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होर्डिंग से सचिन पायलट ने साफ कर दी अपनी राजनीतिक मंशा

मामला छत्तीसगढ़ जैसे ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री पद पर रहने का

जयपुर। पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का जयपुर में शहीद स्मारक पर एक दिवसीय अनशन शुरू हो गया है। अनशन स्थल पर लगे होर्डिंग से पायलट और उनके समर्थकों ने अपनी राजनीतिक मंशा को साफ कर दिया है। होर्डिंग्स पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे समेत किसी भी मौजूदा कांग्रेस नेताओं के फोटो नहीं हैं। महात्मा गांधी और ज्यातिबा फुले की तस्वीरें लगी हैं। वसुंधराराजे सरकार में हुए भ्रष्टाचार को लेकर पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोला है।

अनशन स्थल पर लगे होर्डिंग से सचिन पायलट की राजनीतिक मंशा साफ दिखाई दे रही है। यहां होर्डिंग पर महात्मा गांधी की बड़ी तस्वीर है, वहीं अनशन स्थल ज्योतिबा फुले की तस्वीर लगी है। होर्डिंग पर लिखा है-वसुंधरा सरकार में हुए भ्रष्टाचार के विरूद्ध अनशन। कांग्रेस में लंबे समय से सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाए जाने या प्रदेशाध्यक्ष बनाने को लेकर पिछले ढाई सालों से चर्चाएं चल रही थीं। पायलट भी लगातार दिल्ली में आलाकमान से संपर्क साधे हुए थे। साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी राजनीतिक रूप से घेरे रखा था। पायलट ने अचानक एक बार फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। लेकिन, इसके लिए उन्होंने वसुंधराराजे को निशाने पर लिया है।

आलाकमान में इसके बावजूद सचिन पायलट को पार्टी का संपदा बताया है। हालांकि उनके अनशन के फैसले को जल्दबाजी और पार्टी लाइन के खिलाफ बताया है। अब कांग्रेस सचिन पायलट को लेकर क्या निर्णय करेगी, इस बारे में आने वाले समय में ही पता चलेगा।आपको बता दें कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व उस वक्त डिप्टी सीएम रहे सचिन पायलट के बीच अदावत करीब ढाई साल पहले शुरू हुई। तब सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ खेमे में चले गए थे। पायलट पर आरोप है कि उस वक्त उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर अपनी ही सरकार को गिराने कोशिश की थी। सीएम गहलोत ने अपने विधायकों की खेमाबंदी कर सरकार को बचाने में कामयाबी हासिल की।

इसके बाद आलाकमान से बातचीत के बाद मसला सुलझा। लेकिन, अदावत जारी रही। दोनों की ओर से मिल जुलकर काम करने और सरकार को रिपीट करवाने के बयान दिए गए हैं। लेकिन सचिन पायलट के खेमे से उन्हें सीएम बनाने यहां कांग्रेस में बड़ी जिम्मेदारी मिलने की लगातार मांग उठती रही। इस दरम्यां राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के दौरान चुनाव प्रभारी ने कांग्रेस विधायकों की मीटिंग बुलाई थी, इस पर गहलोत खेमे के विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफे सौंप दिए। भाजपा ने भी इस मामले को उठाया और कोर्ट तक ले गई।

इस पूरी कहानी का लब्बोलुआब यह है कि कांग्रेस में चुनावों तक सीएम अशोक गहलोत व सचिन पायलट के बीच अदावत और बढ़ती जाएगी। भाजपा भी इस पूरे मामले पर नजर रखे हुए हैं। हालांकि पायलट के जो तेवर दिख रहे हैं, उससे लगता है कि राजस्थान की राजनीति में बड़ा बदलाव हो सकता है। इसके बावजूद फिलहाल राजस्थान की सियासत में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे दोनों ही निशाने पर हैं।

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