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अस्पताल का गेट खुलता तो बच जाती महिला की जान, जब तक पहुंचा डाक्टर हो गई थी देर

छत्तीसगढ़ में एक बार फिर किसी के जीवन के सामने हारा सिस्टम। मामला बिलासपुर का है जहाँ जिला अस्पताल (कोविड सेंटर ) के दरवाजे पर एक महिला डेढ़ घंटे तक तड़पती रही। बताया जा रहा है की पहले तो गार्ड ने गेट ही नहीं खोला। जब परिजनों ने SDM से बात तब जाकर किसी तरह गेट खोला गया। जिसके बाद एंबुलेंस अंदर ले जाया गया, लेकिन उसके बाद भी उस महिला को भर्ती कराने के लिए कोई भी स्टाफ नीचे नहीं आया। जब पत्रकारों ने कॉल किया तो जाकर कहीं डॉक्टर नीचे आए, लेकिन डॉक्टर वहां पहुँचते उससे पहले ही महिला की मौत हो चुकथी।

आपको बता दें की बिल्हा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एक महिला में कोविड के लक्षण देख डॉक्टरों ने उन्हें जिला अस्पताल ले जाने को कहा।दरअसल, बिल्हा के गांव म्योराभाठा निवासी मां श्याम बाई (55) की तबीयत बुधवार को अचानक बिगड़ती हुई नज़र आई। परिजनों द्वारा महिला को तुरंत बिल्हा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। वहां महिला में कोविड के लक्षण देख डॉक्टरों ने उन्हें जिला अस्पताल ले जाने की सलाह दी। एंबुलेंस के द्वारा परिजन श्यामा बाई को कोविड अस्पताल लेकर पहुंचे, लेकिन गार्ड ने गेट ही नहीं खोला। करीब आधे घंटे यह सब वहां चलता रहा। इसके बाद श्याम बाई के बड़े बेटे ने SDM को कॉल किया।

SDM के निर्देश पर अस्पताल का खुला गेट 

बताया जा रहा है की SDM ऑफिस से अस्पताल को निर्देश मिला तब जाकर गार्ड ने गेट खोला और अस्पताल के ऊपर बनाए गए कोविड वार्ड को जाकर तुरंत सूचना दी। इसके बाद भी करीब एक घंटे तक अंदर अस्पताल के दरवाजे पर एंबुलेंस खड़ी रहीं, लेकिन कोई भी मरीज लेने के नहीं आया। महिला एम्बुलेंस के अंदर ही दर्द से तड़प रही थी। इस बीच इस बात की जानकारी मिलने पर पत्रकारों ने अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. अनिल गुप्ता को फ़ोन लगाया। जिसके बाद डॉक्टर स्टाफ के साथ नीचे आए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी महिला की एम्बुलेंस में ही मौत हो गई थी।

 बाई श्यामा के पुत्र ने बोला- पता है कोरोना के चलते दिक्कतें हैं, लेकिन गाइड तो करते

वहीं श्यामा बाई के बेटे धीरज मानिकपुरी ने बताया कि उनकी मां एंबुलेंस के अंदर ही बेरहमी से तड़पती रहीं, लेकिन अस्पताल का कोई स्टाफ उन्हें देखने तक नहीं आया। उन्होंने कहा कि पता है कि कोरोना संक्रमण के चलते बहुत दिक्कत है। बेड नहीं हैं, डॉक्टर, मरीज, स्वास्थ्यकर्मी सब परेशान है, लेकिन मेरी मां की कंडीशन को भी देखना चाहिए था । वह सीरियस थीं। कुछ गाइड करते, हमें ही बताते कि क्या करें । बेड नहीं था तो किसी और अस्पताल ले जाने को कहते।

डॉ. गुप्ता ने बोला – की ऊपर वर्ड में एक भी बेड खाली नहीं था । क्रिटिकल मरीजों को देखने के लिए हाउसकीपिंग स्टाफ तैयारी कर रहा था। अगर सीरियस मरीज को गेट पर लाकर खड़े हो जाएंगे तो उनकी गलती है।

डॉक्टर बोले- मुझे इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि मरीज कब आया

गार्ड की ओर से ऊपर अस्पताल स्टाफ को सूचना दी जाती है। कहां दिक्कत हुई यह जांच का विषय है।आपसे सूचना मिली तो 10 मिनट में पहुंचा, पर मेरे पहुँचते तक उनकी मौत हो चुकी थी। सुपरवाइजर को भी नहीं पता था कि कोई गंभीर मरीज लाया जा रहा है। नियमानुसार, CHC और PHC को मरीज भेजते समय सूचना देनी चाहिए थी।

डॉ. अनिल गुप्ता, सिविल सर्जन, जिला अस्पताल, बिलासपुर

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