किसान आंदोलन से कंगाल हो जाएंगे उत्तर भारत के राज्य? रोजाना का नुकसान जानेंगे तो फट जाएगा माथा, नहीं होगा यकीन
नई दिल्ली. किसान अपनी मांगों को लेकर फिर से सड़क पर उतर आए हैं. किसान संगठनों के आह्वान पर हजारों की तादाद में किसान ट्रैक्टर-ट्रॉली के साथ दिल्ली की ओर कूच कर रहे हैं. किसानों के विरोध-प्रदर्शन को देखते हुए हरियाणा-पंजाब सीमा को सील कर दिया गया है. किसानों को हरियाणा की सीमा में प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी जा रही है. इससे पुलिस और किसानों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई है.
शंभू बॉर्डर पर हुई झड़प में कई पुलिसकर्मियों और किसानों के घायल होने की सूचना है. इस बीच, किसान आंदोलन का प्रभाव राज्यों के खजानों पर भी पड़ने लगा है. एक आकलन के अनुसार, किसानों के प्रदर्शन और विभिन्न राज्यों की सीमाएं सील होने की वजह से उत्तर भारत के प्रदेशों को रोजना 500 करोड़ रुपये तक का नुकसान हो सकता है.
उद्योग मंडल पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआई-PHDCCI) ने किसानों के प्रदर्शन को लेकर अपना आकलन जारी किया है. PHDCCI ने शुक्रवार को बताया कि किसान आंदोलन के लंबा चलने से उत्तरी राज्यों में व्यापार और उद्योग को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है. उद्योग मंडल का कहना है कि किसान आंदोलन से रोजगार को भारी नुकसान होने की आशंका है और इससे प्रतिदिन 500 करोड़ रुपये से अधिक का आर्थिक नुकसान होगा.
लंबा चला आंदोलन तो…
पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष संजीव अग्रवाल ने कहा, ‘लंबे समय तक चलने वाले आंदोलन से प्रतिदिन 500 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान होगा और उत्तरी राज्यों मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के चौथी तिमाही के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) पर असर पड़ेगा.’ उन्होंने कहा कि उद्योग मंडल देश में सभी के कल्याण के लिए आम सहमति के साथ सरकार और किसानों दोनों से मुद्दों के शीघ्र समाधान की आशा करता है.
पांच राज्यों की हालत हो सकती है खस्ता
PHDCCI के अध्यक्ष अग्रवाल ने बताया कि किसानों का आंदोलन पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय के व्यवसायों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है. उत्पादन प्रक्रियाओं को निष्पादित करने और उपभोक्ताओं की मांग को पूरा करने के लिए ऐसी इकाइयों का कच्चा माल बड़े पैमाने पर अन्य राज्यों से खरीदा जाता है. सबसे बड़ी मार पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के एमएसएमई पर पड़ेगी. उन्होंने कहा, ‘पंजाब, हरियाणा और दिल्ली की संयुक्त जीएसडीपी मौजूदा कीमतों पर 2022-23 में 27 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है. इन राज्यों में लगभग 34 लाख एमएसएमई हैं जो अपने संबंधित कारखानों में लगभग 70 लाख श्रमिकों को रोजगार देते हैं.’