भारत

पान-गुटखे की पीक ने किया रेलवे की नाक में दम, थूक की सफाई में खर्च हो रहे 1200 करोड़ रुपए

स्वच्छता अभियान को लेकर देश में बड़ी मुहिम चलाई जा रही है। खुले में कहीं भी थूक देने की आदत अभी भी बड़ी समस्या बनी हुई है। रेलवे परिसरों की दीवारों से पान और तंबाकू के दाग-धब्बे छुड़ाने में हर साल 1200 करोड़ रुपए के आस-पास का खर्च हो जाता है। यह आंकड़ा किसी को भी चौंका सकता है। देश में चल रहे स्वच्छता अभियान के बाद भी इतनी मोटी रकम का सफाई पर खर्च होना बड़ा सवाल उठाता है।
यही नहीं, इस काम में ढेर सारे पानी की भी बर्बादी हो जाती है। सफाई के बोझ के अलावा सार्वजनिक स्थानों पर थूकना भी स्वास्थ्य के लिए खतरा है। जिस जगह पर व्यक्ति थूकता है, उसके चारों ओर 27 फीट के दायरे में कीटाणु फैल जाते हैं। आपदा प्रबंधन अधिनियम ने सार्वजनिक स्थानों पर थूकने को दंडनीय अपराध बना दिया है, जिसके लिए 200 रुपये से लेकर 5,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
विज्ञापन पर भी होते हैं खर्च 
अहम बात ये भी है कि रेलवे यात्रियों की इस हरकत को रोकने के लिए विज्ञापन पर भी खर्च करता है। रेलवे विज्ञापनों के जरिए यात्रियों से इधर-उधर नहीं थूकने की अपील करता है। इसके बावजूद स्थिति में सुधार होता नहीं दिख रहा है।
अब तैयार किया ये प्लान
अब रेलवे ने इस समस्या से निजात पाने के लिए अलग तरीका खोज लिया है। रेलवे स्पिटून (पीकदान) की वेंडिंग मशीनें या कियोस्क लगाने जा रहा है जहां से आप थूकने के लिए स्पिटून पाउच खरीद सकते हैं जिसकी कीमत 5 से 10 रुपये के बीच होगी। फिलहाल यात्रियों के इस्तेमाल के लिए देश के 42 स्टेशनों पर ऐसे स्टॉल शुरू करने की योजना है। इन बायोडिग्रेडेबल पाउच को 15-20 बार यूज किया जा सकता है। ये थूक को ठोस पदार्थ में बदल देता है। इन पाउच की मदद से यात्री बिना किसी दाग के कहीं भी कभी भी थूक सकता है।

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