केस-1
रायपुर। दुष्कर्म के मामले में गंज पुलिस ने कुछ दिन पहले एक आरोपी को गिरफ्तार किया। उसका मेडिकल मुलाहिजा कराने जिला अस्पताल भेजा गया। वहां डॉक्टरों ने कहा कि गंज थाने वालों को आंबेडकर अस्पताल में मुलाहिजा करवाना है, कहकर पुलिस वालों को आंबेडकर अस्पताल जाने कह दिया। पुलिस वाले आंबेडकर अस्पताल पहुंचे, तो उस समय ड्यूटी में महिला डॉक्टर थे। उन्होंने पुरुष आरोपी का मुलाहिजा करने से इनकार कर दिया। रात में पुरुष डॉक्टर आने पर ही मुलाहिजा होने की जानकारी दी। इससे परेशान होकर पुलिस वालों ने विभाग के आला अफसरों को सूचना दी। इसके बाद ही आरोपी का मुलाहिजा हो सका।
केस-2
गुढिय़ारी थाने में देर रात एक नाबालिग से दुष्कर्म का मामला आया। उसी रात पुलिस नाबालिग को मुलाहिजा के लिए गुढिय़ारी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंची। उस समय पुरुष डॉक्टर था। उसने टालमटोली की और रविवार को मुलाहिजा करने का आश्वासन देकर वापस भेज दिया। रविवार को जब नाबालिग को लेकर पुलिस और परिजन अस्पताल पहुंचे, तो वहां फिर महिला डॉक्टर नहीं थी। करीब दो घंटे के बाद भी नाबालिग का मुलाहिजा नहीं हुआ, तो परिजन बिफर पड़े। और अन्य लोग भी पहुंच गए। अस्पताल में हंगामा करने लगे। मामला बिगड़ते देख महिला डॉक्टर बुलाया गया। इसके बाद मुलाहिजा शुरू हुआ।
केस-3
करीब दो माह पहले उरला में एक नाबालिग से दुष्कर्म हुआ था। महिला पुलिस की टीम नाबालिग का मुलाहिजा कराने उरला प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंची। वहां डॉक्टरों ने मुलाहिजा करने से मना कर दिया। इसके बाद नाबालिग को पुलिस जिला अस्पताल कालीबाड़ी पहुंची, तो वहां डॉक्टरों ने उरला पीएचसी में ही मुलाहिजा कराने के लिए कह दिया। फिर पुलिस नाबालिग को लेकर उरला पहुंची। और मामला पुलिस अधिकारियों तक गया। इसके बाद पीएचसी में नाबालिग का मुलाहिजा हो सका।
कभी डॉक्टर नहीं, तो कभी दूसरे अस्पताल जाने की देते हैं नसीहत
4 से 5 घंटे तक घूमना पड़ता है अस्पतालों मे
दुष्कर्म जैसे मामलों में शिकायत से लेकर कार्रवाई तक के लिए विशेष पहल के निर्देश और प्रावधान हैं, लेकिन सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों के नखरे के आगे पूरा सिस्टम फेल हो जाता है। दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराध हो या मारपीट से जैसा सामान्य मामला, पीडि़त और आरोपी का मुलाहिजा कराने के लिए पुलिस वालों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। जो काम आधे घंटे में हो जाता है, उसके लिए 4 से 5 घंटे तक इंतजार करना पड़ता है। उतने ही समय तक कानूनी कार्रवाई प्रभावित रहती है। इसके अलावा डॉक्टर मुलाहिजा के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल जाने के लिए भी कहते हैं, जिससे पीडिता या आरोपी सहित पुलिस टीम भी परेशान होती है।
यह है व्यवस्था
पहले मुलाहिजा के लिए जिला अस्पताल और आंबेडकर अस्पताल ही अधिकृत थे। वर्तमान में थानों को उसके सबसे करीबी सरकारी अस्पताल में मुलाहिजा कराने की व्यवस्था है। गुढिय़ारी में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, उरला में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के अलावा आंबेडकर अस्पताल, पंडरी जिला अस्पताल, कालीबाड़ी जिला अस्पताल, मंदिरहसौद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र व अन्य अस्पतालों में उसके आसपास के थानों से मुलाहिजा के मामले आते हैं।
यह होती है समस्या
शहर के अधिकांश सरकारी अस्पतालों में महिला और पुरुष डॉक्टर की ड्यूटी एक ही समय नहीं रहता है। जिस समय पुरुष डॉक्टर की ड्यूटी रहती है, उस समय दुष्कर्म पीडि़ता को मुलाहिजा के लिए भेजते हैं, तो मुलाहिजा नहीं हो पाता है। इसी तरह जिस समय महिला डॉक्टर रहती है, उस समय दुष्कर्म के आरोपी का मुलाहिजा नहीं हो पाता है। उनके अस्पताल आने का इंतजार करना पड़ता है। कई बार दूसरा डॉक्टर आने में 4 से 5 घंटा लग जाता है। इसके अलावा जिला अस्पताल कालीबाड़ी या पंडरी में उरला, खमतराई, गंज, गुढिय़ारी आदि के मुलाहिजा के मामले जाते हैं, तो डॉक्टर उन्हें वापस भेज देते हैं। और उनके इलाके अस्पतालों में मुलाहिजा कराने कहते हैँ। और उनके इलाके के अस्पतालों में डॉक्टर अधिकांश मामलों में जिला अस्पताल जाने को कहते हैं।
रोज 150 से ज्यादा मुलाहिजा
रायपुर जिले के सभी थानों से मुलाहिजा रोज 150 से ज्यादा मामले आते हैं। मुलाहिजा के लिए पुलिस वाले सबसे पहले अपने करीबी अस्पताल में जाते हैं, वहां नहीं हो पाने के बाद जिला अस्पताल कालीबाड़ी या पंडरी जाते हैं। मारपीट, चाकूबाजी जैसे मामलों का मुलाहिजा करने में डॉक्टरों को ज्यादा समय लगता है। इनमें रिपोर्ट भी तत्काल देनी होती है। दूसरी दुष्कर्म जैसे अपराध में मुलाहिजा में करीब आधा घंटा ही लगता है, क्योंकि इसमें रिपोर्ट बाद में देना पड़ता है।
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