छत्तीसगढ़

‘लोन वर्राटू अभियान’ का पुलिस को मिला फायदा, सालभर में 426 नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण, 33 इनामी भी शामिल…

जगदलपुर। छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद का खत्मा करने के लिए सरकार की नीतियां कारगर साबित हो रही है। विगत 5 वर्षों में 5 लाख और 8 लाख के 2.13 करोड़ रुपए के इनामी 33 नक्सलियों ने सरेंडर कर दिया। “लोन वर्राटू” अभियान में तो साल भर में ही 426 नक्सली घर को लौट गए। इससे नक्सली गतिविधियों की कमर टूट गई तो विकास के रास्ते भी अपने आप ही खुल गए। इनमें सबसे खास इंद्रावती नदी पर पुल का निर्माण होना है।
जानकारी के मुताबिक, विगत 5 वर्षों में दंतेवाड़ा पुलिस के सामने लगभग 2.13 करोड़ रुपए के खूंखार इनामी नक्सलियों ने हथियार डाल दिए हैं। वहीं, साल 2016 से लेकर 2021 तक कुल 33 खूंखार इनामी नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया और मुख्यधारा में लौट आए हैं। जिनमें 5 लाख के 17 तो वहीं 8 लाख रुपए के 16 नक्सली शामिल हैं। इन 33 में से 12 नक्सलियों ने पिछले एक साल के भीतर पुलिस के लोन वर्राटू अभियान से प्रभावित होकर सरेंडर कर दिया है। अब इन सभी सरेंडर माओवादियों को सरकार की तमाम योजनाओं से जोड़ने का काम किया जा रहा है।
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“घर वापस आइए” अभियान का बड़ा फायदा
बता दें कि दंतेवाड़ा पुलिस ने साल 2020 में “लोन वर्राटू” यानी “घर वापस आइए” अभियान की शुरुआत की थी। इस अभियान की वजह से पुलिस को बड़ा फायदा मिला और साल भर के अंदर कुल 426 नक्सलियों ने हथियार डाल दिए। यहां तक कि इनमें 115 नक्सलियों पर इनाम भी घोषित है। SP डॉ अभिषेक पल्लव के मुताबिक, सरेंडर करने वालों में कई कमांडर स्तर के माओवादी भी शामिल हैं। दंतेवाड़ा या बस्तर के ही नहीं अपितु तेलंगाना, ओडिशा के नक्सलियों ने भी दंतेवाड़ा पहुंच कर सरेंडर कर दिया है। दंतेवाड़ा देश का ऐसा जिला बन चुका है, जिसने साल भर के अंदर 100 से ज्यादा इनामी माओवादियों को सरेंडर करवाया है।
सरेंडर नक्सलियों को जोड़ा जा रहा योजनाओं से 
अब दंतेवाड़ा पुलिस ने “लोन वर्राटू पार्ट-2” अभियान की भी शुरूआत कर दी है। इस अभियान के अंतर्गत पुलिस सभी 33 हार्डकोर नक्सलियों सहित दंतेवाड़ा जिले में सरेंडर किए गए सभी नक्सलियों के सरकारी दस्तावेज बनवा रही है। करीब 2 महीने पहले शुरू हुए पार्ट-2 अभियान के अंतर्गत जिले के सभी थाना क्षेत्रों में जिला प्रशासन के सहयोग से शिविर भी लगाए जा रहे हैं।
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इस शिविर में ग्रामीणों का आधार कार्ड, राशन कार्ड, बैंक पासबुक, आयुष्मान कार्ड, वोटर आईडी सहित अन्य सरकारी दस्तावेज बनाए जा रहे हैं। जिन्हें अब सीधे सरकार की योजनाओं से जोड़ा जा रहा है। वहीं जो नक्सली सरेंडर कर चुके हैं उन्हें एक समूह बना कर खेती करने के लिए ट्रैक्टर भी दिया गया है।
सरेंडर से मिला फायदा, विकास की राह
दूसरी तरफ, पुलिस को 33 खूंखार नक्सलियों के सरेंडर करने का बड़ा फायदा मिला है। एक ओर जहां नक्सल मोर्चे पर पुलिस को कामयाबी मिल रही है तो वहीं दूसरी ओर जिले में विकास की बयार बहने लगी है। धुर नक्सल प्रभावित इलाके तेलम-टेटम तक पक्की सड़क का निर्माण किया जा चुका है। साथ ही इंद्रावती नदी पर पुल भी बन रहा है। दंतेवाड़ा जिले को सुकमा जिले से जोड़ने व नारायणपुर को सीधे दंतेवाड़ा से जोड़ने सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है। अब तक जिन नक्सलियों ने सरेंडर किया है इन्होंने पुलिस के सामने कई बड़े खुलासे किए हैं जिसने नक्सलियों की कमर तोड़ दी है। मगर, विकास के कार्यों को लेकर फोर्स और सरकार के सामने अब भी चुनौती सामने है।
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झीरम नरसंहार में भी शामिल
जानकारी के अनुसार, दंतेवाड़ा पुलिस के सामने सरेंडर करने वाले ये 33 खूंखार नक्सली दरभा डिवीजन, मलांगिर एरिया कमेटी, इंद्रावती एरिया कमेटी, माड़ डिवीजन, पूर्वी बस्तर डिजीवन, दक्षिण बस्तर डिवीजन, आंध्र ओडिशा बॉर्डर स्पेशल जोनल कमेटी, पश्चिम डिवीजन कमेटी में सक्रिय थे। इनमें से बुधरा सोढ़ी समेत कई नक्सली दंतेवाड़ा विधायक भीमा मंडावी की हत्या में शामिल थे। इसके साथ ही कई नक्सली साल 2013 में हुई झीरम नरसंहार जैसी वारदात को भी अंजाम दे चुके हैं। इनके सरेंडर कर देने के बाद नक्सलियों की कमर टूटी गई है और इस वजह से पुलिस को कई बड़ी कामयाबी मिली है।

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