रायपुर। भारतीय वन सेवा (IFS) के एक अधिकारी को सूचना मांगने पर लोगों को गुमराह करने की आदत बहुत भारी पड़ गई। वन विभाग के तत्कालीन जन सूचना अधिकारी पर राज्य सूचना आयोग ने 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक को यह राशि अफसर से वसूल कर कोष में जमा करने के निर्देश दिए गए हैं।
जानकारी के अनुसार, रायपुर निवासी नितिन सिंघवी ने अगस्त 2019 में प्रधान मुख्य वन संरक्षक कार्यालय से एक सूचना मांगी थी। सिंघवी असम से वन भैंसा लाने के प्रयास में वन संरक्षक कार्यालय की तरफ से किए गए पत्राचार की प्रति चाहते थे। इसके उत्तर में जन सूचना अधिकारी पंकज राजपूत ने कहा कि ऐसा कोई पत्राचार नहीं हुआ।
जब मामला अपील में गया तो जन सूचना अधिकारी ने कहा, आवेदक ने यह नहीं बताया है, कौन से वन भैंसे लाने का पत्राचार मांगा है। वन भैसा किसका है। पालतू है या जंगली है, इसकी भी जानकारी नहीं दी है। आवेदक के पत्र से ऐसा प्रतीत होता है कि वन भैंसा असम में कहीं रखा गया है, जिसे लाना है। वन भैंसे से संबंधित ऐसा कोई पत्राचार कार्यालय की नस्ती में नहीं है।
इसके बाद सिंघवी ने दिसंबर 2019 में नया आवेदन लगाकर ऐसे पत्राचार दिखने की मांग की। इसके उत्तर में जन सूचना अधिकारी ने कहा, पहले ही बता दिया गया है कि ऐसा कोई पत्राचार नहीं हुआ है। ऐसे में अभिलेख/नस्तियों का अवलोकन कराने का सवाल ही नहीं उठता। पूरा मामला सुनने के बाद सूचना आयुक्त एके अग्रवाल ने इसे आवेदक को धोखे में रखने वाला काम माना। उसके बाद पंकज राजपूत पर अधिकतम जुर्माना लगाया गया। वर्तमान में पंकज राजपूत महासमुंद के DFO हैं।
सूचना आयोग तक पहुंची शिकायत
नितिन सिंघवी वन विभाग के जवाब से नाराज नाराज हो गए। वे राज्य सूचना आयोग पहुंचे। वहां उन्होंने कहा, मई 2017 में छत्तीसगढ़ राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक हुई थी। इसमें असम से 3 मादा वन भैसों को छत्तीसगढ़ लाने के निर्णय का उल्लेख है। बैठक के मिनिट में यह भी जिक्र किया गया है कि मुख्य वन्य प्राणी अभिरक्षक और वन मंत्री ने असम सरकार के साथ पत्राचार किया है। फरवरी 2017 में दिल्ली में बैठक भी हुई थी। जिसमें वन भैसों को ट्रांसलोकेट करने के निर्देश दिए गए थे।
सुनवाई के बाद सूचना अधिकारी ने दे दिया पत्राचार
वर्तमान जन सूचना अधिकारी ने जुलाई 2021 में असम से लाए जाने वाले वन भैसों से संबंधित 44 पत्र नितिन सिंघवी को मुहैया करा दिए। उस समय सुनवाई चल रही थी। जन सूचना अधिकारी ने आयोग से कहा कि शिकायतकर्ता को 44 पत्र दे दिए गए हैं। इसपर आयोग ने कहा, यह पत्र बताते हैं कि सभी दस्तावेज वन विभाग के पास पहले भी मौजूद थे। सिर्फ गुमराह करने के उद्देश्य से गैर जरूरी प्रश्न पूछे गए।
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