एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) ने बताया है कि कुल 363 सांसद व विधायकों के ऊपर आपराधिक आरोप लगे हैं। यदि दोषसिद्धि हो जाती है तो उन्हें जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत अयोग्य करार कर दिया जाएगा। चार केंद्रीय और राज्यों के 35 मंत्रियों ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा आठ के तहत दर्ज आपराधिक मामलों की घोषणा कर दी है।
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कानून की धारा आठ की उप धाराएं (1), (2) और (3) में यह प्रावधान है कि इनमें से किसी भी उप-धारा में उल्लिखित अपराध के लिए दोषी को दोषसिद्धि के दिन से ही से अयोग्य करार कर दिया जाएगा। फिर रिहाई के बाद भी वह अगले छह साल तक अयोग्य ही बना रहेगा। जो चुनाव सुधारों पर काम करने वाले संगठन एडीआर व नेशनल इलेक्शन वाच हैं उन्होंने वर्ष 2019-21 तक 542 लोकसभा सदस्यों और 1,953 विधायकों के हलफनामों का विश्लेषण किया है। इसके अनुसार 2,495 सांसदों व विधायकों में से 363 ने यह घोषणा कर दी है कि अदालतों द्वारा उनके खिलाफ अपराधों के लिए आरोप तय कर दिए गए हैं। बता दें कि इनमें 296 विधायक और 67 सांसद शामिल हैं।
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एडीआर ने बताया कि भाजपा में ऐसे सांसदों व विधायकों की संख्या सबसे अधिक 83 है, वहीं कांग्रेस में 47 और तृणमूल कांग्रेस में 25 है। फिलहाल, 24 मौजूदा लोकसभा सदस्यों के खिलाफ कुल 43 आपराधिक मामले लंबित हैं, जबकि 111 वर्तमान विधायकों के खिलाफ कुल 315 आपराधिक मामले 10 साल या उससे अधिक समय से लंबित हैं।
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जानकारी के मुताबिक, बिहार में 54 विधायक ऐसे हैं, जो इस तरह के गंभीर आपराधिक मामलों में आरोपी पाए गए हैं। केरल में ऐसे 42 विधायक है। सांसदों और विधायकों के आपराधिक मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी सख्त बनी हुई है। अभी, सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व और वर्तमान सांसदों और विधायकों के आपराधिक मुकदमों की सुनवाई कर रही विशेष अदालतों में वीडियो कांफ्रेंसिंग सुविधा के बारे में पूरी जानकारी मांगी थी।
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यह भी बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरलों से यह भी पूछ लिया था कि कौन जज किस मामले की सुनवाई कर रहे हैं और किस जगह अदालत स्थित है। कितने दिनों से विशेष जज पद पर बने हुए हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, शीर्ष अदालत ने किस विशेष जज ने कितने केस निपटा लिए हैं, यह जानकारी भी मांगी थी।