बच्चे को चादर में लपेटा, दीवार पर पटक-पटककर मार डाला: लाश बैग में रखकर सिनेमा हॉल गई, दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे देखी

महाराष्ट्र के कोल्हापुर का एसटी बस स्टैंड। तारीख 14 अप्रैल 1991 और वक्त रात के 11 बजे। एक बूढ़ी महिला की गोद में ढाई साल का बच्चा बिलख रहा था… मम्मी-मम्मी। महिला बच्चे को एक कोने में ले गई और उसके गाल पर दो-तीन थप्पड़ जड़ दिए। बच्चा और जोर से चिल्लाने लगा।
बूढ़ी महिला और तिलमिला गई। उसने पूरी ताकत से बच्चे का गला दबाना शुरू कर दिया। बच्चा छटपटाने लगा। वह सामने बनी लोहे की रेलिंग की तरफ भागी। बच्चे की गर्दन पकड़ी और रेलिंग पर जोर-जोर से तीन-चार बार दे मारा। बच्चा खून से लथपथ हो गया। वह शांत पड़ गया।
इस बूढ़ी महिला का नाम अंजनाबाई था। कुछ ही पल बाद दो जवान महिलाएं रेणुका और सीमा भी अंजनाबाई के पास पहुंच गईं। उनके साथ किरण नाम का एक मर्द भी था।
अंजनाबाई बोली- ‘इसके कपड़े खून से सन गए हैं, धोने पड़ेंगे।’
रेणुका ने तुरंत एक बोतल उसकी तरफ बढ़ा दिया। अंजनाबाई ने कपड़े धोए। बच्चे की लाश को कपड़े में लपेटा और रेणुका से बोली- ‘इसे ठिकाने लगा दो। तब तक मैं यहीं बैठी हूं।’
रेणुका के हाथ में वड़ापाव था। अंजनाबाई ने उसके हाथ से वड़ापाव ले लिया और खुद बैठकर खाने लगी।
रेणुका, सीमा और किरण बच्चे की लाश लेकर चल पड़े। पास ही कोल्हापुर का विक्रम हाईस्कूल था। वहीं सड़क किनारे एक टूटा हुआ रिक्शा खड़ा था। तीनों ने कुछ देर इधर-उधर देखा। चुपचाप लाश रिक्शे के नीचे रखी और बस स्टैंड लौट गए।
तीन साल बाद…18 अक्टूबर 1994, रात के करीब 12 बज रहे थे। जगह पुणे का हडपसर। अंजनाबाई, रेणुका और सीमा साथ सो रहे थे। उनके साथ तीन साल की एक बच्ची भी थी। अचानक वह रोने लगी।
अंजनाबाई, बच्ची को गोद में लेकर चुप कराने लगी। बीच-बीच में अंजनाबाई झपकी ले रही थी। इसी बीच बच्ची जोर से चीखने लगी। अंजनाबाई झल्लाते हुए उठी और उसे दो थप्पड़ जड़ दिए। वह और जोर से चीखने लगी।
उस कमरे में सो रही रेणुका और सीमा भी जाग गईं। अंजनाबाई ने दरवाजा खोला और बच्ची को लेकर तीसरी मंजिल पर चली गई।
बच्ची लगातार चीख रही थी मम्मी-मम्मी। अंजनाबाई ने पहले पूरी ताकत से बच्ची का मुंह दबाया, लेकिन वो चुप नहीं हुई। फिर वह आगे बढ़ी, छत के किनारे तक गई। नीचे झाड़ियां थीं। अंजनाबाई ने बच्ची को झाड़ियों में फेंक दिया। धम्म से आवाज आई। बच्ची का चीखना बंद हो गया।
वापस कमरे में लौटकर अंजनाबाई ने कहा- ‘वो झाड़ियों के बीच कहीं पड़ी होगी। जाओ, उसे ठिकाने लगा दो।‘
रेणुका और सीमा तेजी से गईं। बच्ची झाड़ियों के बीच बेजान पड़ी थी। दोनों ने मिलकर बच्ची की गर्दन को तब तक दबाए रखा, जब तक उन्हें उसके दम तोड़ने की तसल्ली नहीं हो गई।
सुनो, ‘इसके कपड़े महंगे हैं, उतार लो।’ सीमा ने रेणुका से कहा।
रेणुका ने बच्ची के कपड़े उतार लिए और उसे वहीं छोड़कर कमरे में आ गई। रात करीब एक बजे रेणुका ने सूटकेस उठाया और फिर से झाड़ियों के बीच पहुंच गई। बच्ची की लाश को सूटकेस में भरा और चल पड़ी। कुछ देर बाद एक नहर के पास पहुंची और सूटकेस को नहर में बहा दिया और घर लौट आई।
11 महीने बाद… 29 अगस्त 1995 को अंजनाबाई, रेणुका, सीमा और किरण नासिक पहुंचे। मकवाना इलाके में उन्होंने किराए का एक कमरा लिया। हर शाम ये लोग नाग चौकी के पास एक घर का चक्कर लगाते थे। चारों उस घर के आस-पास घूमते, फिर लौट जाते।
