छत्तीसगढ़ में एक अजीब परंपरा, यहां होली खेलने से पहले बिंदी, चूड़ी और माला से होता है मुर्गी का श्रृंगार, जानिए वजह

छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़ इलाके में खोली खेलने से पहले एक अनोखी परंपरा सालों से निभाई जा रही है. यहां लोग होली खेलने से पहले मुर्गी का बिंदी, चुड़ी और माला से श्रृंगार करते हैं. उसे गांव में घूमाया जाता है. इसके बाद ग्रामीण उसकी पूजा भी करते हैं.
महामारी से बचने के लिए बैगा जनजाति के लोग अनोखी परंपरा का निर्वहन करते है. समाज के लोग होली से पहले मुर्गी का बिंदी, चुड़ी और माला से श्रृंगार कर उसे गांव में घर-घरदाना चुगने के लिए ले जाते हैं. यहां ग्रामीण उसकी पूजा करते है. आखिर में मुर्गी को गांव से बाहर ले जाकर छोड़ दिया जाता है. ग्रामीणों ने बताया कि मान्यता हैं कि इससे गांव में बीमारियों से बचने के लिए इस तरह की परंपरा निभाते है. ऐसा करने से कई प्रकार की बीमारी गांव में नहीं आती है.
लोगों का मानना है कि ऐसा करने से गांव में सुख-समृद्धि बनी रहती है. बीमारी से बचने और सुख-समृद्धि के लिए एमसीबी नगर पंचायत जनकपुर में के बरहोरी, भगवानपुर,घघरा ,बड़वाही समेत अन्य गांवों में जहां बैगा जनजाति के लोग रहते हैं, वहां यह अनोखी परंपरा का निर्वहन कई सालों से किया जा रहा है. होली से पहले मुर्गी और बकरी का श्रृंगार कर गांव के घर-घर घुमाया जाता है. यहां बैगा जनजाति के लोग पूजा करते है. साथ ही चावल और सब्जी दान करते है.
वहीं, अपनी सुविधा के अनुसार मुर्गी और बकरी का श्रृंगार मंदिर में ले जाकर किया जाता है और पूजा की जाती है. मंदिर में पूजा करने के बाद ग्रामीण ढोल-नगाड़े के साथ मुर्गी व बकरा को गांव घुमाते हैं. बैगा जनजाति के लोगों ने बताया कि पूर्वजों की बनाई यह परंपरा वर्षों से गांव में निभाई जा रही है. यहां पूजा करने के दौरान ग्रामीण अनाज और सब्जी दान करते हैं. मुर्गी के निकासी के बाद नदी किनारे भंडारा का आयोजन करते हैं, यहां पूजा संपन्न होती है. जिस मुर्गी या बकरी का शृंगार कर बैगा पूजा करते है, उसे अंत में गांव से बहने वाली नदी के दूसरे छोर पर जंगल की ओर छोड़ा जाता है.
भगवानपुर के गरीबा मौर ने बताया कि पूर्वजों के समय बनाई इस परंपरा का निर्वहन सालों से हम लोग करते आ रहे हैं. होली के पहले यहां परंपरा निभाई जाती है. वहीं पंडा शोभन बैगा ने बताया कि मुर्गी या बकरी का शृंगार कर गांव में बाजे-गाजे के साथ घुमाया जाता हैं और आखिर में उसे गांव से बाहर जंगल में छोड़ दिया जाता हैं. निकासी के दौरान गांव की सभी बुरी बलाएं उसके साथ चली जाती हैं और घर और गांव में खुशहाली आती हैं. अंत में भंडारे का आयोजन करते है. ग्रामीणों ने बताया कि मुर्गी के श्रृंगार और पूजा के बाद उसे गांव में घुमाया जाता है.