International labour’s Day:
बिलासपुर। मजदूर हमारे देश की प्रगति के पीछे बहुत बड़ा स्तंभ है। यह वे लोग हैं जिनके प्रयासों से, परिश्रम से लोगों का पेट भरता है। जिस प्रकार ये देश के लिए अपना जीवन लगा देते हैं वैसे ही अपने घर और परिवार की रोजी रोटी चलाना भी इन्हीं के कंधों पर होती हैं और अगर बात की जाए एक महिला मजदूर की तो उन पर दोगुनी जिम्मेदारी होती है। ऐसी ही एक कहानी है छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर में रहने वाली सीमा तिवारी की आइए जानते हैं क्या है उनके संघर्ष की पूरी कहानी…..
International labour’s Day:
बिलासपुर की सीमा सभी महिलाओं के लिए मिसाल बनी हुई हैं। यह आज स्वयं की से 30 से 35 हजार कमाती है पर इसके पीछे का सफर बिल्कुल भी आसान नहीं था। कुछ समय पहले इनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी तब इन्होंने घर चलाने के लिए लोगों के घर खाना बनाने का काम शुरू किया। महिलाओं को इकट्ठा किया और उनको साथ लेकर काम किया पर वह भी इनका आर्थिक तंगी के कारण साथ नहीं दे पाए। तब उन्होंने स्वयं से गोठान का काम शुरू किया, खेती की, बड़ी पापड़ मसाले बनाए और इसके जरिए स्वयं को आत्मनिर्भर बनाया।
यह सीमा के संघर्षों का अंत नहीं बल्कि शुरुआत थी उनको गोठान का काम सीखने में समय लगा और वह यहीं तक सीमित नहीं रही बल्कि उन्होंने खुद से गोठान के गोबर से कंपोस्ट खाद बनाया, खेती की और फसलों का उत्पादन किया। शुरुआत में उन्होंने भिंडी बरबटी जैसी सब्जियां लगाईं फिर आगे जाकर खेतों के लिए बोर कराया और मुनगा के लगभग 100 पौधे भी खेतों में लगाए।
सीमा की सफलता के पीछे थोड़ा सहयोग जिला पंचायत का भी है सीमा के प्रयासों को देखकर जिला पंचायत ने उन्हें मशरूम की खेती के लिए प्रेरित किया और इसकी खेती के लिए 8 लाख का भवन तैयार करके दिया। जिसमें खासतौर पर मशरूम की खेती की जा सके और अब महिलाएं भी इसमें उनका साथ देने आ चुकी हैं। यहां सभी महिलाएं मिलकर मशरूम की खेती किया करती हैं।
सीमा कहती हैं कि वह जिस तरह से शासन की योजनाओं से आगे बढ़ रही वैसे ही वह चाहती हैं कि और भी महिलाएं आत्मनिर्भर बने वह आज महीने के 30 से 35 हजार कमाती हैं जो कि और भी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का संदेश देती है।
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