10 दिन बाद यानी 9 अगस्त 1995 को रेणुका और सीमा उसी घर पर पहुंचीं। दरवाजा खटखटाया, एक महिला बाहर आई। तीनों अंदर चली गईं। आपस में बातें करने लगीं। उनके हाव-भाव से लगता था कि वे एक-दूसरे को जानती हैं। उस घर में दो बच्चियां और उनके पिता थे। एक बच्ची 9 साल की और दूसरी 7 साल की।
सीमा ने 9 साल की लड़की को बुलाकर अपने पास बिठा लिया। कुछ देर बाद पूछा- ‘बड़ी मम्मी तुम्हें बहुत याद करती हैं। कुछ दिन के लिए हमारे घर चलोगी?’
बच्ची बोली- हां।
हालांकि, उसके पिता मना करते रहे, लेकिन वो नहीं मानी।
रेणुका और सीमा उस बच्ची को साथ लेकर अपने घर लौट आए। अंजनाबाई ने बच्ची को गले लगाया और बोली- ‘कोल्हापुर चलोगी? बच्ची ने चहकते हुए कहा- हां।’
अगली सुबह चारों एक बस में बैठकर कोल्हापुर के लिए निकल पड़े। वहां पहुंचते-पहुंचते रात हो गई। किरण ने कहा- यहीं-कहीं आसपास कमरा लेकर रात गुजार लेते हैं।’
अंजनाबाई बोली- ‘हां, कुछ देख लो, लेकिन ज्यादा पैसे नहीं हैं मेरे पास। कुछ सस्ता ही देखना।’
कई होटलों में रूम पता करने के बाद आखिर बस स्टैंड के पास उन्हें ‘महाराज’ नाम के एक होटल में कमरा मिला। सभी रातभर यहीं रहे। अगले दिन टैक्सी बुक की और नर्सोवारी के लिए निकल पड़े। उनके साथ 9 साल की वो बच्ची भी थी।
कुछ घंटे बाद टैक्सी गन्ने के खेत के पास से गुजर रही थी। तभी रेणुका ने टैक्सी रुकवा ली। उसने अंजनाबाई से कहा- ‘मैं पेशाब करने जा रही हूं।’
वह टैक्सी से उतरी और 9 साल की उस बच्ची को लेकर गन्ने के खेत की तरफ चल दी।
वह बच्ची को खेत में काफी अंदर तक लेकर गई। बच्ची जैसे ही बैठी, रेणुका ने पीछे से उसका गला जोर से पकड़ लिया। किसी तरह बच्ची ने गला तो छुड़ा लिया, लेकिन वो लड़खड़ाकर गिर गई। रेणुका कूदकर उसकी छाती पर बैठ गई और गला दबाने लगी।
बच्ची बोल पड़ी- ‘ये क्या कर रही हो…छोड़ो मुझे।’
रेणुका ने उसका गला नहीं छोड़ा। बच्ची छटपटा रही थी। इसी बीच सीमा वहां आ गई।
रेणुका ने सीमा से कहा- ‘इसका हाथ-पैर पकड़ लो।’
सीमा ने बच्ची का हाथ-पैर जकड़ लिया। कुछ देर बाद बच्ची का शरीर शांत पड़ गया।
5 मिनट तक दोनों महिलाएं बेजान बच्ची को देखती रहीं। शरीर में कोई हलचल नहीं। बच्ची मर चुकी थी। दोनों ने उसे पास की नहर में ले जाकर फेंक दिया। फिर वापस गाड़ी में आकर बैठ गईं।
अंजनाबाई ने टैक्सी वाले से कहा- ‘चलो, अब चलना है।’
हिचकिचाते हुए ड्राइवर ने पूछा- ‘बच्ची कहां गई?’ सीमा झल्लाते हुए बोली- ‘उसकी मां आई थी। अपने साथ लेती गई।’
कुछ दूर चलने के बाद रास्ते में उन्हें दत्तात्रेय मंदिर दिखा। अंजनाबाई ने गाड़ी रुकवाई। तीनों गाड़ी से उतरे, मंदिर के बाहर लगे नल पर हाथ-पैर धोया और अंदर चले गए। तीनों ने इत्मीनान से दर्शन किया। पुजारी से प्रसाद लिया और फिर नासिक लौट गए।
करीब 9 महीने बाद… 12 अप्रैल 1996, कोल्हापुर का पल्लवी लॉज। रूम नंबर- 203 से बच्चे के रोने की आवाज आ रही थी। अंजनाबाई की गोद में डेढ़ साल की बच्ची थी। वह लगातार चीख रही थी। पास ही रेणुका और सीमा बैठी थीं। बातों-बातों में सीमा बोल पड़ी- उषा थिएटर में ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ फिल्म लगी है। देखने चलें क्या?
