अब एक देश एक मतदाता सूची की तैयारी! आला अधिकारियों की चुनाव आयोग के साथ बैठक
केंद्र सरकार अब पूरे देश में एक ही यानी साझा मतदाता सूची पर राज्य सरकारों के बीच सहमति बनाने और इसी अनुरूप विधायी बदलाव करने पर विचार कर रही है. इस बाबत प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पी के मिश्रा की अध्यक्षता में हुई अहम बैठक में कैबिनेट सचिव राजीव गौबा, विधायी सचिव जी नारायण राजू, पंचायती राज मंत्रालय के सचिव सुनील कुमार के साथ निर्वाचन आयोग के महासचिव उमेश सिन्हा सहित आयोग के दो और आला उपायुक्त शामिल थे.
प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव के कार्यालय परिसर में हुई बैठक में इस सिलसिले में दो विकल्प अपनाने पर विचार किया गया. पहला विकल्प तो ये है कि संविधान में संशोधन कर साझा मतदाता सूची का रास्ता साफ किया जाए. दूसरा विकल्प ये कि राज्य सरकारों से बातचीत कर साझा मतदाता सूची पर उनको राजी किया जाए, ताकि एक तो दो अलग-अलग सूचियां बनाने में व्यर्थ होने वाले समय, श्रम और आर्थिक बोझ को घटाया जा सके. दूसरा ये कि एक राष्ट्र एक चुनाव की भी राह आसान की जा सके.
संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक अब तक लोकसभा और विधान सभा चुनावों के लिए भारत निर्वाचन आयोग मतदाता सूची तैयार करवाता रहा है. जबकि स्थानीय निकाय और पंचायत चुनावों के लिए राज्य निर्वाचन आयोग अपनी ओर से मतदाता सूची बनवाता रहा है.
संविधान में अनुच्छेद 243 (के) और 243 (जेड ए) के तहत राज्य निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची तैयार करने और इसकी पूरी प्रक्रिया पर निगरानी रखने के साथ आवश्यक निर्देश देने का अधिकार दिया गया है. वहीं अनुच्छेद 324(1) भारत निर्वाचन आयोग को लोकसभा और विधान सभा चुनाव के लिए अलग मतदाता सूची तैयार करने, पुनरीक्षण करने, निगरानी करने और स्थानीय प्रशासन को आवश्यक निर्देश का अधिकार देता है.
व्यावहारिक तौर पर अधिकतर राज्यों के राज्य चुनाव आयोग भारत निर्वाचन आयोग की ही मतदाता सूची का इस्तेमाल स्थानीय चुनावों के लिए भी करते हैं. इसलिए भी संविधान में संशोधन करना आसान होगा. वैसे भी विधि आयोग ने भी 2015 में अपनी 255वीं रिपोर्ट में एक देश-एक चुनाव और साझा मतदाता सूची की सिफारिश की थी.
बीजेपी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में भी साझा मतदाता सूची का वादा किया था. पिछली और मौजूदा सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार अपने ड्रीम प्रोजेक्ट ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ की बात कह चुके हैं. बैठक के दौरान ये सहमति बनी कि कैबिनेट सचिव राज्य सरकारों से बातचीत कर 15 सितंबर तक इस मामले में अपनी रिपोर्ट देंगे.