रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पर्वतारोही चित्रसेन साहू ने रूस के माउंट एलब्रुस पर तिरंगा फहराकर देश का नाम रोशन कर दिया है। चित्रसेन के दोनों पैर नहीं हैं, वो आर्टिफिशियल लेग्स की मदद से चलते हैं। बता दें कि चित्रसेन माउंट एलब्रुस पर दोनों आर्टिफिशियल पैरों से चढ़ाई करने वाले पहले भारतीय बन गए हैं। चित्रसेन ने बताया कि उन्हें इस चढ़ाई को पूरा करने में कुल 8 घंटे का समय लगा। जैसे ही वे पहाड़ की चोटी पर पहुँचे, उन्होने तिरंगा फहराया। उन्होंने देश और पूरी दुनिया को प्लास्टिक फ्री बनाने और दिव्यांगो को अपने पैरों पर खड़ा होने का संदेश दिया। खास बात यह है कि इस पूरे मिशन में नॉर्थ अमेरिका में रहने वाले छत्तीसगढ़ियों के संगठन नाचा ने चित्रसेन का बहुत सहयोग किया और उनका हौसला बढ़ाया।
बिगड़ गई थी तबीयत, पानी भी नहीं पी सके थे
चित्रसेन ने अपनी मुश्किल चढ़ाई का एक्सपीरियंस शेयर करते हुए बताया कि माउंट एलब्रुस की उंचाई 5,642 मीटर(18510 feet) है। जैसे ही उन्होंने इस पर्वत पर चढ़ाई शुरू की, कुछ देर बाद अचनाक् उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। वहां बर्फीला तूफान आ गया। सबसे मुश्किल थी तेज हवाएं, यह इस पूरी चढ़ाई को और भी कठिन बना रहीं थीं। वहां पहाड़ पर भी तापमान -15 से -25 डिग्री पर था। दूर-दूर तक सिर्फ बर्फ ही बर्फ दिखाई दे रही थी। यह दिखने में तो खूबसूरत थी, लेकिन इसकी वजह से यहां के हालात बहुत ज्यादा खतरनाक थे। फिर चित्रसेन की तबीयत भी बिगड़ने लग गई।
चित्रसेन ने आगे बताया कि वहां चढाई के दौरान उनकी हालत ऐसी हो गई थी कि उन्हें पानी पीने पर भी बहुत उल्टियां हो रही थीं। उनके दोनों पैरों में बहुत दर्द था। चित्रसेन ने बताया कि उन्होंने ऐसे हालातों में जूझने की ट्रेनिंग ले रखी है। एक समय तो उन्हें ऐसा लगा कि कहीं जिस मकसद से वे वहां गए हैं, वो अधूरा न रह जाए। इसलिए उन्होंने बिल्कुल हार नहीं मानी और तरां एक पेन किलर खाकर फिर से कोशिश करते हुए पहाड़ की चोटी की तरफ बढ़ गए। इसके बाद उन्होंने अपनी तकलीफों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। उनके दिल में बस एक ही बात थी कि चोटी पर पहुंचकर उन्हें तिरंगा फहराना है। उन्होंने 10 घंटे का लक्ष्य लेकर चढ़ाई शुरू की थी। लेकिन 8 घंटे में ही वे चोटी पर थे, वहां जाकर उन्होंने सबसे पहले भारत माता की जय और छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया का नारा लगाया।
आकाश और समुद्र की गहराई में भी इनके नाम रिकॉर्ड
चित्रसेन साहू ने कहा कि आजादी का मतलब यह होता है कि हम अपनी मर्जी से कहीं भी आ-जा सकें और जो मन में आए वो कर पाएं। हादसे में जब मैंने पैर गंवाए और इस हादसे से जब उबरना शुरू किया तो मैंने सोचा कि मैं हर वो काम जरूर करूंगा जो पैरों के न होने पर कई दिव्यांग नहीं कर पाते हैं। मेरी इसी जिद की वजह से मैं राष्ट्रीय व्हीलचेयर बास्केटबॉल, राष्ट्रीय पैरा स्विमिंग का खिलाड़ी बन पाया। मैं अपने पैरों पर ब्लेड नुमा एंगल बांधकर दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेता हूं। सिर्फ इतना ही नहीं चित्रसेन साहू ने 14000 फीट से स्काई डाइविंग करने का भी रिकॉर्ड बनाया है। वे एक सर्टिफाइड स्कूबा डायवर यानी गोताखोर हैं। कभी भी अगर वे अपनी किसी ट्रिप पर बाहर जाते हैं तो समुद्र की गहराइयों में गोता लगाना नहीं भूलते।
किलीमंजारो पर्वत भी चढ़ चुके
बता दें कि चित्रसेन इससे पहले दो और पर्वत चढ़ चुके हैं। इस बार चित्रसेन ने तीसरा पर्वत फतह किया है। इससे पहले उन्होंने अफ्रीका महाद्वीप के पहाड़ किलिमंजारो की 5685 मीटर ऊंची चोटी गिलमंस पर तिरंगा लहराया था।
ट्रेन हादसे में गंवा दिए पैर
चित्रसेन ने बताया कि 4 जून, 2014 को वे बिलासपुर से अपने घर बालोद जा रहे थे। घर जाने के लिए उन्होंने अमरकंटक एक्सप्रेस पकड़ी। उन्हें पीने का पानी चाहिए था इसलिए पानी लेने के लिए वे भाटापारा स्टेशन में उतर गए। थोड़ी देर में ही ट्रेन का हॉर्न बज गया। ट्रेन में चढ़ने के लिए वे दौड़ पड़े। लेकर उनका पैर फिसलकर ट्रेन के बीच फंस गया। घटना के अगले ही दिन उनका एक पैर काट दिया गया। इसके ठीक 24 दिन बाद ही इंफेक्शन की वजह से उनका दूसरा पैर भी काटना पड़ गया। वो उनकी जिंदगी का सबसे बुरा दौर था। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि अब आगे क्या होगा। इस बीच उनकी जिंदगी में बहुत सी मुश्किलें आईं। लेकिन उनकी फैमिली और दोस्तों ने हर कदम पर उनका साथ दिया।
खुद को किया मोटीवेट
इस हादसे के बाद चित्रसेन को पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा की बुक लांच होने की बात पता लगी। चित्रसेन ने बताया कि अरुणिमा की कहानी पढ़कर उनका हौसला बढ़ा। उन्होंने फरवरी 2015 में जयपुर कृत्रिम पैर लगाकर चलना शुरू किया और जून में उन्होंने प्रोस्थेटिक लैग लगा लिए। उन्हें स्कूल और कॉलेज टाइम से ही स्पोर्ट्स में बहुत दिलचस्पी है। जैसे ही प्रोस्थेटिक लैग लगा, उन्होंने दोबारा खेलना शुरू कर दिया। वे व्हीलचेयर पर बास्केटबॉल खेलने लगे। एक और खास बात यह है कि उन्होंने इस खेल की वुमंस टीम भी बनाई है और वे उन्हें 2017 से ट्रेनिंग दे रहे हैं। अगर कोई व्यक्ति किसी हादसे का शिकार हो जाते हैं तो वे हॉस्पिटल जाकर उनसे मिलते हैं और उन्हें हिम्मत हारने के बजाय जिंदगी से लड़ने और जीतने के लिए मोटिवेट करते हैं। चित्रसेन इस वक्त हाउसिंग बोर्ड में इंजीनियर के रूप में कार्यरत हैं।
Back to top button