग हो गई लेकिन उस पर यह धुन सवार थी कि वह हवा से इंजन चलाएगा।
आखिर में, लंबी साधना के पश्चात त्रिलोकी ने यह चमत्कार भी कर दिखाया। अब त्रिलोकी द्वारा बनाया गया यह इंजन हवा से संचालित हो रहा है। बातें बनाने वाले लोग आज उसकी बातें सुनने को तरसते हैं।
नगला कौरई लोधा तहसील किरावली जिला आगरा का रहने वाला त्रिलोकी ट्रेक्टर एवं मोटरसाइकिल में पंक्चर लगाने का काम करता है। त्रिलोकी एक झोंपड़ी में दुकान चलाया करता था। त्रिलोकी ने कभी यह सोचा भी नही था कि वह एक दिन आविष्कार का जनक बन जाएगा।
एक दिन त्रिलोकी पानी खींचने के इंजन से अपने कम्प्रेशर में हवा भर रहा था। इस दौरान अचानक ही कम्प्रेशर का बाल टूट गया। बाल टूटने से हवा इंजन में भरने लग गई और इंजन उल्टा घूमने लग गया। इसे देखकर त्रिलोकी का दिमाग चकरा गया। यही वह क्षण था जब उसे हवा की ताकत का एहसास हुआ। इस पर उसके मन में यह ख्याल आया कि क्यूं न हवा से ही इंजन चलाने का प्रयोग किया जाए।
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हवा से इंजन चलाने की उस पर धुन इस कदर सवार हुई कि वह घर से भी बेगाना हो गया और दिन-रात दुकान पर रहकर इसी ख्याल में डूबा रहता था, जब वह लोगों को यह बात बताना तो लोग उसी बातों पर हंसते और उसे पागल तक कह देते थे। मगर त्रिलोकी ने नकारात्मक भाव को कभी महत्व नहीं दिया और अपनी धुन में लगा रहा।
उसने कबाड़े का सामान खरीदा और इंजन बनाने में जुटा रहा। वह हर दिन नए प्रयोग किया करता था, मगर कभी सफलता की उम्मीद बंधती तो कभी हिम्मत जवाब दे जाती थी, मगर वह रुका नहीं। त्रिलोकी अपने प्रयासों में करीब 950 बार विफल हो गया, लेकिन 14 साल से हवा से इंजन चलाने की जिद उसे और दूसरा काम करने ही नहीं देती थी।
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त्रिलोकी पर हवा से इंजन चलाने की ऐसी धुन सवार थी कि वह इस जिद में अपने घर को भी भुला बैठा। वह दिन-रात दुकान पर रहता और नए प्रयोग करता। इस धुन का नतीजा यह हुआ कि उसने अपना खेत और एक प्लॉट भी बेच दिया, जिसकी कीमत करीब 50 लाख रुपए थी।
त्रिलोकी के घर नहीं जाने की वजह से उसका भाई उसे दुकान पर ही खाना दे जाता था और त्रिलोकी अपनी धुन में लगा रहता। त्रिलोकी का यह दावा है कि अब सिंचाई के काम आने वाला यह इंजन हवा से चलने लगा है।
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अब वह चाहता है कि वह बाइक और ट्रेक्टर को भी हवा से संचालित करे। त्रिलोकी का कहना है कि अगर सरकार इस आविष्कार को तरजीह दे तो वह यह चमत्कार कर सकता है।
त्रिलोकी ने बताया कि उन्होंने मंथन के दौरान इंसान के फेंफड़ों से दवा खींचने और छोडऩे की युक्ति जानी। इस इंजन के सहारे बाइक, ट्रक, ट्रेक्टर के साथ आटा चक्की, बोरेवेल एवं बिजली भी संचालित की जा सकेगी। इसके सहारे आगे काम बढ़ाया जा सकेगा। त्रिलोकी के इस आविष्कार में रामप्रकाश पंडित, अर्जुन सिंह, रामकुमार, संतोष चाहर, रामधनी एवं चन्द्रप्रकाश आदि ने सहयोग दिया।

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