रायपुर। आज वैलेंटाइंस डे है। प्यार करने वाले इस बहुत ही खास दिन को बेहद खास तरीके से मनाते हैं। अंग्रेजियत से लबरेज वैलेंटाइंस डे प्यार करने वालों के लिए बहुत मायने रखता है। तो आज हम आपको कुछ खास बताने जा रहे हैं:
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अंग्रेजों के जमाने का एक ऐसा मंदिर स्थित है, जहां प्यार करने वाले जोड़े एक दूसरे से सात जन्मों के लिए बंध जाते हैं। प्यार करने वालों के लिए यह मंदिर किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है। प्रेमी जोड़े इस मंदिर में आकर एक दूसरे से शादियां रचा रहे हैं और अपना घर बसा रहे हैं। यह मंदिर रायपुर के बैजनाथ पारा में स्थित है जिसका नाम है आर्य समाज मंदिर।
लाला लाजपत राय द्वारा किया गया था उद्घाटन
मंदिर के प्रधान लक्ष्मी नारायण महतो ने जानकारी देते हुए बताया कि ‘भारत के स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय 1907 में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर आए थे। इस दौरान ही आर्य समाज मंदिर की स्थापना हुई थी। तब रायपुर को सीपी (सेंट्रल प्रोविंस) बरार, कहा जाता था। इस इलाके में शहर के लाल बैजनाथ ने मंदिर बनाने मे मदद की, इसलिए अब इस इलाके को बैजनाथ पारा के नाम से जाना जाता है।
उस दौरान के MP के पहले CM पं रविशंकर शुक्ल भी आर्य समाज के इस मंदिर से जुड़े हुए थे। राय जिन्होंने इस मंदिर की शुरुआत की, भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्हें पंजाब केसरी भी कहा जाता है। इनके द्वारा पंजाब नैशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना भी की गई थी। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे।’
अंग्रेजियत के जमाने से लेकर अब तक रायपुर के इस आर्य समाज मंदिर में 28 हजार 500 से ज्यादा प्रेमी जोड़ों की शादियां करवा कर उनको एक किया जा चुका है।
इस मंदिर के प्रधान महतो ने बताया, ‘यहां पिछले दो सालों में कोरोनाकाल के दौरान ऐसा हुआ कि आचार्यों ने कई दिनों तक एक भी विवाह संपन्न नहीं करवाया। 100 सालों के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था।
सामान्य दिनों में यहां हर साल 2 हजार से अधिक जोड़ों की शादियाँ कराई जाती है। कोरोना से पहले यहां साल 2019 में 2131, 2021 में 1762 और 2020 में 1532 जोड़ों की शादियां संपन्न हुईं।’
जब पैरेंट्स मारपीट पर हो जाते हैं उतारू
आर्य समाज मंदिर के पदाधिकारियों ने कहा, ‘यहां कई बार तो ऐसा होता है कि प्रेमी जोड़े घरवालों को बिना बताए ही शादी करने मंदिर पहुंच जाते हैं। लेकिन भनक लगते ही यहां घर वाले भी अपने रिश्तेदार और कुछ गुंडों को लेकर पहुंच जाते हैं। कई बार तो धक्का-मुक्की और झूमाझटकी जैसे हालात पैदा हो जाते हैं।
जानिए इसलिए शादियां करवाता है आर्य समाज
जानकारी के अनुसार, आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने सन 1875 में की थी। यह पूरी तरह से आस्तिक संगठन है। समाज के लोगों ने बताया, ‘यह मत, मजहब, संप्रदाय, वगैरह नहीं है। समाज का उद्देश्य सनातन धर्म का वैदिक प्रचार करना है। आर्य समाज की स्थापना वेद प्रचार के लिए की गई थी। यह समाज जन्म से जात-पात का खंडन करता है, इसी कारण से एकता के लिए अंतरजातीय विवाह करवाता है और प्रेमी जोड़ों की शादी करने में मदद करता है।’
प्रेमी जोड़ों को शादी के लिए करना होता है इन नियमों का पालन
शादी के लिए प्रेमी जोड़ों को अपनी चार-चार पासपोर्ट साइज फोटो देनी होती है। इसके अलावा लड़के- लड़की को स्टांप पेपर पर एफिडेविट देना होता है। जोड़ों की ओर से तीन लोगों का उपस्थित होना आवश्यक होता है। शादी करने वालों का हिंदू होना आवश्यक है। गैर हिंदू होने पर उनका वैदिक शुद्धीकरण संस्कार किया जाता है उसके बाद ही शादी की जाती है।
शादी के लिए 4000 रुपए का विवाह शुल्क लिया जाता है। लेकिन अगर कोई जोड़ा आर्थिक रूप से कमजोर है तो कई बार संस्था के लोग उनकी निशुल्क भी सहायता करते हैं। शादी के लिए जोड़े 2 मीटर पीला कपड़ा, दो फूलों के हार और कुछ खुले फूल लेकर मंदिर पहुंचते हैं।
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