गरियाबंद। जिले के धमतरी सीमा पर बसे ग्राम कूटना में वर्षों पुरानी प्राचीन बंदरगाह आज भी स्थापित है जो अपनी इतिहास खुद बया कर रही है ।
अद्भुत प्राचीन सिरकटी मुर्तियां
लगभग पांचवीं शताब्दी की प्राचीन भग्नावशेष पत्थर की मुर्तीयां श्री चतुर्भुज भगवान विष्णु(जिसका सिर कटा हुआ है) एवं परिचारिकाएं शिव लिंग व अन्य देवी-देवताओं हिंदू धर्म से सम्बन्धित आज भी संरक्षित है। हमारे छत्तीसगढ में पांचवीं शताब्दी में मंदिर वास्तुकला निर्माण प्रारंभ हो गया था।अंचल में छठवीं शताब्दी से नौवीं शताब्दी तक ईंटों से मंदिर निर्माण की श्रृंखला चल पड़ी थी।
इसके अंतर्गत सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर राम मंदिर, राजिम का राजिव लोचन मंदिर इसी समय का है। शरभपुरीय राजवंश के पतन के पश्चात् कल्चुरी शासन का स्थापना हुवा। कल्चुरियों के समय कालीन छत्तीसगढ़ में राज्य करने वाले प्रमुख राजवंश कवर्धा चक्रकोट (बस्तर ) के नागवंश तथा कांकेर के सोमवंश थे।कल्चुरी कालीन मंदिर गरीयाबंद जिले के राजिम में मिलते हैं।
महासमुंद और कौंवाताल के अभिलेखों में उल्लेखित इंद्रबल जो कि पांडु वंशी शाशक तीवरदेव के पितामह के रुप में जाना जाता है। तिवरदेव ने शरभ पुरीय शासन को समाप्त किया । शरभपुरीय शासकों के पश्चात् दक्षिण कोसल क्षेत्र में सोम वंशी शासकों का राज्य हुवा इन्हें ही पांडु वंश कहा जाता है।
इसी वंश में चंद्रगुप्त का पुत्र हर्षगुप्त हुवा। इनका विवाह मगध के राजा सूर्य वर्मा की पुत्री रानी वासटा से हुवा । हर्षगुप्त के मरणोपरांत उसकी रानी वासटा ने अपने पति की (मृत्यु) स्मृति में विष्णु मंदिर का निर्माण कराया । सिरपुर में ईंट से निर्मित यह लक्ष्मण मंदिर के नाम से विख्यात है।
देव स्थल के बाहरी वर्तमान निर्मित पुल के नीचे की ओर लगभग 6 से 8 फीट चौड़ा और 10 से 12 फीट गहरा नींव नुमा खुदा हुआ है। मान्यता है कि इस स्थल पर मंदिर निर्माण हो रहा था । परन्तु कुछ साल पहले पर्यटन विभाग द्वारा खुदाई का कार्य चल रहा था तो वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर नदी बंदरगाह था। पहले चुंकि आवागमन का साधन नही होता था तो बारिस के दिनों में जरुरी वनोपज राशन सामानों की आवागमन किया जाता था। यहां खुदाई में और भी बातें जानने को मिल सकती थी परंतु ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण खुदाई बंद कर दी गई।
सोढ़ू व पैरी नदी के पवित्र तट पर यह देव स्थल विद्यमान है। आजकल साधुओं के साधना केंद्र के रुप में विख्यात है । जिसका संचालन ब्रमहलीन संत 1008श्री भुवनेश्वरी शरण व्यास के शिष्य महंत गोवर्धन शरण जी व्यास कर रहे हैं। यहां पर जयपुर से लाल पत्थर मंगवाकर श्रीराम जानकी मंदिर का निर्माण कराया जा रहा है जो इस क्षेत्र के लिए गौरव की बात है।
देव स्थल से लगभग 1 किलो मीटर की दूरी पर सागौन, महुवा ,सरई पेड़ समुह है जो की तीन गांवों पांडुका,सरकड़ा कुटेना को केंद्रीत करती है। जहां पर चंडी माता की मंदिर स्थापित है जिसे तीन शीयादेवी कहा जाता है।
पांडुका ग्राम अपने आप में प्रसिद्ध है। यहां की धरती में अजीब सी उर्वरा शक्ति है। किंवदंतियों के अनुसार कौरव पांडव से जोड़ा जाता है। पांडुका को गौर किया जाए तो यह व्यापारिक केंद्र रहा है अगर सिरकट्टी को बंदरगाह के दृष्टिकोण से देखें तो पांडुका में सामानों का विक्रय होता रहा होगा। यहां का बाजार बहुत ही प्रसिद्ध है।इसके नाम करण की बात करें तो छत्तीसगढ़ में कल्चुरी शासन के पहले सोमवंशी शासक थे इन्ही राजाओं को पांडु कहा जाता था। शायद बंदरगाह होने के कारण राजा पांडु का आना रहा होगा तो उन्हीं के नाम से नामकरण हुआ होगा।
इसी ग्राम में सुप्रसिद्ध महर्षि महेश योगी जी की जन्म स्थली है।जो कि सात समंदर पार हालैंड में भी प्राचीन भारत के योग ध्यान का प्रचार प्रसार करते रहें है।
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