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World AIDS Day 2025: लाइलाज नहीं है एचआईवी संक्रमण, जानिए अब तक के सबसे प्रभावी इलाज के तरीके

वैश्विक स्तर पर कई गंभीर बीमारियों का जोखिम लगातार बढ़ता हुआ देखा जा रहा है। कैंसर हो या हृदय रोग, डायबिटीज हो या फेफड़ों की बीमारी, इन सभी के कारण स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरिक्त दबाव भी बढ़ा है। इन बीमारियों के साथ एचआईवी का बढ़ता संक्रमण भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए गंभीर चिंता का कारण है, इससे हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती है।

ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (एचआईवी) का संक्रमण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को इतना कमजोर कर देता है कि रोगी के लिए बीमारियों से मुकाबला कर पाना कठिन हो जाता है। एचआईवी संक्रमण के कारण एड्स यानी एक्वायर्ड इम्यूनोडिफिशिएंसी सिंड्रोम का खतरा होता है।

कुछ दशकों पहले तक एड्स को लाइलाज बीमारी माना जाता था, हालांकि वैज्ञानिक शोध और कारगर दवाओं ने इसके इलाज को आसान बना दिया है। इसके अलावा वैश्विक स्तर पर एचआईवी संक्रमण की रोकथाम के लिए भी व्यापक अभियान चलाए जा रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप इस संक्रमण के फैलने की गति को भी नियंत्रित करने में मदद मिली है।

साल 2024 के आखिर तक दुनियाभर में लगभग 40.8 मिलियन (4 करोड़ से अधिक) लोग एचआईवी के साथ जी रहे थे। इस साल 13 लाख नए मामले भी सामने आए जबकि 6.30 लाख लोगों की इस संक्रमण से मौत भी हो गई थी।

अब लाइलाज नहीं है एचआईवी संक्रमण
एचआईवी-एड्स के बारे में जागरूकता बढ़ाने, एड्स के मरीजों की जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने और उन्हें सामाजिक भेदभाव से बचाने के उद्देश्य के साथ हर साल एक दिसंबर को वर्ल्ड एड्स डे मनाया जाता है।

हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने कई ऐसी दवाओं और उपचार विधियों की खोज की है जिससे इसका इलाज आसान हो गया है। आइए जानते हैं कि इस बीमारी की रोकथाम और इलाज में अब तक क्या प्रगति हुई है और कौन से उपचार विकल्प मौजूद हैं?

लेनाकापाविर इंजेक्शन संक्रमण रोकने में 96% तक असरदार
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन में लेनाकापाविर (एंटीरेट्रोवायरल दवा) के उपयोग को एचआईवी संक्रमण रोकने में 96% से अधिक प्रभावी पाया गया था। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि ये इंजेक्शन, रोजाना एमट्रिसिटाबाइन-टेनोफोविर डिसोप्रॉक्सिल फ्यूमरेट (ट्रूवाडा) दवा लेने से अधिक प्रभावी है। इस दवा का उपयोग एचआईवी-1 के उपचार और एचआईवी होने के जोखिम को कम करने के लिए किया जाता है।

वैज्ञानिकों ने बताया था कि साल में दो बार (हर छह महीने में) लेनाकेपाविर इंजेक्शन की मदद से संक्रमण के खतरे को काफी हद तक कम करने में मदद मिल सकती है। तीसरे चरण के परीक्षण में पाया गया था लेनाकापाविर इंजेक्शन एचआईवी की रोकथाम के लिए सबसे प्रभावी विकल्पों में से एक हो सकता है।

एमआरएनए तकनीक को वैज्ञानिकों ने पाया असरदार
जून 2025 में वैज्ञानिकों की एक अन्य टीम ने एचआईवी के इलाज में एक और कदम आगे बढ़ने की जानकारी साझा की थी। शोधकर्ताओं ने शरीर की कोशिकाओं के अंदर छिपे वायरस को बाहर निकालने का एक नया तरीका ढूंढने का दावा किया था।

वैज्ञानिकों ने बताया कि वायरस कुछ खास व्हाइट ब्लड सेल्स के अंदर खुद को छिपाने की क्षमता वाला होता है। इस संक्रमण का इलाज ढूंढ रहे वैज्ञानिकों के लिए ये मुख्य चुनौतियों में से एक रही है।

नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर में, वैज्ञानिकों ने पहली बार बताया था कि है कि एमआरएनए (mRNA) तकनीक की मदद से उन कोशिकाओं में पहुंचाया जा सकता है जहां एचआईवी का वायरस छिपा हो सकता है। वैज्ञानिकों ने कहा, अगले चरण के अध्ययन में वायरस को वहीं पर मारने की दिशा में काम किया जा रहा है।

एचआईवी को शरीर में प्रवेश से रोकने वाली एंटीबॉडी
इसके अलावा हाल ही में जर्मनी के कोलोन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल द्वारा एचआईवी संक्रमण के खिलाफ एंटीबॉडी की खोज से इलाज की नई उम्मीद जगी है। इससे वायरस के खिलाफ लड़ाई में और मजबूती मिलने की आस जगी है।

वायरोलॉजी इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर फ्लोरियन क्लेन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की टीम ने 32 लोगों के ब्लड सैंपल की जांच की। वे सभी एचआईवी से संक्रमित थे, लेकिन उन्होंने बिना किसी मेडिकल मदद के अपने आप ही वायरस के खिलाफ एक खास तौर पर मजबूत और काफी असरदार एंटीबॉडी रिस्पॉन्स विकसित कर लिया था।

शोधकर्ताओ ने इन ब्लड सैंपल से 800 से ज्यादा अलग-अलग एंटीबॉडी को HIV को खत्म करने की उनकी क्षमता के लिए टेस्ट किया। इसमें से एक (04_A06) एंटीबॉडी को सबसे अलग पाया गया। ये एंटीबॉडी उस जगह को ब्लॉक कर देती है जहां वायरस किसी व्यक्ति को संक्रमित करते समय कोशिकाओं से जुड़ता है। इसे भी भविष्य में एचआईवी संक्रमण के इलाज की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

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