रायपुर। छत्तीसगढ़ में कुपोषण (Malnutrition) के खिलाफ शुरू की गई जंग में एक बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है। प्रदेश के नक्सल प्रभावित एवं आदिवासी बाहुल्य कोंडागांव जिले ने देश के सामने एक उदाहरण पेश किया है। यहां मात्र डेढ़ वर्ष में ही जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या में 41.54 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। जो कुपोषण के खिलाफ शुरू की गई जंग में एक बड़ी उपलब्धि है। बहुत ही कम समय में ही प्रदेश में कुपोषण की दर में उल्लेखनीय कमी आई है।
यह सब संभव हो पाया है जिले के विभागों के समन्वित प्रयास, बेहतर रणनीति और मॉनिटरिंग के साथ यह संभव हो सका है। बच्चों को प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ देने के लिए प्रशासन ने जिले में अंडा उत्पादन यूनिट स्थापित की, जिससे रोजाना यहां से पांच हजार अंडे बच्चों को मिल रहे हैं। इसके साथ ही स्थानीय स्तर पर मिलने वाले रागी और कोदो से पोषण आहार तैयार कराया जा रहा है। कलेक्टर की निगरानी में वाट्सएप ग्रुप बनाया गया है, जिसमें खिलाये जा रहे बच्चों की तस्वीर डाली जाती है। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए कि अंडे और अनाज बच्चों तक पहुंच रहे हैं।
बस्तर संभाग से 80 किमी दूर कोंडागांव जिला के नक्सल प्रभावित एवं आदिवासी बाहुल्य होने के कारण विकास की मुख्यधारा से कई गांव बचे रह गए। लिहाजा, कुपोषण एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं वहां ज्यादा रहीं। वजन त्योहार के आंकड़ों के अनुसार, जिले में फरवरी 2019 में पांच वर्ष से कम आयु के लगभग 37 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार थे। कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान प्रशासन की सबसे बड़ी चुनौती थी कि कुपोषण की दर को नियंत्रित करना था।
जिला कलेक्टर पुष्पेंद्र कुमार मीणा ने बताया कि सुपोषण अभियान के तहत जून 2020 में ‘नंगत पिला’ परियोजना की शुरुआत की गई, जिसका अर्थ हल्बी बोली में होता है स्वस्थ बच्चा। परियोजना को पूरा करने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग को नोडल के रूप में नियुक्त किया गया। सबसे पहले कुपोषित बच्चों की पहचान के लिए जुलाई 2020 में जिले में बेसलाइन स्क्रीनिंग शुरू की गई, जिसमें 12726 बच्चों की पहचान की गई।
‘नंगत पिला’ परियोजना के तहत सबसे महत्वपूर्ण कार्य बच्चों को पौष्टिक आहार प्रदान करना था। इसके लिए बेहतर क्रियान्वयन एवं मॉनिटरिंग के साथ ‘उड़ान’ नाम से एक कंपनी शुरू की गई। आंगनबाड़ी द्वारा पौष्टिक आहार प्रदान करने के लिए स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को जोड़ा गया जो स्थानीय स्तर पर मिलने वाले पौष्टिक आहार तैयार कर आंगनबाड़ी केंद्रों में भेजती थीं।
बच्चों को अंडा, चिक्की, बिस्किट, बाजरे की खिचड़ी, रागी और कोदो से बने आहार दिए जा रहे हैं। जिले की सभी आंगनबाड़ी को 220037 अंडे और 35422 किग्रा मोठे अनाज की आपूर्ति हो चुकी है। इस परियोजना के द्वारा कोविड के दौरान भी जिले में कुपोषित बच्चों का पहचान कर उन्हें पौष्टिक आहार वितरित करने में मदद की। ‘नंगत पिला’ परियोजना में फरवरी 2019 की तुलना में जुलाई 2021 में जिले में कुपोषण में 15.73 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। 2019 में कुपोषित बच्चों की संख्या 19572 थी, जो कि 2021 में संख्या घट कर 11440 हो गयी। वहीं, 2019 की तुलना में कुपोषित बच्चों में 41.54 प्रतिशत की कमी आयी है।
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