रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्थित कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय द्वारा विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस एवं बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती के उपलक्ष्य में बुधवार को “अंबेडकर, संविधान एवं सामाजिक समरसता” विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बलदेव भाई शर्मा ने कहा कि आज के समय में हमें जीवन की दशा और दिशा के बारे में सोचने की जरूरत है। आज हम बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती और विश्वविद्यालय की स्थापना दिवस बना रहे हैं। ऐसे कार्यक्रम का उद्देश्य समाज को जागरूक करना है। भारत देश की पहचान कृषि और ऋषि परंपरा से है, उसी परंपरा में डॉ. अंबेडकर भी आते हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज के उन्नयन के लिए कार्य किया। हमें उनके जीवन की असली प्रेरणा को भूलना नहीं चाहिए बल्कि उनके गुणों का अनुशीलन करते हुए उनके साहित्य को पढ़कर आत्मसात करने की आवश्यकता है।
आगे उन्होंने कहा कि पत्रकारिता का उद्देश्य समाज के निर्माण के लिए है, जो असहाय, वंचित, समाज की अंतिम पंक्ति के लोगों के लिए कार्य करता है। हमें महापुरुषों के गुणों को अपने भीतर निमित्त करने की आवश्यकता है ताकि हम उत्पीड़न रहित समाज बना सके। बाबा साहब ने अपना पूरा जीवन देश के लोगों के लिए समर्पित किया और लोगों को कर्तव्य बोध कराने का कार्य करते रहे। अनेक उत्पीड़नों के बाद भी हमेशा अपनी सहनशीलता और सृजनात्मकता से देश के संघीय ढांचे को मजबूत किया। उन्होंने सामाजिक पीड़ा सहन करते हुए वंचित वर्ग का मार्ग प्रशस्त किया।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सुप्रसिद्ध साहित्यकार, पत्रकार एवं चिंतक गिरीश पंकज ने कहा कि भटके हुए समाज को दिशा दिखाने के लिए कभी कबीर, गांधी तो कभी विवेकानंद आए। गांधी के सामानांतर ही अंबेडकर का उदय हुआ। अछूतों व वंचितों की सामाजिक आजादी के लिए उन्होंने कठिन संघर्ष किया। बाबा साहब को निर्माण पुरुष, आधुनिक भारत के निर्माता कह सकते हैं। उनके जीवन का लक्ष्य मनुष्य को मनुष्य होने का अधिकार दिलाना रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि बाबा साहब ने अश्पृश्यता के दंश को झेला लेकिन अपने पढ़ने की लगन को नहीं छोड़ा, छात्रों के लिए यह प्रेरणादायी हो सकता है। अपने कठोर अध्ययन व साधना से उन्होंने समाज के वंचित तबकों में समरसता का अलख जगाया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि जो समाज को शुद्ध करने का कार्य करता है वो शुद्र है, शुद्र का तात्पर्य निचले पायदान का व्यक्ति नहीं है, उसका काम सभी कामों से श्रेष्ठ है। संविधान के हिसाब से अगर देश चले तो देश अपने गौरवमयी स्वर्णिम काल में लौट सकता है। उस एक व्यक्ति की वजह से भारत के करोड़ों लोग सड़क से संसद तक पहुंच पाए हैं। बाबा साहब के विचारों से ही एक भारत श्रेष्ठ भारत के सपने को साकार किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ के संत गुरूघासी दास बाबा ने भी मनखे-मनखे एक समान के ध्येय वाक्य के साथ समाज में समानता, बंधुता व समरसता को जन-जन तक प्रवाहित करने का कार्य किया है। बाबा साहब ने संविधान के द्वारा संघीय ढांचे को मजूबत कर एक सशक्त व आधुनिक राष्ट बनाने में अपनी महती भूमिका अदा की है, जिसके हम ऋणी हैं।
कुलसचिव डॉ. आनंद शंकर बहादुर ने भी स्वागत भाषण में कहा कि बाबा साहब का संदेश एक नहीं, अनेक संदेशों को रेखांकित करता है। बाबा साहब आधुनिक भारत के निर्माता हैं। आज जिस मुकाम पर भारत पहुंचा है, उसकी नींव की आधारशिला बाबा साहब ने रखी है। एक व्यक्ति जिनके समय के समाज में अनेकों जाति, धर्म, अंधविश्ववास, कुरीतियां और चुनौतियां थी। मनुष्य को मनुष्य के रूप में जीने की स्वतंत्रता की बंधता थी, इसपर लोगों को अधिकार दिलाने की जो भावना थी उस संवेदना को हमें आत्मसात करना चाहिए। स्वतंत्र भारत में जिस तरह के मोती निकले उनमें से बाबा साहब भी एक थे। उन्होंने समुद्र मंथन के विष को स्वयं पीकर समाज को अमृत बांटने का कार्य किया। विभेद रहित समाज बनाने का काम किया।
कार्यक्रम का सफल संचालन पत्रकारिता विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. नृपेन्द्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन जनसंपर्क विभागाध्यक्ष डॉ. आशुतोष मंडावी ने किया। संगोष्ठी में पत्रकारिता विभागाध्यक्ष पंकज नयन पाण्डेय, सहा. प्रा. डॉ. राजेन्द्र मोहंती, अतिथि प्राध्यापक, अधिकारी-कर्मचारी सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।
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