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भूपेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका, संबित पात्रा और रमन सिंह को मिली राहत बरकरार, जानें पूरा मामला…

कांग्रेस टूलकिट मामले में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा को थोड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार की अपील सुनने से इनकार कर दिया है।
इस अपील में सरकार ने टूलकिट मामले की जांच रोकने संबंधी उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी। कोर्ट ने कहा, हम उच्च न्यायालय से इसके जल्द निस्तारण का आग्रह करते हैं। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और हिमा कोहली की बेंच में हुई।
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सर्वोच्च न्यायालय में राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पैरवी की। सिंघवी ने कहा- यदि मैं हाईकोर्ट जाता हूं तो वास्तव में वहां सुनवाई होनी चाहिए। सिंघवी ने उच्च न्यायालय के आदेश का उल्लेख करते हुए कहा, “इसमें कहा गया है कि याचिकाकर्ता एक राजनीतिक व्यक्ति है। अगर वह एक राजनीतिक व्यक्ति है तो आप तुरंत ऐसे निष्कर्ष पर पहुंच जाएंगे।
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सिंघवी ने कहा, उच्च न्यायालय का कहना है, इनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है। ऐसे में अब मेरे पास वापस जाने के लिए क्या बचा है?’ सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा, “अपनी ऊर्जा बर्बाद मत करें, हम हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। हाईकोर्ट को इसका फैसला करने दें। हम उनके अवलोकन को देखेंगे।’
4 महीने पहले हुई थी FIR
भाजपा नेताओं की ओर से कांग्रेस की एक कथित टूलकिट सार्वजनिक होने के बाद रायपुर के सिविल लाइंस थाने में 19 मई को पहली FIR हुई थी। डॉ. रमन सिंह और संबित पात्रा के खिलाफ धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान), 505(1) 505(1)(बी) और 505(1)(सी) (सार्वजनिक शरारत करने वाले बयान), 469 (प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से जालसाजी) और 188 (लोक प्राधिकारी के आदेश की अवज्ञा) जैसी धाराएं लगाई गई थीं। इस FIR को NSUI के प्रदेश अध्यक्ष आकाश शर्मा की तहरीर पर लिखा गया था।
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जांच और गिरफ्तारी से बचने के लिए रमन सिंह और संबित पात्रा ने उच्च न्यायालय से राहत मांगी। वहां न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास की एकल पीठ ने मामले में जांच और कार्रवाई पर रोक लगा दी। उच्च न्यायालय का कहना था, यह मामला एक राजनीतिक व्यक्ति द्वारा राजनीतिक उद्देश्यों के साथ दर्ज कराया गया है।
प्रथम दृष्ट्या, याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है। कहा गया, पुलिस ने शिकायत की सत्यता की जांच किए बिना FIR दर्ज की है। इस FIR के आधार पर जांच जारी रखना और कुछ नहीं बल्कि प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। राज्य सरकार इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई थी।

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