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कोरोना योद्धा : 6 दोस्तों की लग्ज़री कारें बनी एम्बुलेंस, कोविड के मरीजों के एक फोन पर पंहुचा रहे अस्पताल

देश की तरह हमारा प्रदेश छत्तीसगढ़ भी भयंकर महामारी कोरोना की मार झेल रहा है। लेकिन इस संक्रमण के दौर में भी कुछ लोगों ने मदद करने की ठानी है। ऐसा ही कुछ भले का काम कर रहें है भिलाई शहर के ये 6 दोस्त जिन्होंने अपनी लग्जरी गाड़ियों को ही एम्बुलेंस बना दिया है और मरीजों की एक काल पर उन्हें अस्पताल पंहुचा रहें हैं। भिलाई के खुर्सीपार निवासी के प्रवीण और भिलाई के ही आनंद विश्वकर्मा और उनके चार दोस्तों ने मिलकर ट्विनसिटी में फ्री एंबुलेंस सुविधा शुरू की है। इतना ही नहीं जहां सरकारी एंबुलेंस के कर्मचारी कोविड मरीजों को हाथ लगाने से कतराते हैं, ऐसे में यह युवा पीपीई पहनकर उन्हें हर तरह से मदद कर रहे हैं।

सबका मिला साथ जब दोस्तों ने की शुरुआत

 बिजनेस मैन आनंद विश्वकर्मा के पास अपनी दो लग्जरी गाड़ी है और उन्होंने भी अपनी कार को कोविड मरीजों की मदद के लिए एंबुलेंस का रूप दे दिया। उन्होंने बताया कि उनका साथ देने दो दोस्त और भी साथ आ गए और उन्होंने भी अपनी गाडिय़ां एंबुलेंस सेवा के रूप में उन्हें दे दी। अब चार दोस्तों ने मिलकर टीम बनाई और लोगों की मदद के लिए निकल पड़े। पूरे एक महीने से वे लोगों को अस्पताल तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं।राहुल, शुभम, सैय्यद, घनश्याम, आशीष सभी मिलकर काम कर रहे हैं। इसमें एक टीम फोन रिसीव करती है, दूसरी उसे वेरिफाई कर ड्राइवर को मैसेज भेजती है। वही जो भी फ्री होता है वह पीपीई पहनकर गाड़ी में साथ जाता है, ताकि परिवार को मदद मिल सकें। आनंद ने बताया कि इस दौर में जब अपने ही कोविड का नाम सुनकर साथ छोड़ देते हैं तब लोगों को सहारे की जरूरत होती है, और वे सभी अपने छोटे से इस प्रयास से लोगों का सहारा बनने की कोशिश कर रहे हैं।

क्यों बने एम्बुलेंस ड्राइवर

कोरोना योद्धा बने प्रवीण ने बताया कि उनकी अपनी ट्रेवल्स एजेंसी है। घर में गाड़ी की सुविधा है,लेकिन पिछले दिनों उनके मोहल्ले में रहने वाले एक परिवार के सदस्य की मौत सिर्फ इसलिए हो गई कि उन्हें समय पर अस्पताल जाने वाहन नहीं मिला। जब तक उन तक बात पहुंची तब तक उस शख्स की मौत हो गई थी।उसके बाद उन्होंने ठाना कि वे कोविड मरीजों को फ्री में ही अस्पताल पहुंचाएंगे। उन्होंने सोशल मीडिया का सहारा लेकर अपना नंबर वायरल किया। जिसके बाद रोजाना लोग उन्हें मदद के लिए फोन करते हैं। अब तक वे 25 से ज्यादा मरीजों को अस्पताल पहुंचा चुके हैं। उनका मानना हैं कि अगर उनकी छोटी सी मदद से किसी का जीवन बच सकता है, तो यह उनके लिए सबसे बड़ा पुण्य का काम होगा।

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