पूरी दुनिया में दी गॉडफादर किताब और फिल्म पर चर्चा होती है। यहां भारत में भी इसे काफी पसंद किया जाता है।दूसरी ओर भारत में 1999 में एक फिल्म गॉडमदर आई थी। इस फिल्म में शबाना आजमी ने गॉडमदर का रोल अदा किया था। उस साल फिल्म ने अलग-अलग केटेगरी में 6 नेशनल अवार्ड अपने नाम किए थे।
लेकिन आप यह अवश्य सोच रहे होंगे कि हम फिल्म की बात कर रहे हैं। मगर, ऐसा बिलकुल नहीं है। हम गॉडमदर की बात कर रहे हैं। ऐसा दावा किया जाता है कि फिल्म वास्तविक घटना पर आधारित था। किरदार का नाम था संतोकबेन। संतोकबेन साराभाई जडेजा। जिससे लोगों में खौफ था। इस वजह से लोग उन्हें गॉडमदर कहते थे।
बता दें कि संतोकबेन के गॉडमदर बनने की कहानी बिल्कुल फिल्मी है। ऐसा बताया जाता है कि 1980 के दशक में संतोकबेन अपने पति के साथ गुजरात के पोरबंदर पहुंची थीं। पति सरमन जडेजा को काम की तलाश कर रहे थे तो वे महाराणा मिल के नाम से एक कपड़ा मिल में नौकरी करने लगे। किंतु, वहां एक नए ‘सिस्टम’ से उसका सामना हुआ। यह सिस्टम था हफ्ता वसूली का।
असल में, बात यह थी कि मील में मजदूरों से पैसा वसूली की जाती थी। वहां देबू बाघेर नाम के एक गुंडे का आतंक था। देबू ने सरमन से भी पैसे मांगे, किंतु सरमन ने साफ मना कर दिया। इसपर देबू ने सरमन पर हाथ चला दिया और सरमन ने भी जवाब दे दिया। लड़ाई हुई और देबू मारा गया। फिर देबू के काम पर सरमन ने कब्जा कर लिया।
सरमन ने यहां से रास्ता बदल लिया। उसने अवैध शराब के कारोबार में भी अपना हाथ आजमाया। वह बहुत तेजी से व्यापार और राजनीतिक गलियारों में अपनी पहुंच बना रहा था। मगर, इसी दौरान आरोप है कि दिसंबर 1986 में विरोधी गिरोह के कालिया केशव ने अपने साथियों के साथ मिलकर उसे गोली मार दी। इसमें सरमन की जान चली गई।
इस दौरान सरमन की मौत की जानकारी उसके लंदन में रह रहे छोटे भाई भूरा को मिली। भूरा लंदन से पोरबंदर पहुंचा। गिरोह इकट्ठा करने का प्रयास किया, लेकिन संतोकबेन ने उसे रोक लिया और गैंग की कमान अपने हाथ में लेने का निर्णय लिया।
घर में चूल्हा-चौका संभालने वाली संतोकबेन ने अपने पति की हत्या का बदला लेने के लिए कालिया केशव और उसके गैंग के 14 लोगों पर इनाम रखा। उन्हें ये डर था कि यदि ये गैंग जिंदा रहा तो वह उनके बच्चों को नहीं छोड़ेगा। लिहाजा एक हत्या पर 1 लाख इनाम रख दिया। असर ये हुआ कि कालिया और उसके 14 आदमियों की हत्या हो गई। कहा जाता है कि एक गोली संतोकबेन ने भी चलाई थी। इन हत्याओं से पूरे पोरबंदर में संतोकबेन का आतंक हो गया था। तो यहीं उसका नाम पड़ा, ‘गॉडमदर।’
जहां संतोकबेन ने एक तरफ अपने पति की हत्या का बदला लिया तो वहीं, दूसरी ओर उसके धंधे को न सिर्फ संभाला, बल्कि उसे आगे भी बढ़ाया। इस दौरान वह गरीबों की मदद भी करती रही और कुछ ही समय में ‘मसीहा’ वाली छवि भी बना ली। अब पहले तो खौफ फिर मसीहा वाली छवि। यहां तक कि हाल ऐसा हो गया कि उनके घर से बहने वाली नाली में रंग भी बहे तो लोगों को लगता था कि खून बह रहा है। असर ये हुआ कि संतोकबेन पोरबंदर तालुका की निर्विरोध अध्यक्ष चुन ली गईं।
यहां संतोकबेन की दिलचस्पी राजनीति में बढ़ी। साल 1990 के विधानसभा चुनाव में वह जनता दल के टिकट पर उतर गईं और 35 हजार वोट से जीत गईं। बता दें कि इससे पहले इस सीट से कोई महिला विधायक नहीं बनी थी। लेकिन साल 1995 में कांग्रेस के कैंडिडेट के लिए उन्होंने अपना पर्चा वापस ले लिया था।
वैसे तो संतोकबेन ने राजनीति का सिरा पकड़ लिया, लेकिन कहा जाता है कि वह अपराध के धागे में लिपटी भी रहीं। इस कारण से उनके गैंग पर हत्या, किडनैपिंग, रंगदारी जैसे 525 मामले दर्ज किए गए।
संतोकबेन जो एक तरफ पॉलिटिक्स दूसरी तरफ गैंग में उलझी हुई थी तब चौंक गई जब उन्हें गॉडमदर फिल्म की जानकारी मिली। उन्होंने फिल्म पर बैन लगाने की मांग की और कहा कि इससे उनके ‘मेहर’ समुदाय के साथ न्याय नहीं होगा। वहीं, फिल्म के डायरेक्टर विनय शुक्ला का तर्क था कि फिल्म संतोकबेन पर आधारित नहीं है।
यह मामला काफी बढ़ गया। संतोकबेन ने यह दावा किया कि कोई ऐसी महिला के बारे में बता दीजिए जो मेहर समुदाय से आती हो और अपने पति की हत्या का बदला लेती हो। बाद में निर्विरोध चुनाव जीतती हो। इस बीच एक लेखक मनोहर देसाई ने यह दावा कर दिया कि फिल्म उनके उपन्यास पर आधारित है। फिर कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील को सुना और सुनने के बाद फिल्म रिलीज की इजाजत दे दी।
इसके बाद साल 1996 में गुजरात में सत्ता परिवर्तन हुआ। बीजेपी सरकार में आई और संतोकबेन को 16 महीने के लिए जेल हो गया। जब वे जेल से छूटीं तो इसके बाद वह राजकोट चली गई। वह राजनीति में सक्रिय रही। मगर साल 2005 में एक बीजेपी काउंसलर की हत्या में उसका नाम सामने आ गया। पुलिस ने फिर उसे गिरफ्तार कर लिया।
फिर बदमाशों ने संतोकबेन के देवर के बेटे नवघन और बहू की गोली मारकर हत्या कर दी। बता दें कि संतोकबेन के चार बेटे हैं। एक बेटा कांधल जडेजा उनकी राजनीतिक विरासत को संभाले हुए है और कुतियाना सीट से एनसीपी के टिकट पर विधायक बन गया।
संतोकबेन अपने पूरे जीवन में अपनी गॉडमदर वाली छवि में रहीं। भले ही वह पोरबंदर से राजकोट आ गई थीं, लेकिन उनकी छवि वैसे ही बनी हुई थी। इस बीच उनके बच्चों ने राजनीति संभाल ली थी। इसके बाद 31 मार्च 2011 को हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हो गई।