बस्तर के 29 गांवों में पहली बार फहराया गया तिरंगा
हिंसा से विश्वास की ओर बढ़ता दंडकारण्य

रायपुर। आज़ादी के 78 साल बाद बस्तर के उन इलाकों में तिरंगा शान से लहराया, जहाँ अब तक नक्सलियों का लाल झंडा ही खौफ और सत्ता का प्रतीक माना जाता था।
स्वतंत्रता दिवस पर बीजापुर, नारायणपुर और सुकमा जिलों के 29 गांवों में पहली बार राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया। दशकों से बंदूक और भय के साए में जी रहे इन गांवों में तिरंगे का फहरना केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि बदलते बस्तर की ऐतिहासिक तस्वीर है।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा कि यह उपलब्धि सरकार के उस संकल्प का परिणाम है, जिसमें नक्सल प्रभावित इलाकों में शांति और विकास की नई धारा प्रवाहित करने का लक्ष्य रखा गया है।
उन्होंने कहा “बस्तर अब भय और हिंसा से बाहर निकलकर प्रगति और विश्वास की ओर बढ़ रहा है। हमारा वचन है कि हर गांव तक विकास की रोशनी पहुँचेगी और कोई भी नागरिक इससे अछूता नहीं रहेगा।”
उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने इसे सुरक्षा बलों की कड़ी मेहनत और स्थानीय समुदायों के धैर्य का परिणाम बताया। उन्होंने कहा “आज जिन गांवों में तिरंगा फहराया गया, वहाँ दशकों तक लाल झंडे का खौफ छाया रहा।
यह बस्तर में नई सुबह का प्रतीक है। केंद्र और राज्य सरकार मिलकर बस्तर के विकास के लिए निरंतर कार्य कर रही है।”
पिछले वर्षों में सुरक्षा बलों की नई रणनीति, शिविरों की स्थापना और निरंतर दबाव से नक्सली संगठन कमजोर हुआ है। आत्मसमर्पण नीति ने बड़ी संख्या में उग्रवादियों को मुख्यधारा में लौटने का अवसर दिया। साथ ही, सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि स्थायी समाधान केवल सुरक्षा से नहीं, बल्कि विकास से आएगा।
इसी कारण सड़कों, बिजली, स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधाओं का तेजी से विस्तार हो रहा है। प्रधानमंत्री आवास योजना, मनरेगा और अन्य योजनाओं से ग्रामीणों को प्रत्यक्ष लाभ मिल रहा है।
बस्तर की यह नई तस्वीर पूरे देश को यह संदेश देती है कि इच्छाशक्ति, रणनीति और जनभागीदारी मिलकर असंभव को संभव बना सकती है।
कर्रेगुट्टा समेत 29 गांवों में लहराता तिरंगा इस बात का प्रमाण है कि हिंसा की अंधेरी रात अब पीछे छूट रही है और बस्तर शांति, विकास और आत्मविश्वास से भरे भविष्य की ओर कदम बढ़ा रहा है।