छत्तीसगढ़

4 हज़ार पन्नों की इस रिपोर्ट में छिपा है सबसे बड़े राजनैतिक नरसंहार का सच! झीरम कांड की रिपोर्ट से मची खलबली

25 मई 2013 को कांग्रेस की एक राजनीतिक रैली पर नक्सली हमला हुआ था। आज़ाद भारत के इतिहास में यह सबसे बड़ा माओवादी हमला था। राजनेताओं की हत्या की दृष्टि से ही नेताओं के काफ़िले को निशाना बनाया गया। घटना के 3 दिन बाद यानी 28 मई 2013 को न्यायमूर्ति प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया गया था।
इस हमले में पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ला, प्रदेश के पूर्व मंत्री और पूर्व सांसद महेंद्र कर्मा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और पूर्व विधायक उदय मुदलियार सहित कुल 29 लोग मारे गए थे।
झीरम नक्सली हमले के बाद विपक्ष में रहने के दौरान कांग्रेस ने भाजपा सरकार पर जांच में देरी करने का आरोप लगाया था। वहीं प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद जांच में तेजी आई।
ढाई साल से ज्यादा समय के बाद झीरम घाटी हमले की जांच कर रहे न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा न्यायिक जांच आयोग ने शनिवार शाम राज्यपाल अनुसूईया उइके को जांच रिपोर्ट सौंप दी। जांच रिपोर्ट 10 वाल्यूम और 4184 पेज में तैयार की गई है।
कांग्रेस ने बताया मान्य प्रक्रिया का उल्लंघन
झीरम घाटी कांड की न्यायिक जांच रिपोर्ट सामान्य प्रशासन विभाग की जगह राज्यपाल को सौंपे जाने पर सवाल उठ खड़े हुए हैं। झीरम घाटी की घटना के लिए जांच आयोग का गठन राज्य सरकार ने किया था, इसलिए रिपोर्ट भी राज्य सरकार को ही सौंपी जानी चाहिए।
उन्होंने कहा जब आयोग का गठन किया गया था, तब इसका कार्यकाल 3 महीने का था। आयोग ने हाल ही में यह कहते हुए सरकार से कार्यकाल बढ़ाने की मांग की थी, कि जांच रिपोर्ट तैयार नहीं है। इसमें समय लगेगा। जब रिपोर्ट तैयार नहीं थी, आयोग इसके लिए समय मांग रहा था, फिर अचानक रिपोर्ट कैसे जमा हो गई यह भी शोध का विषय है।
कांग्रेस संचार विभाग के प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि सामान्य तौर पर जब भी किसी न्यायिक जांच आयोग का गठन होता है, वह अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपता है। झीरम नरसंहार के लिए गठित जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग की ओर से रिपोर्ट सरकार के बदले राज्यपाल को सौंपना ठीक संदेश नहीं दे रहा है।
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा, कांग्रेस विपक्ष में थी तो विधानसभा के हर सत्र में यह सवाल उठाती थी। यह उनका प्रमुख मुद्दा था। अब जब रिपोर्ट आ गई है तो कांग्रेस बेचैन है। कौशिक ने पूछा, क्या कांग्रेस को लग रहा है कि जांच प्रतिवेदन आ जाने से उसकी राजनीति खत्म हो जाएगी।
क्या था झीरम घाटी कांड?
25 मई के दिन कांग्रेस ने सुकमा में परिवर्तन रैली आयोजित की। रैली खत्म होने के बाद कांग्रेस नेताओं का काफिला सुकमा से जगदलपुर जा रहा था। काफिले में करीब 25 गाड़ियां थीं जिनमें 200 नेता सवार थे। सबसे आगे कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल और कवासी लखमा अपने-अपने सुरक्षाकर्मियों के साथ थे। देखा जाए तो छत्तीसगढ़ कांग्रेस के सभी टॉप नेता इस काफिले में शामिल थे।
शाम करीब 4 बजे काफिला झीरम घाटी से गुजर रहा था। यहीं पर नक्सलियों ने पेड़ों को गिराकर रास्ता बंद कर दिया। जिसके बाद पेड़ों के पीछे छिपे 200 से ज्यादा नक्सलियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। नक्सलियों ने सभी गाड़ियों को निशाना बनाया। नंदकुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश की मौके पर ही मौत हो गई। करीब डेढ़ घंटे तक फायरिंग होती रही।
जिसके बाद नक्सली पहाड़ों से उतर आए और एक-एक गाड़ी चेक करने लगे। जो लोग गोलीबारी में मारे जा चुके थे उन्हें फिर से गोली और चाकू मारे गए ताकि कोई भी जिंदा न बचे। जो लोग जिंदा थे उन्हें बंधक बनाया जा रहा था। हमले में 30 से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई। इसमें अजीत जोगी को छोड़कर छत्तीसगढ़ कांग्रेस के उस वक्त के अधिकांश बड़े नेता और सुरक्षा बल के जवान शहीद हुए।

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