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इस दिव्यांग बच्ची का हुनर देखकर आप हैरान रह जाएंगे, पढ़ाई में भी अव्वल, कहा- शरीर विकलांग…हौसला नहीं

नवरात्रि मतलब शक्ति आराधना का त्यौहार। शक्ति यानी मां राजेश्वरी। छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में भी 13 साल की एक राजेश्वरी है, जो दिव्यांग हैं, पर बहुत सामर्थ्यवान है। उनके दोनों हाथ-पैर बेकार हो चुके हैं, लेकिन फिर भी स्कूल जाती है, पढ़ती-लिखती है। यहां तक कि गाना भी गाती है, खेलती है, पेंटिंग भी करती है और अब स्कूल की रंगोली चैंपियन बन चुकी है। उसका कहना भले ही शरीर विकलांग हो सकता है, किंतु हौसले नहीं। उसे इसी हौसले ने आगे बढ़ना सिखाया है। तो आईये महाअष्टमी पर जानते हैं, उसी राजेश्वरी की कहानी।
प्रदेश के नक्सल प्रभावित कोंडागांव जिले के तहत आने वाले मसोरा पंचायत के गुडरापारा में संचालित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में राजेश्वरी 7वीं क्लास में अध्ययनरत है। उसके हाथ और पैर तो हैं, मगर जन्म से ही खराब हैं। हाथ मुड़े तो कभी सीधे ही नहीं हुए, पैर कभी मुड़ते नहीं। लेकिन इसके बावजूद उसकी पढ़ने की इच्छा शक्ति ने उसे स्कूल तक पहुंचा दिया, अब जो बच्ची खुद से खड़ी भी नहीं हो पाती, वह स्कूल में बच्चों के साथ खेलती है और हर कार्यक्रम में हिस्सा लेती है।
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विश्व बालिका दिवस पर स्कूल में प्रतियोगिता
जानकारी के मुताबिक, जिन पैरों से राजेश्वरी कलम पकड़ कर लिखती है। उन्हीं पैरों से कूची पकड़ कर पेंटिंग भी किया करती है और चॉक से रंगोली बनाकर उनमें रंग भरती है। स्कूल स्तर पर विश्व बालिका दिवस में आयोजित की गई रंगोली प्रतियोगिता में राजेश्वरी ने पहला स्थान हासिल किया है। उसने अपने पैरों से जो रंगोली बनाई थी उसे देखकर वहां हाथों से बना रहे बाकी बच्चे भी दंग रह गए। टीचरों ने भी देखा तो उन्हें बिल्कुल यकीन नहीं हुआ कि राजेश्वरी पैरों से इतनी अच्छी रंगोली बना सकती है।
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सहपाठी जाते हैं उसे घर से लेने
राजेश्वरी के पिता दीनूलाल पटेल ने बताया कि उन्हें अपनी बेटी पर बहुत गर्व है। उनकी बेटी दिव्यांग होने के बावजूद भी सब कुछ कर लेती है। पढ़ने में भी बहुत होशियार है। वहीं, स्कूल के हेडमास्टर श्रीनिवास नायडू ने कहा कि राजेश्वरी ने अपने पैरो से रंगोली बनाई थी। राजेश्वरी के इस हौसले में उसके दोस्तों ने बहुत साथ दिया है। वे सभी रोज उसे घर से स्कूल और स्कूल से घर लाते- ले जाते हैं। उन्होंने इसके लिए पाली में 4-4 बच्चों की ड्यूटी खुद से लगाई है।

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