अतीक अहमद की पुलिस हिरासत में हत्या, राजनीति में उफान
गली के गुंडे से लेकर राजनीतिक नेता तक का सफर पूरा किया था
प्रयागराज (डेस्क)। कुख्यात अपराधी एवं नेता अतीक अहमद की कल प्रयागराज मेडिकल कालेज में चेकअप के दौरान पुलिस हिरासत में हत्या कर दी गई।इस हत्याकांड में उसके साथ उसका भाई असरफ भी मारा गया। हत्यारों ने हत्या के बाद खुद ही आत्मसमर्पण किया और जै श्रीराम के नारे लगाए। इससे पूर्व अतीक अहमद के फरार अपराधी पुत्र को पुलिस ने एक मुठभेड़ में मार दिया गया। उसकी हत्या पर राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। विपक्षी नेताओं ने योगी सरकार को नैतिकता के आधार पर एक मिनट भी सरकार में नहीं रहने की बात कही है। दूसरे तरफ सरकार ने प्ररागराज में इंटरनेट की सेवाएं बंद कर दी हैं। स्थिति की लगातार समीक्षा की जा रही है।
आइए देखते हैं आखिर एक स्ट्रीट फाइटर से डान और फिर राजनीतिक नेता तक का सफर अतीक ने कैसे पूरा किया। प्रयागराज में अतीक अहमद के आतंक की कहानी आज से करीब 45 साल पहले शुरू होती है। प्रयागराज तब इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था और यहां फिरोज तांगेवाले का बेटा अतीक अहमद 17 साल की उम्र में पहली बार जुर्म की दुनिया में दस्तक देता है।
मात्र 17 साल की उम्र में ही अतीक अहमद पर हत्या का आरोप लग चुका था। इसके बाद अतीक ने धीरे-धीरे जरायम की दुनिया में पैर जमाना शुरू किया और रंगदारी को ही अपना मुख्य धंधा बना लिया।
23 की उम्र तक अतीक ने अपराध की दुनिया में मजबूत पकड़ बना ली और प्रयागराज इलाके में तब के सबसे बड़े अपराधी 5 वर्ष में ही अतीक ने अपराध की दुनिया में पहचान मजबूत कर ली।
तब के बड़े अपराधी चांद बाबा से खुन्नस रखने वाले रसूखदार लोगों ने अतीक को समर्थन करना शुरू कर दिया था। अतीक कुछ ही समय में बड़े गिरोह वाला अपराधी बन चुका था। चांद बाबा के गिरोह पर भारी पड़ने लगा था।
अपराध की दुनिया में ताकत और दौलत कमाने के बाद अतीक अहमद ने राजनीति में पैर रखना शुरू किया, लेकिन हत्या, अपहरण, फिरौती के मामलों में मुकदमे दर मुकदमे दर्ज होते रहे, लेकिन राजनीतिक रसूख के कारण वह बेखौफ घूमता रहा।
साल 1989 में एक साल जेल में रहने के बाद अतीक अहमद ने इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा सीट से निर्दलीय पर्चा भरा। अतीक का मुकाबला कुख्यात चांद बाबा से था लेकिन धनबल बाहुबल से जीत अतीक की ही हुई। अतीक के विधायक बनने के कुछ माह बाद ही चांद बाबा की हत्या हो गई।
अब तत्कालीन इलाहाबाद में अतीक को टक्कर देने वाला कोई नहीं बचा। अतीक के सामने चुनाव में खड़ा होने की हिम्मत कोई नहीं कर पाता था।
अतीक अहमद ने निर्दलीय 1991 और 1993 में विधायकी का चुनाव जीता। उसके बाद साल 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चौथी बार विधायक बन गया।
इसके अगले चुनाव में अतीक अहमद ने एक बार फिर अपनी पार्टी बदली लेकिन जीत हासिल नहीं कर सका, तब वह प्रतापगढ़ से अपना दल के टिकट पर लड़ा था। साल 2002 में अतीक अहमद अपना दल के टिकट पर पांचवीं बार उप्र विधानसभा पहुंचा।
तब तक अतीक अहमद को राजनीति का नशा चढ़ चुका था और उसके रास्ते में जो भी आता था, उसे ठिकाने लगा देता था। राजू पाल की हत्या के 12 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए।
सीबीआई ने अतीक और अशरफ समेत 18 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। उमेश की मजबूत पैरवी पर हाई कोर्ट ने 2 महीने में राजू पाल हत्याकांड का ट्रायल पूरा करने का आदेश पिछले दिनों दिया था।
लेकिन इससे पहले ही 24 फरवरी को उमेश पाल की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई।
इस दौरान अतीक अहमद बीते 5 साल से अहमदाबाद की साबरमती जेल में बंद रहा।
अतीक व बरेली जेल में बंद उसके छोटे भाई अशरफ को उमेश पाल अपहरण मामले में 27 मार्च को कोर्ट में पेशी के लिए प्रयागराज लाया गया। 28 मार्च को पहली बार 100 से अधिक मुकदमों के आरोपी अतीक को उम्र कैद की सजा सुनाई गई।
अतीक को इसके बाद वापस 11 अप्रैल को प्रयागराज लाया गया और तभी 13 अप्रैल को उसके बेटे असद का एनकाउंटर हो गया। लेकिन दो दिन बाद ही अस्पताल के बाहर अतीक और अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी गई।