हमने आज के नए युग में जल संरक्षण के कई नए उपायों को देखा और जाना है। 500 से 600 ईशा पूर्व के लोग भी जल संरक्षण के के कुछ उपायों को अपनाकर जल का संरक्षण किया करते थे। ऐसे ही कुछ अवशेष छत्तीसगढ़ के रिंवा से प्राप्त हुए हैं। आइए देखते हैं आखिर यह उपाय कौन से थे-
छत्तीसगढ़ में स्थित रिंवा ऐसा इलाका है जहां आज भी पानी से जुड़ी समस्याएं रहती है। यहां भूमिगत जल काफी नीचे रहता है ऐसे में यहां 500 से 600 ईसा पूर्व पुराना टेराकोटा की रिंग से बना एक कुआं मिला है। जिसे पुराने समय में भूमिगत जल को रिचार्ज करने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा होगा। अगर बात की जाए इस कुएं की तो पुराने समय में इस प्रकार के कुएं प्रचलित थे जिनका प्रमुख कार्य जल संरक्षण था और भूमिगत जल का स्तर को भी सही रखना था। यह अब तक की सबसे पुरानी सभ्यता के मिले अवशेषों में से एक है।
आगे शोधकर्ताओं द्वारा पता चला कि इस रिंग वेल कुएं से अधिक लाइन के कुएं उत्तर प्रदेश, बिहार में मिले हैं क्योंकि पुराने समय में जल संरक्षण के ज्यादा उपाय नहीं थे। यह कुआं जल संरक्षण का एक अच्छा माध्यम था यह कुआं इस प्रकार निर्मित किया गया है कि इसमें रेल के जरिए एक-एक बूंद कर पानी संरक्षित होता था।
पुरातात्विक विभाग द्वारा इस कुएं का उपयोग पानी पीने और अतिरिक्त जल को संरक्षित करने के लिए होता था। ये कुएं बहुत पुरानी सभ्यता को चिन्हित करते हैं। इस प्रकार के कुएं का उल्लेख सिंधु घाटी सभ्यता के समय में मिलता है। आंध्रप्रदेश में भी ऐसी कुएं पाए जाते हैं परंतु इनका रिंग मिट्टी की अपेक्षा सीमेंट का होता है।
इस कुएं की खुदाई में सिर्फ रिंग वेल कुएं ही नहीं बल्कि सोने, चांदी ,और तांबे के सिक्के भी बरामद हुए हैं। इसके साथ ही मिट्टी के बर्तन, दीवार के अवशेष, और कुछ कीमती पत्थर भी बरामद हुए हैं जो मौर्य काल की लग रहे हैं। खुदाई में सभी पुरानी सभ्यताओं मौर्य काल,कुषाण काल, गुप्तकाल यहां तक कि कलचुरी काल तक के अवशेष मिले हैं। खुदाई आगे बढ़ी तो संभव है और भी कुछ चीजें मिले जो पुरानी सभ्यताओं के संकेत देते हो।
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