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धान की अच्छी पैदावार हासिल करने किसान भाई करें ये काम, नहीं तो हो सकता है काफ़ी नुकसान…

छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है यहाँ ज्यादातर किसान भाई खरीफ सीजन में धान की फसल ही लगाते है। किसान अभी धान की फसल को रोग व कीट से बचाने के लिए तरह तरह के उपाय कर रहे हैं धान की अधिक पैदावार लेने के लिए यह बहुत जरूरी होता है। यदि आपके भी खेत में धान की फसल लगी है और कीट और रोग लगने का डर है तो आप कीटनाशक और रोग के लिए रासायनिक दवाओं का छिड़काव कर सकते हैं।
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धान की रोपाई के 25-30 दिन बाद धान की अधिक उपज वाली प्रजातियों में प्रति हेक्टेयर 30 किलो ग्राम नाइट्रोजन और सुगंधित प्रजातियों में प्रति हेक्टेयर 15 किलो ग्राम नाइट्रोजन की टॉप ड्रेसिंग का कार्य करें। नाइट्रोजन की दूसरी और अंतिम टॉप ड्रेसिंग रोपाई के बीच 50 से 55 दिन का अंतर रखें। धान की फसल में टॉप ड्रेसिंग करते समय खेत में 2 से 3 सेंटी मीटर से ज्यादा पानी मौजूद नहीं होना चाहिए।
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तना छेदक के लिए रोकथाम के लिए-
धान की फसल में किसान भाइयों को तना छेदक कीट के रोकथाम का कार्य भी करना होगा वरना ये कीट फसल को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे पैदावार पर सीधा असर पड़ सकता है। तना छेदक कीट के रोकथाम के लिए खेत में 4.5 सेंटी मीटर पानी होने पर कार्बोफ्यूरान दवा का 20 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें। तना छेदक की रोकथाम के लिए क्लोरोपायरीफॉ 20 ईसी दवा को 600 लीटर पानी में 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से घोलकर छिड़काव करें।
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खैरा रोग की रोकथाम के लिए-
फसल में खैरा रोग की रोकथाम के लिए जिंक सल्फेट 5 किलो ग्राम और 2.5 किलो ग्राम चूना या 20 किलो ग्राम यूरिया को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। फसल में धान का झोंका, भूरा धब्बा, शीथ ब्लाइट, आभासी कंड व जिंक की कमी आदी से भी बीमारियां पनप सकती हैं। धान की फसल में कीट और अन्य रोगों की समस्या पोषण की कमी और बीज शोधन न करने से होती हैं। धान की पत्ती में जीवाणु झुलसा रोग के नियंत्रण के लिए जल निकासी की व्यवस्था करें।
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खर-पतवार भी एक बड़ी समस्या
बीमारी की रोकथाम के लिए 74 ग्राम एग्रीमाइसीन-199 और 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से 3-4 बार छिड़काव करें। जिंक तत्व की कमी होने पर 15-30 दिनों के अंतराल पर 0.5 जिंक सल्फेट को 0.25 बुझे हुए चूने के घोल के साथ 3 बार छिड़काव करें। प्रकाश प्रपंच के उपयोग से तना छेदक की निगरानी करते रहें। तना छेदक की रोकथाम के लिए रोपाई के 30 दिन बाद ट्राइकोग्रामा जपोनिकम (ट्राइकोकार्ड) 1-1.5 लाख प्रति हेक्टेयर प्रति सप्ताह की दर से 2-6 सप्ताह तक छिड़काव करें।
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धान की फसल में खर-पतवार भी एक बड़ी समस्या है। इसके लिए किसान भाई पहले ही दवा का छिड़काव कर सकते हैं। अगर इससे भी समस्या का समाधान नहीं हुआ तो निराई-गुड़ाई करने की जरूरत पड़ती है। किसानों को सलाह दी जाती है कि रोपाई के 20-25 दिन बाद निराई-गुड़ाई का काम कर लें। इससे खर-पतवार पर प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। अगर दूसरी निराई की जरूरत पड़ती है तो रोपाई के दो महीने के भीतर कर लें।

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