बरसात का मौसम है, धान की रोपाई को एक महीने से अधिक का समय हो चुका है। ऐसे वक्त में धान की फसल पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि इस मौसम में धान की खेती में कीट का प्रकोप होता है। इसके साथ ही कई प्रकार की बीमारियों का भी खतरा शुरू हो जाता है। ऐसे समय में धान का उचित प्रबंधन नहीं होने के कारण धान के उत्पादन पर खासा असर पड़ सकता है। तो इस मौसम में धान को कीट और बीमारियों से कैसे बचाएं इसके बारे में बता रहे हैं भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र पलांडू के कीट वैज्ञानिक डॉ जयपाल सिंह चौधरी।
धान में लगने वाली कीट
तना छेदक:
तना छेदक की पहचान करने के लिए धान के पौधे का ऊपरी हिस्सा सूखा हुआ दिखाई देता है। खींचने पर यह तुरंत निकल जाता है। पूरे खेत में हो जाने पर पूरा खेत सफेद दिखा देता है।
रोकथाम : आजकल किसान अधिक यूरिया का प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन उन्हें यह संतुलित मात्रा में देना चाहिए,ताकि यह कीट नहीं लगे। ऑर्गेनिक खेती में कीट का प्रकोप होने पर ट्राइकोकार्ट का इस्तेमाल करें यह अंड परजीवी होते हैं। इसे जगह जगह पर खेत में चिपका दिया जाता हैं।
जानकारी के लिए बता दें कि तना छेदक कीट प्रकाश की तरफ आकर्षित होते हैं। एक हेक्टेयर में 10 लाइट ट्रे लगा सकते हैं। लेकिन अगर कीट का प्रकोप ज्यादा हो गया है तो बाजार से कीटनाशक लाकर छिड़काव करें। इसका उपयोग सात से 10 दिन के अंतराल में करना चाहिए।
सांडा फटना:
झारखंड में स्थानीय भाषा में इसे सांडा फटना कहते हैं, इस कीट का प्रकोप होने पर धान के पत्ते बिल्कुल प्याज के पत्ते की तरह मुड़ जाते हैं। यह सिल्वर कलर की दिखाई देती है। इसमे बाली भी नहीं आती है। यह कीट छोटा मच्छर की तरह होता है।
नियंत्रण: इस कीट का प्रकोप होने पर इसे रोकना बिल्कुल भी आसान नहीं होता है पर किसान अगर चाहे तो इमिडाक्लोप्रिड को 125 मिली प्रति हेक्टेयर खेत में छिड़काव कर सकते हैं।
ब्राउन प्लांट हॉपर:
यह कीट बारिश के रुकने पर आती है। विशेषकर अभी के मौसम में इस कीट के प्रकोप की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। बारिश रुकने के साथ आद्रर्ता और तापपान दोनों बढ़ जाती है। सकंर नस्ल की धान पर इस कीट का प्रकोप होता है। जब इस कीट का प्रकोप होता है तो खेत में एक हिस्से में जला हुआ दिखाई देता है। यह गोलाकार आकार में बढ़ता है। इसके बाद यह पूरे खेत में फैल जाता है।
रोकथाम: इस कीट की रोकथाम के लिए हमेशा संतुलित मात्रा में ही यूरिया का छिड़काव करना चाहिए। इसके साथ ही अगर निचली जमीन में धान के खेत हैं तो खेत से पानी को निकाल देना चाहिए। पानी निकाल कर फिर से भरे। इस प्रक्रिया को दो बार दोहराएं। इसके निदान के लिए पीले रंग के स्टिकी ट्रैप का इस्तेमाल करें। जो किसान जैविक खेती करते हैं वो नीम आधारित कीटनाशक का छिड़काव एक हेक्टेयर में 3000 पीपीएम कर सकते हैं। लेकिन कई बार इस कीट का प्रकोप बहुत ज्यादा हो जाता है इसलिए फेनोब्यूकार्प नामक कीटनाशक को एक लीटर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करें। इसके अलावा इमिडाक्लोप्रिड 125 मिली प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करें। सात से दस दिन के अंतराल में जितनी जरूरत होती है उसके हिसाब से छिड़काव करें।
Back to top button