छत्तीसगढ़ को वैसे तो धान का कटोरा कहा जाता है क्योंकि यहां अधिकतर धान की खेती की जाती है। लेकिन अब यहां कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में चाय और कॉफी की खेती की भी शुरुआत की जा रही है। कुछ दिनों पहले की गई खेती की सफलता के बाद बड़े स्तर पर खेती और मार्केटिंग की तैयारी की जा रही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कृषि मंत्री की अध्यक्षता में छत्तीसगढ़ टी-कॉफी बोर्ड बनाने का ऐलान किया है। छत्तीसगढ़ टी-कॉफी बोर्ड के उपाध्यक्ष उद्योग मंत्री होंगे। अगले तीन साल में सरकार ने 10-10 हजार एकड़ में चाय और कॉफी की खेती कराने का लक्ष्य बनाया है।
टी-कॉफी बोर्ड में मुख्यमंत्री के अतिरिक्त मुख्य सचिव, कृषि उत्पादन आयुक्त, उद्योग विकास निगम के प्रबंध संचालक, कृषि-उद्यानिकी और वन विभाग के एक-एक अधिकारी समेत दो विशेष सदस्य भी शामिल किए जाएंगे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, स्थानीय किसानों को ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंचाने के लिए और राज्य में चाय-कॉफी की खेती को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ टी कॉफी बोर्ड का गठन किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि आने वाले 3 साल में कम से कम 10-10 हजार एकड़ में चाय और कॉफी की खेती करने का लक्ष्य तय किया गया है। यहां तक कि खेती करने वाले किसानों को राजीव गांधी किसान न्याय योजना का लाभ भी दिया जाएगा। यानी कि उन्हें प्रति एकड़ 9 हजार रुपए की नकद सहायता प्रदान की जाएगी।
राष्ट्रीय संस्थानों से भी सहायता
अधिकारियों ने कहा कि चाय-कॉफी उत्पादन और विपणन में उद्यानिकी एवं उद्योग विभाग की अहम भूमिका होगी। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठित संस्थानों से भी तकनीकी मार्ग दर्शन लिया जाएगा। केवल यही नहीं, इसके लिए निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों, निवेशकों एवं कंसल्टेंट की भी सहायता ली जाएगी।
जशपुर में चाय की खेती
बता दें कि जशपुर जिले के पठारी क्षेत्र की जलवायु चाय की खेती के लिए बहुत अनुकूल है। मध्य भारत में जशपुर ही एकमात्र ऐसा जिला है जहां चाय की सफल खेती की जा रही है। सरकार ने जिला खनिज न्यास, वन विभाग के संयुक्त वन प्रबंधन, डेयरी विकास योजना एवं मनरेगा की मदद से चाय बागानों को विकसित किया है। वर्तमान में लगभग 50 किसानों ने 80 एकड़ भूमि पर चाय की खेती की है। चाय बागान लगने के 5 साल के बाद ही चाय का उत्पादन पूरी क्षमता से होता है। इससे प्रति एकड़ 2 लाख रुपए सालाना का लाभ होने की संभावना है।
बस्तर में हो रही कॉफी की खेती
बस्तर के दरभा और उसके आसपास के इलाकों में कॉफी की खेती को सफलता प्राप्त हुई है। ऐसा कहा जा रहा है कि 50 किसानों ने लगभग 100 एकड़ जमीन पर कॉफी के प्लांट लगाए हैं। इससे पूर्व यह 50 से 80 एकड़ तक में सीमित था। लेकिन अब इसे 300 एकड़ तक ले जाने की कोशिश की जा रही है। सरकार इस कॉफी को बस्तर काफी नाम से ब्रांडिंग कर रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक, कॉफी उत्पादन के लिए समुद्र तल से 500 मीटर की ऊंचाई आवश्यक होती है। बस्तर में ऐसे बहुत से इलाके हैं जहां 600 मीटर से ज्यादा ऊंची पहाड़ियां स्थित हैं। उन पहाड़ियों की ढलान पर खेती की जगह उपलब्ध है, जहां कॉफी का उत्पादन किया जा सकता है।
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