रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी योजना में शामिल राम वनगमन पथ के तहत रायपुर के चंदखुरी में भगवान श्रीराम की 51 फीट ऊंची मूर्ति बनाई जा रही है। मूर्ति का काम 90 फीसद पूरा हो चुका है। इसी माह मूर्ति को चंदखुरी में स्थापित की जाएगी। राम वनगमन पथ के दो चरणों पर सरकार करीब 16 करोड़ रुपये खर्च करेगी।
चंदखुरी भगवान श्रीराम की माता कौशल्या का मायका है यानी भगवान राम का ननिहाल। देश में माता कौशल्या का एकमात्र मंदिर यहीं है। राज्य सरकार ने भगवान श्रीराम के 14 वर्ष की वनवास की कहानी को सहजने के लिए राज्य के कोरिया से बस्तर तक श्रीराम वनगमन पथ बनाने का काम शुरू किया है। जहां-जहां श्रीराम के चरण पड़े थे, उस स्थल को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जा रहा है। इसके लिए प्रदेश भर में 11 से अधिक जगहों को चिह्नित किया गया है।
भगवान श्रीराम की मूर्ति को बनाने के लिए ओडिशा और मध्य प्रदेश के 50 से अधिक कारीगर आए हैं, जो विशाल पत्थर को तराशकर मूर्ति तैयार कर रहे हैं। मूर्ति को अंतिम रूप देने का काम आधुनिक मशीनों से किया जाएगा। मूर्ति बनाने के लिए छत्तीसगढ़ के बिल्हा स्टोन (पत्थर) का उपयोग किया जा रहा है। बिल्हा स्टोन गुलाबी रंग का होता है। इससे भगवान की मूर्ति चमकती रहेगी।
श्रीराम का छत्तीसगढ़ से है गहरा नाता
छत्तीसगढ़ का भगवान राम से गहरा नाता है। भगवान राम ने वनवास के दौरान काफी वक्त छत्तीसगढ़ में गुजारा था। छ्त्तीसगढ़ में पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक मान्यताओं के आधार पर कई स्थानों को भगवान राम से जोड़कर देखा जाता है। राम वन गमन पथ के जरिए सरकार इन सभी स्थानों को जोड़ने का प्रयास कर रही है। भगवान श्रीराम अयोध्या से वनवास पर उत्तर से दक्षिण की ओर चल पड़े थे। इस दौरान उन्होंने करीब 10 साल दंडक वन में गुजारे। छत्तीसगढ़ में श्रीराम का पहला पड़ाव मवई नदी के तट पर सीतामढ़ी हरचौका, जनकपुर, भरतपुर तहसील कोरिया में हुआ था। इसके बाद मवई, रापा, गोपद, नेउर, सोनहद, हसदेव, रेण, महान, मैनपाट के समीप मैनी नदी, माड से होते हुए महानदी के तट पर पहुंचे।
महानदी के तट पर स्थित शिवरीनारायण होते हुए सिरपुर, आरंग, राजिम ऐतिहासिक नगरियों के जंगल से होते हुए सिहावा पर्वत पर महानदी के उद्गम स्थल पर भी पहुंचे थे। सीतानदी, कोतरी, दूध नदी, इंद्रावती, शंखनी-डंकनी, दंतेवाड़ा, कांगेर नदी से होते हुए तीरथगढ़ होकर कुटुमसर गुफा और रामाराम तट पर पहुंचने के प्रमाण शोधकर्ताओं को मिले हैं। शबरी नदी से गोदावरी तट होते हुए वे भद्राचलम (आन्ध्रप्रदेश) पर्णकुटी पहुंचे थे। इस तरह श्रीराम दंडक वन अर्थात दंडकारण्य (छत्तीसगढ़) में जीवनदायिनी नदियों के तट से होते हुए जलमार्ग से दक्षिण में प्रवेश किए।
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