जगदलपुर। छत्तीसगढ़ में बस्तर दशहरा बहुत प्रसिद्ध है। इसी कड़ी में सोमवार को बस्तर दशहरा के मुरिया दरबार में एक बार फिर 80 परगना में मांझी, 25 चालकी और 50 मेम्बर- मेम्बरीन अपने क्षेत्र की समस्याएं रखेंगे। यह दरबार सिरहासार भवन में लगता है जो कि निरंतर 142 साल से चला आ रहा है। इस दरबार का बस्तर में बहुत ही खास और ऐतिहासिक महत्व है।
लेकिन फर्क बस इतना है कि पहले दरबार में राजा इनकी बातें सुना करते थे और अब जनता के प्रतिनिधि और वरिष्ठ अधिकारी समस्याओं को सुनकर उन्हे हल करने की कोशिश करते हैं।
1876 में लगा था पहला दरबार
मां दंतेश्वरी के पूर्व प्रधान पुजारी वयोवृद्घ लल्लू प्रसाद पाढ़ी ने बताया कि बस्तर में मुरिया दरबार पहली बार आठ मार्च 1876 को लगा था, जिसमें सिरोंचा के डिप्टी कमिश्नर मेक जार्ज ने मांझी- चालकियों को संबोधित किया था। लेकिन बाद में लोगों की सुविधा के लिए इसे बस्तर दशहरा का अभिन्न अंग बना दिया गया। जो कि 142 साल से जारी है।
जानिए क्या है मुरिया दरबार
जानकारी के मुताबिक, बस्तर रियासत ने अपने राज्य में परगना स्थापित कर यहां के मूल आदिवासियों से मांझी (मुखिया) नियुक्त किया था। वे मुखिया अपने क्षेत्र की हर बातें राजा तक पहुंचाने का काम किया करते थे। साथ ही ग्रामीणों को राजाज्ञा से भी अवगत कराते थे।
लोक साहित्यकार रूद्रनारायण पाणीग्राही ने बताया कि मुरिया शब्द मूल निवासी शब्द से बना मूलिया रहा। कालांतर में सामूहिक रूप से संबोधित किया जाने वाला यह शब्द अब मूरिया हो गया है। मूरिया दरबार में राजा द्वारा निर्धारित किए जाने वाले 80 परगना के मांझी ही अपने क्षेत्र की समस्याओं से अवगत कराते रहे हैं।
राजा सुनते थे समस्या
बताया जाता है कि मुरिया दरबार में पहले राजा और रियासत के अधिकारी कर्मचारी मांझियों की बातें सुनते थे और उन्हें तत्कालीन प्रशासन से हल कराने की पहल की जाती थी। आजादी के पश्चात मुरिया दरबार का स्वरूप जैसे बदल सा गया। 1947 के पश्चात राजा के साथ जनप्रतिनिधि भी इसमें शामिल होने लगे।
1965 से पहले बस्तर महाराजा स्व. प्रवीर चंन्द्र भंजदेव दरबार की अध्यक्षता करते थे। जब उनका निधन हुआ तो उसके बाद राज परिवार के सदस्य मुरिया दरबार में आना बंद कर दिए थे। वहीं, साल 2015 से राज परिवार के कमलचन्द्र भंजदेव इस दरबार में उपस्थित हो रहे हैं।
सीएम भी दरबार में शामिल
बस्तर के मुरिया दरबार में अब बस्तर संभाग के निर्वाचित जन प्रतिनिधि और वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल रहते हैं। वे ग्रामीणों से आवेदन लेते हैं। इनके सामने मांझी, चालकी और मेम्बर- मेम्बरीन अपनी समस्या रखते हैं। करीब आठ साल से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री लगभग हर मुरिया दरबार में शामिल हो रहे हैं।
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