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समुद्र से भगवान धनवंतरी लेकर आए थे आंवला! मां लक्ष्मी की कृपा पाने अक्षय नवमी पर ऐसे करें पूजा

सनातन धर्म को मानने वाले लोग देवी-देवताओं के साथ-साथ प्रकृति के उपासक भी हैं. नदी, पहाड़, पर्वत और पेड़ों की भी पूजा होती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय नवमी के दिन आंवले की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन आंवले की पूजा करने और आंवले के पेड़ के नीचे बैठ कर भोजन करने से धर्म और शास्त्रों के अनुसार कई फायदे बताए गए हैं.

समुद्र मंथन से हुई आंवले की उत्पत्ति
ज्योतिषाचार्य एवं कथावाचक देवेंद्र आचार्य बताते हैं कि अक्षय नवमी का पर्व कार्तिक की नवमी तिथि को मनाया जाता है. इस पर्व को आंवला नवमी भी कहा जाता है. अक्षय का अर्थ बुराइयों को दूर करने वाला और जिसका कभी क्षय न किया जा सके, अर्थात जिसको कभी खत्म न किया जा सके. गोपाष्टमी के दूसरे दिन यह पर्व मनाया जाता है. हिंदू धर्म के अनुसार, आम, बरगद और पीपल की तरह ही आंवले की पूजा भी की जाती है.

आंवला अमृत के समान
आगे बताया, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आंवला समुद्र मंथन के दौरान निकाला था. जब धनवंतरी भगवान समुद्र से अमृत का कलश लेकर आए थे तो उसमें आंवला भी साथ लेकर आए थे. इसका प्रादुर्भाव समुद्र मंथन से हुआ है. इसलिए आंवला अमृत के समान है. कई मर्ज के लिए भी यह औषधि का काम करता है. इसलिए अक्षय नवमी के दिन आंवले की पूजा और आंवले का सेवन करना चाहिए.

आंवले पेड़ की पूजा विधि
आचार्य बताते हैं कि आंवले की पूजा करने की विशेष विधि है. सबसे पहले इस दिन आंवले का ध्यान करना चाहिए. उसके बाद जल और पंचामृत से आंवले को स्नान करना चाहिए. आंवले को वस्त्र पहनाकर, चंदन, पुष्प, धूप, दीप चढ़ाना चाहिए और विधिवत पूजा करना चाहिए. इसके बाद आंवले के नीचे बैठकर भोजन करना चाहिए. साथ ही और भी लोगों को भोजन करना चाहिए. ऐसी मान्यता है कि आंवला के नीचे भोजन करने से अमृत की वर्षा होती है.

मनोवांछित फल की होती है प्राप्ति
मान्यता है कि लक्ष्मी जी पृथ्वी में आंवले के रूप में विराजमान हैं. भगवान विष्णु और शिवजी आंवले के पेड़ के स्वरूप में ही पूजे जाते हैं. वैसे तो विष्णु जी का वास पीपल के पेड़ में होता है. वहीं बरगद के पेड़ में भगवान शिव वास करते हैं. लेकिन, आंवला एक ऐसा पेड़ है, जिसमें भगवान शिव और विष्णु दोनों का वास होता है. इसलिए यहां पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. यदि किसी को संतान नहीं है तो इस पूजा के करने से संतान की प्राप्ति होती है. यह पर्व साल में एक बार आता है. इसलिए इसे जरूर मनाना चाहिए.

(NOTE: इस खबर में दी गई सभी जानकारियां और तथ्य मान्यताओं के आधार पर हैं. The Guptchar.com किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता है.)

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