हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी गुरु तेज बहादुर जी की जयंती पूरे देश में मनाई जाने वाली है। उनके इस जन्मोत्सव पर आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें और क्यों उन्हें हिंदी की चादर के नाम से जाना जाता है।
गुरु तेज बहादुर सिंह सिखों के नौवें गुरु के रूप में जाने जाते हैं। इनका जन्म पंजाब के अमृतसर में हुआ था। बचपन में इन्हें सब त्यागमल कहकर पुकारा करते थे।बचपन से ही तेज बहादुर काफी निडर और साहसी थे। यह गुरु हरगोविंद जी के पांचवे पुत्र थे जिन्हें आठवें गुरु हरि कृष्ण राय जी के निधन के बाद नौवें गुरु के रूप में चुना गया। मात्र 14 वर्ष की उम्र में ही मुगलों के खिलाफ युद्ध में इन्होंने अपनी वीरता का परिचय दे दिया था। उनकी इस वीरता को देखते हुए उनके पिता हरगोविंद सिंह जी ने उनका नाम तेज बहादुर यानी तलवार के धनी रख दिया। उन्होंने अस्त्र शस्त्र और घुड़सवारी के साथ धर्म ग्रंथों की भी शिक्षा ग्रहण की थी।
उन्होंने मुगल शासक औरंगजेब के अत्याचारों के बाद भी अपना धर्म परिवर्तन नहीं किया। कश्मीरी पंडितों पर औरंगजेब ने अपना धर्म परिवर्तन करने को लेकर कई अत्याचार किए। जिसे उन्होंने गुरु तेज बहादुर के सामने रखा। औरंगजेब अपने जुल्मों के द्वारा लोगों से उनका धर्म परिवर्तन कराकर इस्लाम धारण करने को बाध्य किया करता था। जब औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम कबूल करने कहा तो गुरु साहब ने कहा था कि वह शीश कटा सकते हैं केश नहीं।
औरंगजेब ने गुरु साहब को कई घोर यातनाएं दी जिससे वह अपना धर्म परिवर्तन कर ले परंतु वे अपने निर्णय पर अडिग रहें। वे लगातार हिंदुओं, सिखों, कश्मीरी पंडितों और गैर मुस्लिमों का इस्लाम में जबरन धर्मांतरण का विरोध करते रहे थे, जिससे औरंगजेब खासा नाराज था।
8 दिनों की यातना के बाद गुरु जी को दिल्ली के चांदनी चौक में शीश काटकर शहीद कर दिया गया। उनके शहीदी स्थल पर गुरुद्वारा बनाया गया जिसे गुरुद्वारा शीशगंज साहब के नाम से जाना जाता है।
उनकी इसी त्याग और बलिदान के लिए उन्हें हिंद की चादर के नाम से जाना जाता है।