गुप्तचर विशेषछत्तीसगढ़
जानिए छत्तीसगढ़ की गोदना परंपरा के बारे में, विश्व भर में माना जाता हैं आदिवासी संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग…
रायपुर| गोदना शब्द का शाब्दिक अर्थ है चुभाना। शरीर में सुई चुभोकर उसमें काले या नीले रंग का लेप लगाकर गोदना कलाकृति बनाई जाती है। गोदना गोदने वाली महिला को बदनिन कहा जाता है। कुछ अनाज व रुपए के बदले ये महिला शरीर पर गोदना बना देती है।
READ MORE: सिलगेर में फिर विशाल रैली की तैयारी! आखिर क्यों सुरक्षाबलों के कैम्प का विरोध कर रहें हैं ग्रामीण?
गोदने के रंग के लिए रामतिल तेल के काजल को तेल या पानी के साथ मिलाकर लेप तैयार किया जाता है। इसी लेप में सुईयों को डूबोकर शरीर में चुभा कर गोदना की मनमोहक आकृतियां बनाई जाती हैं। आकृतियां बनाने के बाद अच्छी तरह धोकर इसमें अरंडी तेल और हल्दी का लेप लगाया जाता है। ताकि सूजन ना आए।
READ MORE: कोरोना वैक्सीनेशन के प्रथम डोज का सर्टिफिकेट लेने ‘CG Teeka’ पोर्टल चालू
गोदना प्रथा बस्तर की संस्कृति से जुडी हुई है। बस्तर अंचल की अबुझमाडियां दण्डामी माडियां, मुरिया, दोरला, परजा, घुरुवा जनजाति की महिलाओं में गोदना गुदवाने का रिवाज पारम्परिक है।
READ MORE: जन्मी दुर्लभ बच्चीः अस्पताल में छोड़ फरार हुए माता-पिता, क्या है ऐसा खास?
गोदना प्रथा को पूर्वज अधिक मानते थे
माना जाता है कि मृत्यु के उपरांत भौतिक जगत की सभी वस्तुएं, या आभूषण इसी लोक में छूट जाते हैं, लेकिन गोदना आत्मा के साथ परलोक तक जाता है।
READ MORE: छत्तीसगढ़ में हावी हुआ मानसून! सभी जिलों में भारी बारिश के आसार, मौसम विभाग ने जारी किया अलर्ट