रायपुर। कांग्रेस के महासचिव और पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन ने केंद्र सरकार की नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन (NMP) को लेकर मोदी सरकार पर जमकर हमला किया है। उन्होंने कहा मोदी सरकार ने जनता की कमाई से बनी संपत्तियों की डिस्काउंट सेल लगाई है। मोदी सरकार गुपचुप निर्णय और अचानक घोषणा सरकार की नीयत पर संदेह बढ़ा है। केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय संपत्ति बेचने के विरोध में कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता अजय माकन ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ रायपुर में पत्रकारों के चर्चा की।
पूर्व केंद्रीय मंत्री माकन ने कहा कि मोदी सरकार ने विकास के नाम पर दो बच्चों जन्म दिया, एक का नाम डीमोनेटाजेशन (Demonetization) और दूसरे मोनेटाजेशन (Monetization) डीमोनेटाजेशन से देश के गरीबों, कारोबारियों लूटा गया। उन्होंने कहा, मोनेटाजेशन से देश की विरासत को लूटा जा रहा है और दोनों ही चंद पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए किए गए काम हैं।
कांग्रेस के महासचिव अजय माकन ने केंद्र सरकार की नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन (NMP) को लेकर मोदी सरकार पर हमला बोला उन्होंने कहा कि मोदी सरकार जनता की कमाई से पिछले 60 साल में बनाए गए सार्वजनिक उपक्रमों को किराए के भाव पर बेचने पर आमादा है। उन्होंने कहा कि सबसे चौकाने वाली संदेह डालने वाली बात यह कि यह सभी कुछ गुपचुप तरीके से तय किया गया। इसके बाद निर्णय घोषणा भी अचानक से की गई जिससे केंद्र सरकार की नीयत पर शक गहराता है।
उन्होंने कहा एनडीए की तुलना अगर यूपीए से ढांचागत आधार के सृजन को लेकर की जाए तो यूपीए के मुकाबले एनडीए का रिकॉर्ड काफी खराब है। पिछले कुछ सालों में प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर जो भी भाषण दिए उनका मुख्य केंद्र ढांचागत आधार ही रहा है। लेकिन सरकार की इस बिंदु अगर UPA तुलना की जाए NDA का रिकॉर्ड खराब है।
अजय माकन ने कहा, 12वीं योजना काल जो 2012 से 2017 के बीच था। उस दौरान औसतन 7.20 लाख करोड़ सालाना ढांचागत आधार पर निवेश किया जा रहा था। यह एनडीए शासन काल में 5 लाख करोड़ रुपए पर आ गया है। इससे सभी लोगों की उस शंका को बल मिलता है कि सरकार का मुख्य मुद्दा ढांचागत आधार को बेहतर करना नहीं है। इसका मुख्य उद्देश्य कुछ चुनिंदा उद्योगपति दोस्तों को उनके कारोबार और व्यापार में एकाधिकार का अवसर प्रदान करना है।
बाजार में चुनिंदा कंपनियों की मनमर्जी कायम हो जाएगी
उन्होंने कहा सरकार भले कहती रहेगी की निगरानी के सौ तरह के उपाय हैं। उसके लिए नियामक संस्थाएं हैं। लेकिन सच इसके विपरीत है। यह हम सीमेंट के क्षेत्र में देख सकते हैं, जहां पर दो तीन कंपनियों का एकाधिकार है। वहीं बाजार में भाव को तय करते हैं। सरकार के तमाम नियामक प्राधिकरण और मंत्रालय उनके सामने असहाय नजर आते हैं। इससे विभिन्न क्षेत्रों में मूल्य निर्धारण और गठजोड़ बढ़ेगा।
रोजगार की सुरक्षा पर अजय माकन ने कहा – सरकारी संस्थानों को प्राइवेट हाथों में देने से पहले यूनियनों से बात कर उन्हें विश्वास में लेना सबसे जरूरी है। कहीं भी अपने दो भागों वाले दस्तावेज में सरकार ने यह बताया है की मौजूद कर्मचारियों के हितों की रक्षा करी जाएगी। भविष्य में भी सार्वजनिक उपक्रम दलित, आदिवासी पिछड़े वर्गों को नौकरी देकर सहारा देने वाले होते हैं यह सहारा भी छीन लिया जा रहा है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि रेलवे की जिन संपत्तियों, रेलवे स्टेशनों और रेलवे लाइनों को राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन में बेचने के लिए चिन्हित किया गया है। वह हमेशा से बेहतर और फायदे का सौदा वाली परिसंपत्ति रही हैं। एक बार निजीकरण हो जाने के बाद लाभ कमाने वाले सभी रूट निजी क्षेत्र को सौंप दिए जाएंगे। जबकि घाटे में चलने वाले रूट और छोटे स्टेशन को सरकार चलाएगी। जहां पर सरकार पैसे की कमी का हवाला देते हुए उदासीन बनी रहेगी। इससे इन स्टेशनों और लाइनों पर यात्रा करने वाले यात्रियों को हमेशा बदतर सेवाओं के साथ ही रहना होगा।
सूचना का अधिकार नहीं होगा प्रभाव
अजय माकन ने आरोप लगाया है और कहा है कि जिन कंपनियों को परिसंपत्तियों के संचालन के लिए बनाया जाएगा। वह उन नए नियमों के तहत संचालित होंगी। जो सूचना के अधिकार या आरटीआई के दायरे में आने में दिक्कत होगी। इन कंपनियों का सृजन गुप-चुप तरीकों से किया गया। जो आने वाले समय में गुप-चुप तरीके से ही संचालित होंगी और चुनिंदा औद्योगिक पूंजीपति मित्रों को ही लाभ पहुंचाने का कार्य करेंगे।
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