गुप्तचर विशेषछत्तीसगढ़

मोर संग चलव रे गाने वाले मस्तुरिया के साथ कोई नही

रायपुर theguptchar.com| लक्ष्मण मस्तुरिया यह नाम सुनते ही जम्मो छत्तीसगढ़िया एक स्वर में ‘’मै छत्तीसगढ़िया अव ग.. और मोर संग चलव रे.. गुनगुनाने लगते है जिनका नाम सुनते ही छत्तीसगढ़ के लोग छत्तीसगढ़ियापन से लबालब हो जाते है,जिनकी हर एक रचना इतनी आत्मीय है की उसे पड़ते और सुनते ही लोग जोर जोर से छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया चिल्लाने लगते है.

इनकी हर एक रचना अपने आप में छत्तीसगढ़ियापन की नई मिशाल है चाहे वो छत्तीसगढ़ महतारी की भाखा बोलती महानदी मै, अरपा-पैरी, तन-मन धो फरियालव हो या समाज के दबे कुचले लोगो को उपर उठाने के लिए गाई गई उनकी कालजयी रचना मोर संग चलव रे हो या जम्मो छत्तीसगढ़िया को एकता के सूत्र में बाधने वाली उनकी मै छत्तीसगढ़िया अव ग जैसी हृदय स्पर्शी गीत हो स्वर्गीय मस्तुरिया जी का कोई तोड़ ही नही.

ऐसे महान रचनाकार अपने ही प्रदेश में निरंतर उपेक्षित क्यों हो रहे है जिन्होंने अपनी बोली के दम में छत्तीसगढ़ी को नई पहचान दी जिन्होंने मरते दम तक केवल छत्तीगढ़ महतारी की सेवा की अपने गीतों और रचनाओं के द्वारा मया पिरित की अमिट पहचान दी जिन्होंने महतारी से लेकर अपने मयारू के लिए प्रेम और ममता रस से सरोबार रचना की चाहे वो अपने मयारू के लिए समर्पित पता दे जा रे, पता ले जा रे गाड़ी वाला हो या मन डोले रे मांघ फगुनवा जैसी गीत हो या फिर महतारी के लिए अर्पित मंय बंदत हौं दिन-रात वो ,मोर धरती मईया जय होवय तोर हो छत्तीसगढ़ महतारी के इस दुलरवा बेटा के कोई जवाब नई है.

आज ही के दिन सन 2018 को मस्तुरिया जी सदा के लिए छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा में समा गए पर उन्हें आज तक कोई बड़ा सम्मान राज्य और केंद्र सरकार के द्वारा नही मिला बात चाहे पद्म पुरस्कार की हो या साहित्य क्षेत्र में मिलने वाला कोई बड़ा सम्मान क्यों न हो और तो और प्रदेश के किसी भी सरकार ने उनके नाम पर कोई पुरूस्कार देने की जरुरत तक नही समझी.

उनके ही प्रदेश में उनके पुण्यतिथि के मौके पर उन्हें याद तक नही किया जाता उन्हें श्रद्धांजलि तक अर्पित नही की जाती छत्तीसगढ महतारी के दुलरवा बेटा के साथ इनता सौतेला व्यवहार क्यों जिस महामानव ने जीवन पर्यन्त प्रदेश की सेवा की छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी के लिए आपना सारा जीवन न्योछावर कर दिया जिसने हमेशा सबको संग चलने की बात कही आज उन्ही का साथ छोड़ जा रहा है आखिर इतनी उपेक्षा क्यों?

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