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शीतकालीन सत्र के पहले दिन प्रधानमंत्री मोदी का संदेश: ‘संसद में ड्रामा नहीं, डिलीवरी हो’

संसद के 2025–26 शीतकालीन सत्र की शुरुआत के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए एक महत्वपूर्ण संदेश दिया। उन्होंने सभी दलों, विशेषकर विपक्ष से आग्रह किया कि सदन को हंगामे और टकराव का मंच न बनाकर, इसे संवाद, नीति-निर्माण और जनहित के लिए प्रभावी कार्य का केंद्र बनाया जाए। मोदी ने स्पष्ट कहा कि देश आज “ड्रामा नहीं, डिलीवरी” की अपेक्षा करता है, और संसद को इस दिशा में अपनी भूमिका मजबूती से निभानी चाहिए।

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में इस बात पर चिंता जताई कि पिछले कुछ वर्षों में संसद की कार्यवाही बार-बार बाधित होती रही है, जिससे न तो सांसदों को अपनी बात रखने का अवसर मिल पाता है और न ही जनता से जुड़े महत्वपूर्ण विधेयक समय पर पारित हो पाते हैं। उन्होंने विशेष रूप से युवा सांसदों का जिक्र करते हुए कहा कि लोकतंत्र की परंपरा तभी मजबूती पाती है जब नए जनप्रतिनिधियों को भी पर्याप्त समय और मंच मिले। लगातार हो रहे हंगामे और वॉकआउट के कारण सदन में नई आवाज़ें दब जाती हैं, जो एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।

मोदी ने यह भी कहा कि यह सत्र कई अहम विधेयकों और नीतिगत प्रस्तावों को लेकर महत्वपूर्ण होने वाला है। देश की अर्थव्यवस्था, सुरक्षा, तकनीक और सामाजिक सुधारों से जुड़े कई कानून इस सत्र की प्राथमिकता सूची में शामिल हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि सभी दल अपने राजनीतिक मतभेदों को अलग रखते हुए राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देंगे और सार्थक चर्चा के माध्यम से निर्णय लेंगे। प्रधानमंत्री के अनुसार, संसद सिर्फ बहस और तर्क-वितर्क का स्थान नहीं, बल्कि निर्णय और परिणाम देने वाली संस्था है।

प्रधानमंत्री के संदेश में भविष्य की दिशा को लेकर भी संकेत दिए गए। उन्होंने कहा कि भारत एक निर्णायक समय से गुजर रहा है – वैश्विक अर्थव्यवस्था में बदलाव, तकनीकी उन्नति, और सुरक्षा चुनौतियों के बीच देश को मजबूत नीति की आवश्यकता है। संसद का हर सत्र देश की प्रगति की रफ्तार तय करता है, इसलिए यह ज़रूरी है कि सांसद समय का सर्वोत्तम उपयोग करें। उन्होंने कहा कि जनता हर सांसद से उम्मीद करती है कि वह चर्चाओं को सार्थक बनाए और समाधान-केंद्रित राजनीति को बढ़ावा दे।

सत्र की शुरुआत के साथ ही यह भी साफ हो गया कि सरकार इस बार सुधारों की तेज़ रफ्तार बनाए रखना चाहती है। पीएम मोदी ने कहा कि कार्यपालिका और विधायिका, दोनों को मिलकर ऐसे कदम उठाने होंगे जो देश को अगले दशक की चुनौतियों के लिए तैयार करें। उन्होंने कहा कि विपक्ष अपनी आलोचना जरूर करे, लेकिन ऐसी आलोचना करे जिसमें सुधार का रास्ता भी शामिल हो। उन्होंने राजनीति में शून्य-योग (zero-sum) मानसिकता से दूर रहने की सलाह दी और कहा कि लोकतंत्र में जीत-हार स्थायी नहीं होती, परंतु जनहित हमेशा सर्वोपरि रहना चाहिए।

प्रधानमंत्री का यह संदेश न केवल सत्र का टोन सेट करता है, बल्कि यह भी बताता है कि सरकार आगामी सप्ताहों में पूरी गंभीरता के साथ विधायी कार्य को आगे बढ़ाना चाहेगी। अब नज़र इस पर होगी कि क्या विपक्ष इस अपील को स्वीकार कर रचनात्मक भूमिका निभाता है, या फिर सत्र भी पिछले वर्षों की तरह टकराव और गतिरोध का शिकार बनता है। कुल मिलाकर, मोदी ने संसद से ऐसी कार्यशैली की उम्मीद जताई है जो परिणाम दे, विश्वास बढ़ाए और भारत को विश्व मंच पर और अधिक प्रभावशाली बनाए।

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