अंजनाबाई ने गुस्से में चिल्लाते हुए कहा- ‘पहले इसका कुछ करो…रातभर इसका रोना सुनकर मेरे सिर में दर्द हो गया है।’
उसकी तेज आवाज सुनकर बच्ची और जोर से रोने लगी।
अंजनाबाई उठी और पूरी ताकत से बच्ची का गला दबा दिया। बच्ची की आंखें लाल हो गईं। शरीर नीला सा पड़ गया।
रेणुका ने अंजनाबाई से कहा- ’ये मर तो गई होगी न?’
अंजनाबाई उठी और बच्ची को चादर में लपेटा। तीन-चार बार उसे दीवार पर दे मारा। चादर खून से सन गई।
उसने रेणुका से कहा- ‘इसे बैग में भर दो। फिर फिल्म देखने चलते हैं।’
रेणुका ने लाश बैग में रखी और बैग लेकर तीनों फिल्म देखने के लिए निकल पड़ीं। थिएटर पहुंचते ही गेट पर बैठे गार्ड ने रेणुका से कहा- ‘अब टिकट का टाइम नहीं है। देर हो गई है। दूसरा शो देखना। ‘
तीनों गार्ड से लड़ने लगीं। तंग आकर गार्ड ने कहा- ‘लड़ो मत, चले जाओ अंदर।’
आपस में कुछ बात करते हुए तीनों थिएटर के अंदर पहुंचीं। लाश वाला बैग साइड में रखा और फिल्म देखने लगीं।’
करीब डेढ़ घंटे बाद इंटरवल हुआ। सीमा उठी और डेड बॉडी से भरा बैग लेकर वॉशरूम पहुंच गई। वहां दो महिलाएं पहले से थीं। सीमा बेसिन में हाथ धोने लगी। जैसे ही दोनों बाहर निकलीं, सीमा ने एक कोने में बैग सरका दिया।
वह धीमे कदमों से बाहर निकली और एक दुकान की तरफ चल दी। सीमा दुकानदार बोली- ‘भैया…तीन समोसे दे दो।’ दुकानदार को पैसे दिए और समोसे लेकर हॉल में आ गई।
सीमा अपनी सीट पर बैठकर फिल्म देखने लगी। तीनों ने 3 घंटे 9 मिनट की पूरी फिल्म देखी। बीच-बीच में तालियां बजाईं, हंसी और मस्ती भी की। फिर अपने लॉज लौट गईं। उधर वॉशरूम में रखे बैग से धीरे-धीरे खून रिसना शुरू हो गया था, लेकिन अब तक उस पर किसी की नजर नहीं पड़ी थी।
पुलिस ने तीनों महिलाओं को पकड़ तो लिया, लेकिन इन्होंने कितने बच्चों का मर्डर किया था ये किसी को नहीं पता था, पुलिस ने कैसे सुलझाई ये मिस्ट्री
तीनों महिलाओं ने मिलकर गन्ने के खेत में जिस लड़की को मारा था उसका नाम क्रांति था। एक साल बाद क्रांति की मां बाजार में अंजनाबाई से टकरा गई। उसने बेटी के बारे में पूछा तो अंजनाबाई बोली- धुले शहर में है। क्रांति के मम्मी-पापा ने थाने जाकर FIR दर्ज करवाई। पुलिस ने अंजनाबाई, रेणुका और सीमा को गिरफ्तार भी कर लिया। अब तक ये किसी को नहीं पता था कि इन तीनों महिलाओं ने एक के बाद एक कई बच्चों को मारा था।