छत्तीसगढ़ को प्राकृतिक सुंदरता, झरने नदी पहाड़ इत्यादि के लिए जाना जाता है ये तो आप जानते ही होंगे।लेकिन क्या आप ये भी जानते हैं कि यहां ऐतिहासिक, पुरातात्विक और सांस्कृतिक महत्व की कई जगहें भी है। अब इन्हीं जगहों में से एक है सरगुजा की सीताबेंगरा गुफा। इस गुफा को विश्व की सबसे प्राचीनतम नाट्यशाला माना जाता है। बताया जाता है कि इस गुफा का इतिहास भगवान श्री राम के वनवासकाल से जुड़ा हुआ है।
ऐसा बताया जाता है कि भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने वनवास के समय उदयपुर ब्लॉक अंतर्गत रामगढ़ के पहाड़, जंगल में समय बिताया था। रामगढ़ के इन जंगलों में तीन कमरों वाली एक गुफा भी स्थित है। इस गुफा को सीताबेंगरा के नाम से जाना जाता है। सीताबेंगरा का शाब्दिक अर्थ है, सीता माता का निजी कमरा। छत्तीसगढ़ में स्थानीय बोली में बेंगरा का अर्थ कमरा होता है। इस वजह से इस गुफा को सीताबेंगरा कहा जाता है।
कहा जाता है कि भगवान राम के वनवास के दौरान सीताजी ने इसी गुफा में आश्रय लिया था। इस कारण से यह गूफा सीताबेंगरा के नाम से प्रसिद्ध हुई। यही गुफा रंगशाला (कहा जाता है कि यह दुनिया का पहला रंगमंच है) के रूप में कला-प्रेमियों के लिए तीर्थ स्थल है।
बता दें कि यह गुफा 44.5 फुट लंबी ओर 15 फुट चौड़ी है। सीताबेंगरा गुफा पत्थरों में ही गैलरीनुमा काट कर बनाई गई है। सीताबेंगरा गुफा का महत्व इसके नाट्यशाला होने से है। इसमें कलाकारों के लिए मंच नीचाई पर और दर्शक दीर्घा ऊंचाई पर है।
ऐसा कहा जाता है कि राम, सीता और लक्ष्मण ने अपने वनवास काल का कुछ समय यहीं गुजारा था। सीताबेंगरा का मतलब होता है सीता की गुफा। हालांकि यह गुफा प्राकृतिक हैं मगर मनुष्यों ने अपनी अभिरुचि से इसे अपने उपयोग के लायक बना लिया है।
जानकारी के अनुसार, इस गुफा में एक कमरा और उसमें बैठने के लिए चबूतरा बनाया गया है। यह गुफा साढ़े 44 फ़ुट लंबी और छह फ़ुट चौड़ी है। इसका एक हिस्सा नाट्यशाला का मंच माना जाता है। इसके सामने, कुछ नीचे एक अर्धचंद्राकार निर्माण है। इसे दर्शक दीर्घा माना जाता है। यहां करीब पचास के लगभग दर्शकों की जगह है।
इन गुफाओं के पास ब्राह्मी लिपि में कुछ लेख भी पाए गए हैं। इन्ही लेखों के आधार पर यह दावा किया जाता है कि हो सकता है कि यह नाट्यशाला रही होगी। वैसे तो इन लेखों का कुछ हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया है मगर जितना हिस्सा बचा है, उसे पढ़कर यह लगता होता है कि इस जगह का संबंध जरूर किसी प्रदर्शन कला से रहा होगा।
छत्तीसगढ़ पुरातात्विक संघ के संरक्षक कमलकांत शुक्ल ने बताया कि महाकवि कालिदास ने भी इस जगह पर समय बिताया है। महाकाव्य मेघदूतम की रचना यहीं पर की गई थी। लोग आज भी लोग यहां पर हर वर्ष बादलों की पूजा करते हैं और हर वर्ष एक त्यौहार का आयोजन करके इस जगह के बारे में बताते हुए कई सांस्कृतिक कार्यक्रम करते हैं।
इसके अतिरिक्त सीताबेंगरा के पास पांव के निशान भी मिले हैं जिसका अर्थ है यहां दो ग्रीन रूम थे। एक पुरुषों के लिए और एक महिलाओं के लिए थे। जो नाटक के दौरान तैयार होने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे।
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